सपा में जारी कलह थामने की कोशिश, थोड़ी देर से जागे मुलायम सिंह यादव
विजेता वह होता है जिसके पास शुरूआती समर्थकों की संख्या भले ही कम हो लेकिन उसमें समर्थक बढ़ाने की क्षमता हो और परिवार की बजाय समाज के दिल को छू सके।
नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। काश, दंगल और राजनीति के पहलवान रहे सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को इसका अहसास पहले हो जाता कि उनका दाव गलत पड़ गया है। पांव भी अखाड़े के बाहर जा रहा है जो उनके पुराने प्रशंसकों व समर्थकों को भी शायद ही रास आए। खैर, देर से ही सही राजनीतिक नेपथ्य में जा रहे मुलायम को इसका भान हो गया है कि उनसे चूक हो गई। वह यह समझने में भूल कर बैठे कि राजनीतिक दंगल में उस पहलवान का सिक्का चलता है जो उठापटक या दावपेंच का माहिर हो या न हो लेकिन नैतिकता के आधार पर निर्दोष दिखे। विजेता वह होता है जिसके पास शुरूआती समर्थकों की संख्या भले ही कम हो लेकिन उसमें समर्थक बढ़ाने की क्षमता हो और परिवार की बजाय समाज के दिल को छू सके। इन मापदंडों पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिलहाल बढ़त बना ली है।
मुलायम पर हमलावर हुए रामगोपाल
पिछले दो तीन दिनों में समाजवादी पार्टी के 25 वर्षो के इतिहास की कई बार याद दिलाई गई। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के नाम जपे गए। लेकिन यह भी खुलकर दिखा कि इस पूरे संग्राम में अखिलेश यादव एक ऐसे चरित्र थे जिसपर अंदर जितनी लाठियां बरसाई जाती, अखाड़े के बाहर उनके समर्थकों की संख्या उतनी ही बढ़ती जाती। मुलायम यहीं चूक कर गए थे। वह यह भापने में असफल हो गए थे कि चुनाव के मुहाने पर खड़े होकर बात परिवार या फिर दोस्त-यार की नहीं बल्कि जनता की की जाती है। यह बताना होता है कि जनता के लिए किसने कितना किया। क्या किया और किस वक्त किया। मुलायम चूक गए।
राम गोपाल की बर्खास्तगी के बाद अब राज्यसभा के लिए सपा में मचेगा दंगल!
भारतीय संस्कृति में कोई पिता निरपेक्ष भाव से समाज के बड़े हित मे अपने पुत्र की बलि भी चढ़ा दे तो वह पूज्य होता है। उसकी महानता अजरामर होती है। लेकिन अगर इसमें मंशा या किसी दावपेंच की थोड़ी भी झलक दिखे तो फिर वह अक्षम्य हो जाती है। मुलायम पार्टी के नेताजी हैं। उनसे थोड़ी देर हुई लेकिन वह समझ गए कि बदलाव के युग में नेतृत्व परिवर्तन जरूरी है। मंगलवार को उन्होंने इसका संकेत दे दिया। चाचा भतीजा की लड़ाई में सोमवार तक एक तरफ खड़े मुलायम थोड़े संयत दिखे। बुजुर्ग की तरह अखिलेश और भाई शिवपाल यादव को बुलाकर समझाने का भी काम किया। लेकिन खुद भी समझ गए कि पानी बहुत बह चुका है।
वक्त है जनता की नब्ज को समझने का। चौराहे तक पहुंची घर की लड़ाई में सपा के लिए चुनाव में कितना बचा है यह बताना तो मुश्किल है। लेकिन अखिलेश जैसे पार्टी के सरल व सुलभ चेहरे को बदरंग करना खतरनाक हो सकता है। यही कारण है कि कुछ दिन पहले निकाले गए मंत्रियों की कैबिनेट में वापसी का ऐलान करने वाले मुलायम इस बार चुप्पी साध गए। लखनऊ में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह फैसला मुख्यमंत्री को करना है कि उनके कैबिनेट में कौन रहेगा।
अब राज्यसभा के लिए सपा में मचेगा दंगल
वहीं दूसरी ओर अखिलेश ने समय की नजाकत को समझते हुए ऐन वक्त पर अपना पांव जमीन पर अड़ाया है। मुलायम का यह कहना कि मंत्रियों का फैसला मुख्यमंत्री करेंगे- बहुत कुछ कहता है। शांत, सौम्य, पिता के आदेश पर कुर्सी छोड़ने का ऐलान करने वाले अखिलेश ने यह संदेश दे दिया कि समाज के प्रति जवाबदेही की बात आएगी तो वह झुकेंगे नहीं। प्रेस कांफ्रेंस में उनका न आना भी समाज के उन लोगों के लिए संकेत था जो अखिलेश से इसी स्टैंड की अपेक्षा कर रहे थे। यह सपा है। इसमें अंतिम वाक्य की तरह कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है। पिछले चुनाव में इसी अखिलेश यादव के चेहरे के साथ रिकार्ड बहुमत लाने वाली सपा का इस बार क्या हश्र होगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन फिलहाल वह खरे उतरे हैं।
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