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इस्लाम 'हिंदू' भी है

सांप्रदायिकता के रेगिस्तान में आजकल बहुत ही खूबसूरत इंसानी फूल खिल रहा है। इस फूल से अहले मोमिन का नाम है इस्लाम, मगर वह रामलीला में अभिनय के दौरान राम के तराने गाता है। रामचरित मानस की चौपाइयों का उच्चारण करता है तो प्रकांड पंडितों की भी आंखें खुली रह जाती हैं। इस्लाम रोजे रखता है तो होली के

By Edited By: Published: Wed, 09 Oct 2013 01:15 AM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2013 01:17 AM (IST)
इस्लाम 'हिंदू' भी है

मुजफ्फरनगर, [अरशद आशू]। सांप्रदायिकता के रेगिस्तान में आजकल बहुत ही खूबसूरत इंसानी फूल खिल रहा है। इस फूल से अहले मोमिन का नाम है इस्लाम, मगर वह रामलीला में अभिनय के दौरान राम के तराने गाता है। रामचरित मानस की चौपाइयों का उच्चारण करता है तो प्रकांड पंडितों की भी आंखें खुली रह जाती हैं। इस्लाम रोजे रखता है तो होली के रंगों में सराबोर भी होता है। ईद की नमाज के दौरान सजदानशीं होता है तो दिवाली पर लक्ष्मी पूजन कर प्रेम और मोहब्बत की रोशनी बिखेरता है।

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आगरा के फतेहपुर सीकरी निवासी इस्लाम नफरत के सौदागरों के लिए नसीहत है। रामलीला में चार दशक से जुड़े कलाकार इस्लाम की सनातन और इस्लाम दोनों धर्मो में आस्था है। दरअसल, इस्लाम की पूरी जिंदगी पर ही नजर दौड़ाई जाए तो नफरत और हैवानियत को मुंह छिपाने की भी जगह न मिले। नाम है उसका इस्लाम, लेकिन बंगाली घाट मथुरा वाले पंडित श्याम लाल शर्मा ने उसका लालन-पालन किया। इस्लाम पंडित जी को पिता का सम्मान देता तो पंडित जी इस्लाम को अपना लख्ते जिगर समझते थे। पांच साल की उम्र में ही श्यामलाल ने इस्लाम को अभिनय के गुर सिखाने शुरू कर दिए थे। बचपन में ही उसे रामचरित मानस कंठस्थ हो गई। पंडित जी के दुलार से अभिभूत होकर इस्लाम ने अपना नाम हरि शर्मा रख लिया। इस्लाम ने बताया कि पंडित जी उसे हमेशा इस्लाम धर्म का सम्मान करने की सलाह देते थे। कुछ समय बाद पंडित श्यामलाल का निधन हो गया और इस्लाम हरि से फिर इस्लाम हो गया, लेकिन उसने हिंदू धर्म के तीज-त्योहारों और रामलीला का दामन नहीं छोड़ा। आज इस्लाम रामलीला के अभिनय के क्षेत्र में स्थापित नाम है। इस काम का परिजनों ने विरोध भी किया, लेकिन उसने कभी परवाह नहीं की। इस्लाम ने बताया कि रामलीला में अभिनय के दौरान वह पात्र की भूमिका में पूरी तरह डूब जाता है।

इस्लाम का खानदानी काम कव्वाल का है। उसका भाई इकराम व पुत्र इमरान कव्वाल हैं। पिता मोहम्मद रफी ग्वालियर महाराज के यहां गायक थे।

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