समुद्र के नीचे से भी गुजरेगी मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन
पिछले दिनों नीति आयोग ने मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना की प्रगति की समीक्षा की। आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में जापानी अधिकारियों ने भी शिरकत की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा समुद्र के नीचे से गुजरेगा। इसके लिए जमीन की ड्रिलिंग कर मिट्टी की जांच का काम शुरू हो गया है। साल के अंत तक परियोजना का निर्माण कार्य शुरू होने की उम्मीद है।
पिछले दिनों नीति आयोग ने मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना की प्रगति की समीक्षा की। आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में जापानी अधिकारियों ने भी शिरकत की। बैठक में परियोजना का काम तेज करने तथा जल्द से जल्द पर्यावरण मंजूरियां लेने की बात तय हुई। इस प्रोजेक्ट को लेकर नीति आयोग की यह चौथी बैठक थी। नीति आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक परियोजना से संबंधित सामान्य परामर्शदाता ने दिसंबर 2016 से कार्य प्रारंभ कर दिया था। अब अगला चरण पर्यावरणीय प्रभावों के अध्ययन (ईआइए) का है। साल के अंत में जब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत दौरे पर आएंगे, तब इसका भूमि पूजन होने की उम्मीद है। इसके बाद 2018 के अंत तक वास्तविक निर्माण कार्य प्रारंभ होने तथा 2023 के अंत तक ट्रेन सेवाएं प्रारंभ होने की संभावना है।
97,636 करोड़ की मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को लग सकता है झटका
मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन या हाईस्पीड परियोजना 508 किलोमीटर लंबी है। 350 किलोमीटर की अधिकतम तथा 320 किलोमीटर की औसत रफ्तार के हिसाब से इस दूरी को कवर करने में बुलेट ट्रेन को तकरीबन दो घंटे लगेंगे। परियोजना पर 97,636 करोड़ रुपये की लागत आंकी गई है। इसमें से 81 प्रतिशत राशि जापान सरकार के 0.1 फीसद ब्याज वाले कर्ज के रूप में दे रही है।
कुछ हिस्सा समुद्र के नीचे :
प्रोजेक्ट का अधिकांश हिस्सा एलीवेटेड यानी जमीन के ऊपर खंभों पर होगा। लेकिन थाणे से विरार के बीच का 21 किलोमीटर हिस्सा सुरंग से गुजरेगा। इसमें भी सात किलोमीटर का हिस्सा समुद्र की सतह के नीचे से होकर जाएगा। भारत में यह पहला मौका होगा जब कोई रेलवे लाइन समुद्र की सतह के नीचे से होकर जाएगी। यहां समुद्र की गहराई तकरीबन 70 मीटर है। लिहाजा यह लाइन तकरीबन 100 मीटर नीचे से होकर गुजरेगी। इसके लिए समुद्र के भीतर जमीन, चट्टानों और मिट्टी की जांच का कार्य शुरू कर दिया गया है। थाणे और विरार के बीच सुरंग बनाने की जरूरत इस क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण की अड़चनों के मद्देनजर महसूस की गई। यह क्षेत्र काफी हरा-भरा है और जमीन के ऊपर से लाइन ले जाने से पर्यावरण को नुकसान होने का अंदेशा था।