सरकार को मुंह चिढ़ाती, कराहती राष्ट्रीय चैंपियन की कहानी
सरकार कितने ही दावे करे लेकिन देश में क्रिकेट को छोड़ अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ियों का हाल ठीक नहीं है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रहने वाले कृष्णा रौथ की कहानी कुछ ऐसी ही है। कृष्णा राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सिंग चैंपियन रह चुके हैं।
कोलकाता । सरकार कितने ही दावे करे लेकिन देश में क्रिकेट को छोड़ अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ियों का हाल ठीक नहीं है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रहने वाले कृष्णा रौथ की कहानी कुछ ऐसी ही है। कृष्णा राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सिंग चैंपियन रह चुके हैं। लेकिन उनके अंदर बसे चैंपियन का उत्साह जीवन की दुश्वारियों में कहीं खो गया है।
कष्णा ने वर्ष 1987 में अखिल भारतीय आमंत्रण बॉक्सिंग चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीता था। तब उनकी उम्र 15 साल की थी। अब कष्णा की उम्र 43 साल की है। जीविकोपार्जन के लिए वे हावड़ा नगर पालिका में सफाई कर्मी का काम करते हैं और दिनभर में 200 रुपए से कुछ ज्यादा कमा लेते हैं। लेकिन यह कमाई उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं।
कृष्णा के मुताबिक वह अस्थाई कर्मचारी हैं। 232 रुपए रोज के हिसाब से उन्हें महीने में 4000 से 5000 रुपए मिलते हैं। इस आमदनी से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता है। यही नहीं कृष्णा के घर में उसका एक लड़का और लड़की है, दोनों ही पढ़ाई कर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे कृष्णा ने कहा कि उन्होंने कई जगह नौकरी के लिए साक्षात्कार दिए लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। लोगों ने सिर्फ झूठे वादे किए। मेरी उपलब्धियों की वजह से मुझे कोई नौकरी नहीं मिली। सरकार ने भी कभी मेरी सुध नहीं ली।
कृष्णा रौथ की पत्नी ने कहा कि सम्मान सब कुछ नहीं है। हमे मदद की जरुरत है । फिलहाल कृष्णा अपने जीवन संघर्ष को बेहतर भविष्य की कल्पना में जिए जा रहा है।