नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। चीन में दशकों बाद सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं। तमाम पाबंदियों के बावजूद लोग शंघाई की सड़कों (वूलुमुकी लू) पर उतर आए। ये सड़क शिनजियांग के उस शहर के नाम पर है जहां पिछले हफ्ते एक इमारत में आग लगने से दस लोगों की मौत हो गई। राजधानी बीजिंग से शुरू हुआ प्रदर्शन अब तक लॉन्चो, शियान, चोंगकिंग, वुहान, झेंगझोऊ, कोरला, होटन, ल्हासा, उरुमकी, शंघाई, नानजिंग, शिजियाझुआंग तक पहुंच चुका है। यहां तीन दिनों से लोग सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं।

एक्सपर्ट्स चीन में सरकार, और खासकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के कई कारण मानते हैं। कोरोना के बाद चीन की इकोनॉमी अपनी रफ्तार से भटक गई है। ताइवान, भारत और अमेरिका से टकराव वाली विदेश नीति में उसे नुकसान ही झेलना पड़ा है। सेहत के मोर्चे पर भी चीन लगातार संकट में घिरा है। तमाम कवायदों के बावजूद चीन कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है और कोविड लॉकडाउन ने नागरिकों का जीना दूभर कर दिया है। आइए सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं चीन में मची उथल-पुथल को।

कोरोना नियंत्रण में चीन नाकाम

चीन में जीरो कोविड पॉलिसी के बावजूद कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक चीन में पिछले 7 दिनों में कोरोना के 1,48,322 नए मामले दर्ज किए गए हैं और 418 लोगों की मौत हुई है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि चीन में स्थिति बहुत विस्फोटक है। लोग शी जिनपिंग की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। बैंकिंग और रियल एस्टेट इंडस्ट्री बहुत खराब हाल में है। वहां अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होने के साथ ही जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर लोगों में काफी रोष है।

जिनपिंग के खिलाफ नारेबाजी

हाल में हंगामा शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी के एक अपार्टमेंट में आग लगने के बाद शुरू हुआ। इस घटना में 10 लोगों की जान चली गई। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इस प्रदर्शन ने तब उग्र रूप ले लिया जब यह बात सामने आई कि लॉकडाउन के कारण दमकलकर्मियों को घटनास्थल तक पहुंचने में देर हुई।

चीन में जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर हो रहे बवाल के वीडियो और इमेज वायरल हो रहे हैं। इनमें छात्र खाली सफेद पोस्टर पकड़े नारे लगा रहे हैं और लोकतंत्र और बोलने की आजादी की मांग कर रहे हैं। शंघाई में हुए विरोध प्रदर्शनों के वीडियो में लोगों को खुलेआम जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध नारेबाजी करते हुए सुना जा सकता है।

विश्वविद्यालयों तक पहुंचा विरोध

यह प्रदर्शन चीन के चेंगदू, गुआंगझोउ और वुहान तक फैल गया है, जहां लोगों ने कोविड प्रतिबंधों को खत्म करने की मांग की है। चीन में इस तरह का दृश्य आम नहीं है। दरअसल यहां सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी विरोध की आवाजों को दबा देती है। इस बार भी पुलिस को शंघाई में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करते देखा जा सकता है। कोविड प्रतिबंधों का यह विरोध बीजिंग और नानजिंग में विश्वविद्यालयों के कैंपस तक पहुंच गया है। रविवार तक दर्जनों यूनिवर्सिटी कैंपस में हाथों में पोस्टर पकड़े छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। 1989 में भी तियानमेन स्क्वायर पर हुए भारी विरोध प्रदर्शन की अगुवाई छात्रों ने ही की थी, जिसे कुचलने के लिए 4 जून को टैंक तक का इस्तेमाल किया गया था।

दून विश्वविद्यालय में चाइनीज स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर मधुरेंद्र कुमार झा कहते हैं कि चीन में लोगों की नाराजगी का कारण जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से उनका जीवन दुरूह होना है। वह खाने के लिए भी बाहर नहीं निकल सकते हैं। झा कहते हैं कि इकोनॉमी, विदेश नीति जैसे मसले तो चीन सरकार अपने प्रोपोगेंडा से सुलझा सकती है लेकिन कोरोना की विकराल स्थिति को दुरुस्त करना ही चीन सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। वह कहते हैं कि माओ त्से तुंग के समय भी चीन विदेश नीति के मोर्चे पर अलग-थलग पड़ा था, लेकिन तब जनता साथ थी। कोरोना की स्थिति बेहतर होने पर जिनपिंग सरकार आर्थिक और विदेश नीति पर लोगों को समझा सकती है। ऐसे में कोरोना की स्थिति सुधारना ही चीन की सरकार की प्राथमिकता होगी।

अर्थव्यवस्था में आई गिरावट

चीन की इकोनॉमी बीते कुछ समय से लगातार डगमगा रही है। चीन की अर्थव्यवस्था को अक्टूबर में व्यापक मंदी का सामना करना पड़ा क्योंकि कारखाने का उत्पादन बहुत कम बढ़ा और खुदरा बिक्री पांच महीनों में पहली बार गिर गई। हाउसिंग सेक्टर में रियल एस्टेट गतिविधियों और निगेटिव सेंटिमेंट ने ग्रोथ धीमी कर दी है। चीन के सरकारी सांख्यिकी ब्यूरो और एक आधिकारिक उद्योग समूह के आंकड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि नए ठेकों और रोजगार में गिरावट आई है। चीन में कोविड-19 पर काबू पाने के लिए शहरों में बार-बार लॉकडाउन लगाया गया। इस वजह से घरेलू बाजार में उपभोक्ता खर्च में कमी हुई।

पूर्व नेवल एविएटर और इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के फेलो अतुल भारद्वाज कहते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है। ऐसे में लोगों का कोविड पॉलिसी के साथ इकोनॉमी को लेकर भी आक्रोश है। लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि चीन की इकोनॉमी को पटरी पर लाने की कोशिशें नाकाम होती जा रही हैं। चीन में बनी चीजों की मांग घरेलू बाजार और इंटरनेशनल मार्केट दोनों जगह कम हो गई है। अमेरिका जैसी दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ उसका व्यापार युद्ध भी चीन की ग्रोथ को धीमा कर रहा है। भारद्वाज के अनुसार कोरोना लॉकडाउन ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है जिसकी वजह से लोग सड़कों पर उतर आए हैं।

चाइनीज मामलों के जानकार और जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर बी.आर. दीपक कहते हैं कि चीन में बीते एक साल में युयान में 12 फीसद तक की गिरावट आई है। चीन का व्यापार लगातार गिर रहा है। वहीं कोरोना ने कोढ़ में खाज का काम किया है। ऐसे में चीन के लोग आक्रोशित हो रहे हैं। 

बेरोजगारी बढ़ी, उद्योग-धंधे बंद हुए

चाइनीज मामलों के जानकार और जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर बी.आर. दीपक कहते हैं कि चीन में कोरोना के बाद से करीब चार लाख उद्योग-धंधे बंद हुए हैं। इससे लोगों में सरकार के खिलाफ रोष बढ़ा है। वहीं चीन में उच्च शिक्षा की पढ़ाई कर चुके युवाओं के लिए रोजगार भी कम हुआ है। कोरोना के बाद से करीब एक करोड़ युवाओं को रोजगार नहीं मिला है। बीते कुछ समय से चीन के हालात काफी बेहतर थे लेकिन कोरोना के बाद से आई गिरावट ने लोगों ने हताशा बढ़ी है। इसके परिणामस्वरुप लोग सड़कों पर उतरे हैं। दीपक बताते हैं कि युवाओं में चीन सरकार के प्रति गुस्सा बढ़ा है क्योंकि उन्हें भविष्य के प्रति अनिश्चितता दिख रही है। 

चीन की विदेश नीति में टकराव से बढ़ी विफलता

भारद्वाज कहते हैं चीन में जिनपिंग के प्रति लोगों में विश्वास था। वह पार्टी और लोगों की आकांक्षाओं के प्रतीक बन चुके थे। इसलिए मौजूदा पाबंदियों और विदेश नीति में टकराव की वजह से लोगों की नाराजगी का कारण भी बन रहे हैं। वह कहते हैं कि चीन में विरोध प्रदर्शन नहीं होता है लेकिन तियानमेन चौक के बाद यह बड़ा विरोध प्रदर्शन है जो दुनिया भर में सुर्खियों में है। लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं कि अमेरिका और भारत से टकराव का चीन को नुकसान ही हुआ है। ताइवान के मामले पर भी उसे हमेशा मुंह की खानी पड़ी है। बीते कुछ समय में चीन के अडियल रवैये और दुनिया के बड़े देशों से बिगड़ते संबंध चीन की विदेश नीति पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। ऐसे में चीनी नागरिकों के लिए आर्थिक संभावनाएं कमजोर पड़ रही हैं जो गुस्से में तब्दील हो रही है। चाइनीज मामलों के जानकार और जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर बी.आर. दीपक कहते हैं कि अमेरिका और भारत से चीन का टकराव चीन के लिए बेहतर नहीं है क्योंकि इसका असर उसकी आर्थिक स्थिति पर पड़ सकता है। ऐसे में इस तरह का विरोध चीन को नुकसान देगा। 

भारत फायदेमंद स्थिति में

एनआईटी जालंधर के चेयरमैन और पूर्व फियो प्रेसिडेंट एस.सी. रल्हन कहते हैं, “भारत के लिए आगे बढ़ने का यह सही समय है। चाहे अमेरिकी निवेशक हों या यूरोपीय, वे चीन नहीं जाना चाहते। वे भारत, ताइवान, कंबोडिया जैसे देशों की तरफ देख रहे हैं।” एसबीआई रिसर्च ने एक रिपोर्ट में कहा है कि चीन में नया निवेश कम होने का भारत को फायदा मिल सकता है।

चीन भले अमेरिका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी हो, सबसे बड़ा निर्यातक और दूसरा बड़ा आयातक हो, लेकिन फिलहाल उसकी आर्थिक स्थिति पहले जैसी नहीं लग रही। उसका कंस्ट्रक्शन सेक्टर संकट में है, जिससे बैंक प्रभावित हो रहे हैं। लगातार 11 महीने घरों की बिक्री घटी है। कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन से चीन अप्रैल-जून 2022 तिमाही में किसी तरह निगेटिव ग्रोथ से बचा है। पिछली तिमाही में उसकी जीडीपी ग्रोथ सिर्फ 0.4% थी। गोल्डमैन साक्स ने इस साल चीन की ग्रोथ का अनुमान 3.3% से घटाकर 3% और नोमुरा ने 3.3% से घटाकर 2.8% किया है। मोहन भंडारी कहते हैं कि भारत के लिए फिलहाल कोई चिंता की बात नहीं है। हालांकि ये विरोध अगर लम्बा चलता है तो भारत के लिए आर्थिक और राजनीतिक तौर कई अवसर पैदा होंगे। चाइनीज मामलों के जानकार और जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर बी.आर. दीपक कहते हैं कि पश्चिमी देश का चीन से मोहभंग हो रहा है वह भारत की तरफ रुख कर रहे हैं। जापान और कोरिया की कंपनी भी भारत को चीन के मुकाबले एक बेहतर स्थान के तौर पर देख रही है। इसलिए भारत के लिए चीन का बढ़ता विरोध मौका है। दीपक कहते हैं कि हमें अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को और दुरुस्त करने की आवश्यकता है। भारत में निवेश के अवसर बढ़ेंगे। 

जिनपिंग की चुनौतियां

विशेषज्ञों के अनुसार माओत्से तुंग के बाद जिनपिंग चीन के सबसे ताकतवर नेता हैं। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि माओ की तर्ज पर जिनपिंग के विचारों को भी पार्टी की नीतियों में शामिल किया गया है। लेकिन जिनपिंग के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। अमेरिका से झगड़ कर उन्होंने चीन में राष्ट्रवाद की भावना तो भड़का दी, लेकिन कोविड से कराहती अर्थव्यवस्था को राह दिखाना भूल से गए। रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत, ताइवान, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए झगड़ों से भी चीन की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची है। चाइनीज मामलों के जानकार और जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर बी.आर. दीपक कहते हैं कि अमेरिका और भारत से टकराव का असर चीन की ग्लोबल छवि पर भी पड़ रहा है। अमेरिका उसे दुनिया भर में अलग-थलग करने की कोशिश में लगा है। वहीं इस दौरान भारत का उभार विश्व फलक पर तेजी से हुआ है। जो चीन के लिए बड़ी मुश्किल है। 

लेफ्टिनेंट जनरल भंडारी कहते हैं कि जनता एक सीमा तक ही सरकार या किसी का भी दबाव बर्दाश्त करती है। उसके बाद लोग सड़कों पर क्रांति के लिए उतर ही आते हैं। आज चीन में जो भी नीतियां हैं वो राष्ट्रपति जिनपिंग के नेतृत्व में ही बनाई गई हैं। उन नीतियों की नाकामी की वजह से ही लोग उनका विरोध कर रहे हैं। यही हाल रहा तो चीनी राष्ट्रपति के लिए पद पर बने रहना मुश्किल हो जाएगा।