जानें, क्यों 2000 करोड़ में से सिर्फ 0.4% राशि ही पहुंच पाई PoK से आए लोगों तक
गृह मंत्रालय द्वारा प्राप्त सूचना के मुताबिक, अभी सिर्फ 0.4 फीसद यानि 9.33 करोड़ रुपये ही 170 परिवारों तक पहुंचे हैं।
बेगलुरु, जेएनएन। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आकर जम्मू-कश्मीर में बसे हजारों लोग आज भी केंद्र सरकार द्वारा मंजूर की गई सहायता राशि का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने पीओके से आए लोगों के लिए 2000 करोड़ रुपये के विकास पैकेज को मंजूरी पिछले साल दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने 36,384 परिवारों को और अधिक वित्तीय सहायता देने के गृह मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। हर परिवार को 5.5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जानी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, अभी तक जम्मू-कश्मीर में बसे ऐसे ज्यादातर लोगों तक केंद्र द्वारा मंजूर सहायता राशि नहीं पहुंची है। इसकी एक वजह राज्य सरकार भी है। गृह मंत्रालय द्वारा प्राप्त सूचना के मुताबिक, अभी सिर्फ 0.4 फीसद यानि 9.33 करोड़ रुपये ही 170 परिवारों तक पहुंचे हैं। ये पैसा परिवारों तक आधार से जुड़े बैंक खातों के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है।
दरअसल, केंद्र इस राशि को जम्मू-कश्मीर सरकार के पास भेजेगा और राज्य सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए राशि विस्थापित परिवारों तक पहुंचा रही है। ये लोग जम्मू, कठुआ और राजौरी जिले में बसे हैं। लेकिन दुविधा यह आ रही है कि पीओसे आए ये लोग अपना आधार कार्ड की नहीं बनवा पा रहे हैं। इसी वजह से सहायता राशि लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। इन परिवारों के हक की लड़ाई लड़ रहे संगठन 'अखिल राज्य पंडित सम्मेलन' और जम्मू और कश्मीर शरणार्थी एक्शन कमेटी के लोगों का कहना है कि आधार से जुड़े बैंक खाते में ही पैसा ट्रांसफर हो रहा है। आधार की वजह से की देरी की मुख्य वजह बनी हुई है।
अखिल राज्य पंडित सम्मेलन के महासचिव टीके भट्ट बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर सबसे कम नामांकन वाले राज्यों में से एक है। हम जमीनी सच्चाई से वाकिफ हैं। हमें सालों से शरणार्थियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमें लंबी-लंबी कतारों में घंटों तक लगे, लेकिन हमारा आधार कार्ड नहीं बन पाया।
बेंगलुरु में काम कर रहे एक कश्मीरी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा पीओके से आकर बसे लोग जब आधार के लिए अप्लाई करते हैं तो अन्य राज्यों के विपरीत, जम्मू-कश्मीर के अधिकारी एक्नॉलेजमेंट नहीं देते हैं। इसीलिए आधार नहीं बन पाते हैं।
बता दें कि इनमें से अधिकतर विस्थापित परिवार जम्मू क्षेत्र में रहते हैं। इसमें से कुछ परिवार 1947 के बंटवारे में भारत आए थे तो कुछ 1965 और 1971 के जंग के बाद आए थे।
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