सड़कों पर घूम रहे विक्षिप्तों के लिए पहल, ताकि सड़कों पर शर्मसार न हो इंसानियत...
सड़कों पर भटकते विक्षिप्तों की देखभाल नहीं कर पा रहा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, पुलिस के जिम्मे छोड़ दी गई है जिम्मेदारी, नहीं मिल रहा लावारिस विक्षिप्तों को लाभ, कैसे हो समाधान
नई दिल्ली (अतुल पटेरिया)। देश की पहली मानसिक स्वास्थ्य नीति को अमल में आए चार साल होने को हैं। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को अस्तित्व में आए साल भर पूरा होने जा रहा है। बावजूद इसके देश की तमाम सड़कों पर घूम रहे विक्षिप्तों को ठौर-ठिकाना मिल पाना अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है।
क्या कहता है कानून : मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 की तरह ही 2017 में बने कानून में भी थाना प्रभारी (एसएचओ) को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह अपने क्षेत्र में लावारिस घूमते किसी विक्षिप्त इंसान को हरसंभव मदद मुहैया कराए। उसका सरकारी अस्पताल में मानसिक परीक्षण कराए। मानसिक स्वास्थ्य की रिपोर्ट को जिला अदालत में प्रस्तुत कर, वहां से मानसिक स्वास्थ्य उपचार केंद्र में भर्ती कराने का आदेश प्राप्त करे और भर्ती कराए।
नहीं हो रहा अमल : यह काम न तो पहले और न अब हो रहा है। पुलिस के पास ढेरों काम हैं। लिहाजा, इंसानियत सड़कों पर लावारिस भटक रही। ठंडी, गर्मी, बरसात, शरीर पर मैला लादे, भूखे-प्यासे, बीमार हाल... और अंत में सड़क किनारे ही किसी कोने पर दम तोड़ती। पुलिस रिकार्ड में लावारिस लाश का मामला बनता है और मामला खत्म।
क्या है उपाय: पुणे, महाराष्ट्र के कुछ युवाओं ने इसका उपाय ढूंढ निकाला है। पेशे से सिविल इंजीनियर योगेश मालखारे के नेतृत्व में महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों के सैकड़ों युवा इस मुहिम से जुड़े हैं। स्माइल प्लस सोशल फाउंडेशन का गठन कर बाकायदा कोर्ट से यह इजाजत ले ली गई है और जो काम पुलिस के जिम्मे सौंपा गया है, उसे ये युवा पूरी शिद्दत से कर रहे हैं, ताकि इंसानियत सड़कों पर शर्मसार न हो सके। मंगलवार को जिस समय हम योगेश से फोन पर बात करे थे, वह महाराष्ट्र के सोलापुर से फेसबुक पर लाइव थे।
सोलापुर की सड़कों से उनकी टीम ने कुल 54 विक्षिप्त इंसानों को एकत्र किया था, जिन्हें मानसिक उपचार केंद्र में भर्ती कराने की तैयारी की जा रही थी। फेसबुक पर उन्हें दिखाया जा रहा था ताकि कोई रिश्तेदार या परिचित उन्हें पहचान सके।
योगेश ने बताया कि इन लोगों को एकत्र करने के बाद इनका सरकारी अस्पताल से मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण कराया, फिर जिला प्रशासन से रिपोर्ट का सत्यापन करा अदालत में प्रस्तुत किया गया और अदालत ने इन 54 विक्षिप्तों को पुणे स्थित मानसिक स्वास्थ्य उपचार केंद्र में भर्ती कराने का आदेश जारी किया।
सोलापुर से पुणे की दूरी ढाई सौ किलोमीटर है और मंगलवार की रात योगेश की टीम इन्हें पुणे ले जाने की जुगत में जुट गई थी। योगेश ने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया उनकी दर्जनभर युवाओं से भरी टीम ने महज दो दिन में पूरी कर ली।
अधूरा है स्वच्छ भारत अभियान: योगेश कहते हैं, राजधानी दिल्ली हो या मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पुणे, पटना, लखनऊ... तमाम छोटे-बड़े शहरों की चमचमाती चौड़ी-चौड़ी सड़कों के किनारे इंसानियत को हर पल शर्मसार होते देखा जा सकता है।
स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है। सड़क का कोना-कोना चकाचक होना चाहिए...। लेकिन इन्हीं सड़कों पर जब गंदगी से सने किसी विक्षिप्त इंसान को हम इधर से उधर भटकता देखते हैं, तो हम इन्हें चलता-फिरता कूड़ा मानकर इनकी अनदेखी कर देते हैं।
देशभर में अधिक से अधिक पांच लाख लोग इस दशा में होंगे। क्या इन्हें एक साथ रिहैबिलेट नहीं किया जा सकता है? क्या कोई ऐसा उपाय सरकार नहीं कर सकती है, ताकि सड़क पर एक भी इंसान इस दशा में न दिखे। आवारा कुत्तों तक को ट्रांसपोर्ट करने के लिए वाहन हैं, लेकिन विक्षिप्तों के लिए नहीं हैं।
500 में से 55 घरों को लौटे: योगेश बताते हैं कि पांच साल में उनकी टीम ने महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से पांच सौ विक्षिप्तों को मानसिक उपचार केंद्र में भर्ती कराया है। 55 लोग स्वस्थ होने के बाद अपने-अपने घरों को लौट गए और अब सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। वहीं करीब 250 लोग ठीक तो हो चुके हैं, लेकिन उन्हें घर नसीब नहीं हो सका। शेष दो सौ लोग धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं। इनमें से कुछ महिलाएं भी हैं, जों गर्भावस्था में मिली थीं। उनके साथ बलात्कार हुआ था।