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नक्सलियों की अब रीयल एस्टेट में भी एंट्री

नक्सली अब लेवी के माध्यम से वसूली राशि का निवेश रीयल एस्टेट (जमीन-जायदाद के कारोबार) में कर रहे हैं। उत्तर बिहार में ऐसा देखने को मिला है, जहां प्रतिबंधित संगठनों के कुछ नेताओं ने जमीन खरीदी है। जमीन की ऐसी खरीद पर सरकार भी नजर रख रही है

By anand rajEdited By: Published: Thu, 27 Nov 2014 09:14 AM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 09:26 AM (IST)
नक्सलियों की अब रीयल एस्टेट में भी एंट्री

पटना (एसए शाद)। नक्सली अब लेवी के माध्यम से वसूली राशि का निवेश रीयल एस्टेट (जमीन-जायदाद के कारोबार) में कर रहे हैं। उत्तर बिहार में ऐसा देखने को मिला है, जहां प्रतिबंधित संगठनों के कुछ नेताओं ने जमीन खरीदी है। जमीन की ऐसी खरीद पर सरकार भी नजर रख रही है।

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गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर वर्ष माओवादी लेवी के जरिये करीब 140 करोड़ रुपये की वसूली करते हैं। यह राशि अब तक केवल हथियार एवं विस्फोटक खरीदने पर खर्च होती रही है। सोने के बिस्कुट भी खरीदे जाते हैं, ताकि इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके। सरकार की ताजा रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के कई नेताओं ने जमीन में निवेश किया है। संगठन की उत्तर-पश्चिम प्रमंडलीय कमेटी के सचिव रामबाबू राम उर्फ राजन, उत्तर बिहार तिरहुत सब जोनल कमेटी के पूर्व सचिव देवेंद्र सहनी उर्फ रत्नाकर, उत्तर बिहार पश्चिमी जोनल कमेटी के पूर्व जोनल कमांडर दीनबंधु पासवान उर्फ धीरज द्वारा खरीदी गई जमीन पर सरकार की विशेष नजर है, क्योंकि यह सीआरपीएफ कैंप से सटी है। मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी सड़क पर झापा मोड़ के निकट स्थित पेट्रोल पंप के समीप यह प्लाट काफी बड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसे दो लाख रुपये प्रति कट्ठे की दर से किसी दूसरे व्यक्ति के नाम खरीदा गया है। राजन ने शिवहर के राम किशुन राम, रत्नाकर ने सीतामढ़ी के रामचंद्र सहनी और धीरज ने शिवहर के जय पासवान के नाम पर जमीन खरीदी है। मुजफ्फरपुर का सीआरपीएफ कैंप इस प्लाट से मात्र 200 मीटर की दूरी पर है। इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनेलाइसिस के अनुसार, संगठन में सभी स्तर की समितियों द्वारा लेवी वसूली जाती है। 2007 में आयोजित हुए संगठन के नौवें ‘यूनिटी कांग्रेस’ में नक्सलियों ने अपनी ‘वित्तीय नीति’ भी बनाई है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि वसूली राशि का दुरुपयोग न हो। 12 फरवरी, 2014 को संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया था कि 20 राज्यों के 203 जिलों में पांव पसार चुके नक्सली हर वर्ष 140 करोड़ रुपये की वसूली करते हैं।


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