मुंबई: कचड़े व अतिक्रमण की वजह से मुलुंड में सांस लेना दूभर
मुंबई के मुलुंड निवासियों को वहां के डंपिंग ग्राउंड व अतिक्रमण ने जीना मुहाल कर दिया है।
मुंबई, मिड डे। टी वार्ड में शहर का सबसे तेज विकसित होने वाली जगह मुलुंड शामिल है। यहां 70 फीसद से अधिक आवासीय फ्लैट हैं और रोजाना नये भवनों का निर्माण हो रहा है। बाकी बचे क्षेत्रों में झुग्गियों की बस्ती है जो संजय गांधी नेशनल पार्क के दीवार के साथ है।
हालांकि, मुलुंड में बुनियादी ढांचे और नागरिक सुविधाओं के साथ हाउसिंग सेक्टर में विकास का तालमेल नहीं है, जिससे 5.1 लाख निवासियों के लिए कई मुश्किलें आएंगी।
यात्री बूढ़े हुए पर यह ट्रेन अब भी जवां... 86 वर्ष हुए पूरे
मुलुंड डंपिंग ग्राउंड की वजह से आस-पास रह रहे लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है, और यह धुएं से नहीं बल्कि वहां लगातार लगने वाले आग के कारण फैली भयंकर बदबू से। ऐसे ही आग के कारण देवनार डंप यार्ड भी खबरों में रहा। मुलुंद डंपिंग यार्ड की भी हालत अच्छी नहीं विशेष तौर पर वहां से 100 मीटर की दूरी पर हरिओम नगर के निवासियों के लिए यह काफी कष्टप्रद है।
पैदल चलने वाले राहगीरों के लिए इस्ट या वेस्ट मुलुंड में फुटपाथ नहीं बचा है। अधिकांश फुटपाथों का अतिक्रमण कर लिया गया है, यहां हाकर्स और दुकान वालों ने गैरकानूनी तरीके से कब्जा किया हुआ है। जबकि अन्य को कंस्ट्रक्शन मटीरियल या अन्य मलबों से बंद कर दिया गया है। लोगों को मजबूर हो सड़कों पर भारी ट्रैफिक में से रास्ता खोजकर निकलना पड़ता है।
जानें, देश की दूसरी सबसे बड़ी रेड लाइट एरिया की किस तरह बदल रही तस्वीर
मुलुंद में काफी कम प्लेग्राउंड हैं, इनकी देखरेख उचित तरीके से नहीं की जाती है। इन प्लेग्राउंड्स को पार्किंग का रूप दे दिया गया है दूसरे शब्दों में गाड़ी खड़ी करने के लिए अतिक्रमण कर लिया गया है। अन्य पार्कों में असामाजिक तत्वों जैसे नशेरियों और जुआरियों का अड्डा है। कुछेक की देखरेख हुई भी है तो उसमें बेसिक सुविधाएं जैसे शौचालय आदि नहीं है।