ट्रिपल तलाक पर सुधारों को स्वीकारने को तैयार नहीं मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड
बोर्ड ने साफ कर दिया है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा है और इसमें बदलाव संभव नहीं हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एमपीएलबी) दुनिया में हो रहे सुधारों को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है। तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह पर सुप्रीम कोर्ट में पेश लिखित दलील में बोर्ड ने कहा कि अदालत दुनिया भर में मुस्लिम पर्सनल लॉ में हो रहे बदलावों पर गौर करने के बजाय भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों को मिली धार्मिक आजादी को सुनिश्चित करे। बोर्ड ने साफ कर दिया है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा है और इसमें बदलाव संभव नहीं हैं।
दूसरे देशों में मुस्लिम पर्सनल लॉ में हो रहे बदलावों को भारत में लाने का विरोध करते हुए बोर्ड ने कहा कि यहां के सुन्नी संप्रदाय के लोग इस्लाम के हनफी, शाफई, हंबली और मलिकी स्कूल की विचारधारा को मानते हैं। ये चारों विचारधारा तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह को इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग के रूप में देखता है। दूसरे देशों में इस्लाम की दूसरी विचारधारा को मानने वाले यदि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून बनाते हैं, तो वह भारत के मुसलमानों को लिए मान्य नहीं हो सकता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन दलीलों को भी खारिज कर दिया है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसे रिवाज आम नागरिकों को संविधान से मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। बोर्ड का कहना है कि संविधान ने अल्पसंख्यकों को अपने धर्म और रीति-रिवाज को मानने की पूरी आजादी देता है और अन्य किसी भी अधिकार की आड़ में इससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।
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