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बेटे को किसान बनाने के लिए मां ने छोड़ी 90 हजार रुपए प्रति माह की नौकरी

रेलवे में कैशियर पिता ने भी लंबी छुट्टी ले ली है और जल्द ही वह भी नौकरी छोड़ने जा रहे हैं।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 11:05 AM (IST)Updated: Mon, 24 Apr 2017 11:24 AM (IST)
बेटे को किसान बनाने के लिए मां ने छोड़ी 90 हजार रुपए प्रति माह की नौकरी
बेटे को किसान बनाने के लिए मां ने छोड़ी 90 हजार रुपए प्रति माह की नौकरी

इंदौर, जेएनएन। यह खबर हैरत में डालने वाली है। आज के दौर में जब ज्यादातर माता-पिता का सपना बच्चों को बड़े स्कूलों में पढ़ाकर अच्छी नौकरी दिलाना होता है, वहीं एक दंपती ऐसा भी है जिन्होंने अपने बेटे को किसान बनाने की ठानी है। इस मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने न केवल राजस्थान छोड़कर इंदौर के पास असरावद बुजुर्ग गांव में बसेरा बना लिया, बल्कि मां चंचल कौर ने रेलवे की 90 हजार पए प्रति महीने वेतन वाली सीनियर मैट्रन की नौकरी भी छोड़ दी।

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रेलवे में कैशियर पिता राजेंद्र सिंह ने भी लंबी छुट्टी ले ली है और जल्द ही वह भी नौकरी छोड़ने जा रहे हैं। आठ साल के बेटे गुरबख्श सिंह की बुआ को कैंसर होने के बाद दंपती ने यह फैसला लिया है। कई गांवों का सर्वे करने के बाद खरीदी जमीन राजेंद्र सिंह और चंचल कौर ने अजमेर से आकर करीब छह महीने पहले असरावद बुजुर्ग गांव में दो बीघा जमीन खरीदी है। उनका इस गांव से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने परिचितों से इंदौर के बारे में सुना था। उन्होंने आसपास के कई गांवों का सर्वे किया। उपजाऊ जमीन, बच्चे की पढ़ाई, कनेक्टिविटी आदि को देखते हुए असरावद बुजुर्ग को चुना।

बेटे गुरबख्श का एडमिशन यहां से करीब 25 किमी दूर इंदौर के एक केंद्रीय स्कूल में करा दिया। साथ ही खेत में ही घर बनाने का काम भी शुरू कर दिया। बकौल राजेंद्र, उनका घर सौर ऊर्जा से रोशन होगा और इसी से खाना भी बनेगा।

इस तरह चल रही गुरबख्श की ट्रेनिंग

आठ साल का गुरबख्श इन दिनों किसान बनने की ट्रेनिंग ले रहा है। पूरा परिवार सुबह छह बजे से आसपास के खेतों में जाकर खेती की बारीकियां समझता है। गुरबख्श के स्कूल से लौटने के बाद ट्रेनिंग फिर शुरू होती है। उसे गाय, भैंस और बकरियों के बीच रखकर पूरी तरह गांव के महौल में ढालने की कोशिश हो रही है।

यह फैसला इसलिए, ताकि लोगों को कैंसर से बचा सकें। छह महीने पहले मेरी बहन कैंसर की चपेट में आ गई। अभी उसका इलाज चल रहा है। यह हमारी जिंदगी का यू-टर्न था। इलाज के दौरान हमें पता चला कि इस बीमारी की बड़ी वजह रासायनिक व जहरीले खाद्य पदार्थ हैं। इसके बाद हम पति-पत्नी ने तय किया कि अब हम भी खेती करेंगे। बेटे को इसलिए किसान बनाना चाहते हैं, ताकि वह लोगों को जैविक अनाज और सब्जियां उपलब्ध कराए और कैंसर से बचा सके। खेत में रसायन का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करेंगे। - राजेंद्र सिंह, गुरबख्श के पिता

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