बेटियों में पैदा करना होगा भरोसा
सरकार ऐसी पुलिस व्यवस्था का निर्माण करने में दिलचस्पी ले जिससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी आए।
सिद्धार्थ मिश्र
बीते 13 मई को हरियाणा के रोहतक में 20 वर्षीय युवती के साथ घटी अपहरण, बलात्कार और हत्या की अत्यंत शर्मनाक, हृदय विदारक और शर्मसार करने वाली घटना ने जनमानस को एक बार फिर से झकझोर दिया है। अपराधियों ने जिस तरह निर्भया कांड जैसी क्रूरता, दरिंदगी और हैवानियत से इस अपराध को अंजाम दिया, वह न सिर्फ अपराधियों के दुस्साहस को बल्कि देश में विस्तार पा रही विकृति व कुंठा को भी दर्शाती है। रोहतक की घटना ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है क्या कोई महिला या लड़की देश में बिना किसी भय के जीवन जी सकती है? आज तक हमारा देश अपनी बेटियों को वह स्थान नहीं दे पाया है जिसकी वह पूर्ण रूप से हकदार हैं। महिलाएं आज भी असुरक्षाबोध की जकड़न से बाहर नहीं निकल पाई हैं। उन्हें हर समय किसी न किसी अनहोनी का डर सताता रहता है।
16 दिसंबर 2012 के निर्भया बलात्कार कांड के बाद नियुक्त जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों के चलते वर्तमान कानूनों मसलन भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में अनेक बदलाव कर नए प्रावधान जोड़े गए। उस समय देश में यौन हिंसा की घटनाओं को लेकर जिस प्रकार का वातावरण बना था और एक आक्रोश दिखा था, उससे लगा कि शायद देश में अब ऐसी घटनाओं पर रोक लगे। मगर जमीन पर हालात में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया मामले के दोषियों की फांसी की सजा को सही ठहरा कर उनकी अपील को खारिज किया है। मगर हैरत है कि कठोर कानून बनाने और न्यायालयों के महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त रुख दिखाने के बावजूद इस प्रकार की घटनाएं रुक नहीं पा रही हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में जहां 2013 में महिलाओं के खिलाफ कुल 3,09,546 मामले सामने आए वहीं 2014 में ये बढ़कर 3,37,922 हो गए। यानी यह अपराध 52.2 से बढ़कर 56.3 प्रतिशत हो गया। 2014 में ऐसे कुल मामलों में 36,735 बलात्कार, 4,234 रेप की कोशिश, 8,455 मामले दहेज हत्या और अन्य अपराधों के अतिरिक्त 1,32,939 मामले यौन अपराध के शामिल थे। ये आंकड़े एक अलग अध्ययन की मांग करते हैं।1महिलाओं के खिलाफ ¨हसा के कुल मामलों में 11.4 प्रतिशत(38,467) केस अकेले उत्तर प्रदेश के थे जबकि सबसे अधिक बलात्कार के 5,076 मामले मध्य प्रदेश में और रेप के प्रयास के सर्वाधिक 1,656 तथा पति और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के 23,278 मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए।
हैरत की बात है कि 86.0 प्रतिशत बलात्कार के मामलों में आरोपी पीड़ित के परिचित थे। इन घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा बल्कि महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के संबंध में व्यावहारिक व दीर्घकालिक नीतियों का निर्माण करना होगा। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा व्यवस्था और पारिवारिक परवरिश की है। हमें प्रारंभिक से उच्च शिक्षा तक युवतियों और महिलाओं के प्रति आदर, सम्मान को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना होगा। सरकार, पुलिस और अन्य एजेंसियों को अपने बर्ताव और कार्यशैली में सजगता को दर्शाना होगा। वर्मा आयोग का गठन हो या किसी अन्य प्रकार की कार्यवाही, ऐसा लगता है की सरकारें प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही ही ज्यादा करती हैं। घटनाओं के घटने के बाद मामलों को निपटाने में खानापूर्ति करती हैं और मामला शांत हो जाने के बाद अपने पुराने रवैये पर लौट आती हैं।
इन घटनाओं से आमजन चिंतित है। लिहाजा सुझाव के तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार ऐसी पुलिस व्यवस्था का निर्माण करने में दिलचस्पी ले जिससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी आए। इससे महिलाओं और लड़कियों में सुरक्षा का भाव पैदा होगा। उल्लेखनीय है कि किसी भी समाज के लिए सुरक्षा का भाव अहम मसला होता है। आज की लड़कियां न केवल चिकित्सा, शिक्षा, विज्ञान, कॉरपोरेट जगत और राजनीति में आगे हैं बल्कि खेल एवं सेना जैसे पुरुषों का क्षेत्र समङो जाने वाले क्षेत्रों में भी ऊंचा नाम कमा रही हैं। यदि लड़कियों को पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराई जाए तो वह निश्चित रूप से अपार सफलता हासिल करेंगी।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)