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मोदी सरकार ने उठाया बड़ा कदम, नए पिछड़ा वर्ग आयोग का होगा गठन

देश में पिछड़े वर्गों की पहचान और उनकी शिकायतों की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 09:05 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 09:40 PM (IST)
मोदी सरकार ने उठाया बड़ा कदम, नए पिछड़ा वर्ग आयोग का होगा गठन
मोदी सरकार ने उठाया बड़ा कदम, नए पिछड़ा वर्ग आयोग का होगा गठन

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों की आवाज सुनने के लिए अब पहली बार संवैधानिक व्यवस्था होने जा रही है। केंद्र सरकार ने इसके लिए एक नए आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। यह पिछड़े वर्ग की अपने स्तर से पहचान भी करेगा जो सरकार के लिए बाध्य होगा।

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देश में पिछड़े वर्गों की पहचान और उनकी शिकायतों की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। वरिष्ठ सरकारी सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में इस फैसले को मंजूरी दे दी गई है। इसका नाम 'राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग' (एनएसईबीसी) होगा। साथ ही इसे संवैधानिक दर्जा हासिल होगा। इसलिए इसके लिए संसद में जल्दी ही संविधान संशोधन बिल लाया जाएगा। इसके साथ ही पहले से चल रहे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को समाप्त कर दिया जाएगा। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है यह केंद्र सरकार के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय के तहत चलने वाला वैधानिक आयोग है। मौजूदा आयोग को 1993 में संसद में पारित कानून के तहत गठित किया गया था।

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नया आयोग राष्ट्रीय अनसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनसूचित जनजाति आयोग की तरह संबंधित वर्ग के लोगों की शिकायतों की सुनवाई भी कर सकेगा। संविधान में इसके लिए धारा 338 बी जोड़ी जाएगी। इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों का प्रावधान होगा। इसका गठन हो जाने के बाद विभिन्न वर्गों की ओर से पिछड़े वर्ग में शामिल किए जाने की मांग पर भी विचार यही करेगा। साथ ही पिछड़ा वर्ग की सूची में किसी खास वर्ग के ज्यादा प्रतिनिधित्व या कम प्रतिनिधित्व पर भी यही सुनवाई करेगा। यह भी तय किया गया है कि आयोग की सिफारिश सामान्य तौर पर सरकार को माननी ही होगी।

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लंबे समय से आम लोगों की ओर से और साथ ही संसद में जन प्रतिनिधियों की ओर से यह मांग की जा रही थी कि पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए एक संवैधानिक आयोग का गठन हो। अब ना सिर्फ यह आयोग गठित किया जाएगा, बल्कि पिछड़ों की पहचान भी नए सिरे से की जाएगी। हालांकि नए सिरे से पहचान करने या ज्यादा प्रतिनिधित्व वाले वर्गो का हिस्सा कम करने को ले कर कोई भी फैसला आसान नहीं होगा। राजनीतिक पहलू को भी नजरअंदाज करना मुश्किल है। दरअसल पिछले दिनों मे जाट आरक्षण को लेकर भी मांग तेज रही है। कोर्ट से हालांकि इसे खारिज किया जा चुका है लेकिन चाहे अनचाहे यह आयोग उनके मन में नई आशाएं जगा सकता है।


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