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गौरव के पल : स्वाधीनता की राह में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में देश को मिली खास पहचान

स्वतंत्रता के बाद पिछले 75 वर्षों में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में देश को मिली खास पहचान के पीछे स्वाभिमान और स्वावलंबन के साथ आगे बढ़ने वाले हमारे विज्ञानियों का अनथक परिश्रम रहा है। 25 वर्ष बाद हम दुनिया के सामने एक महाशक्ति के रूप में होंगे...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2022 04:55 PM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2022 04:55 PM (IST)
गौरव के पल : स्वाधीनता की राह में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में देश को मिली खास पहचान
भारत का यह अभियान सफल हो गया।

नई दिल्‍ली, फीचर डेस्क। 1947 में जब हमें अंग्रेजों से आजादी मिली, तब हमारे देश में विज्ञान और तकनीक के मामले में उपलब्धियां लगभग शून्य थीं। पर राजनीतिक इच्छाशक्ति, देशप्रेम के जज्बे और हमारे विज्ञानियों की कर्मठता ने हमें रिकार्ड समय में दुनिया में पहचान दिला दी। बात चाहे अंतरिक्ष अभियान की हो, उन्नत मिसाइलों का निर्माण हो, रक्षा उपकरणों की बात हो या फिर कृषि में आत्मनिर्भरता की... तमाम क्षेत्रों में समर्पित विज्ञानियों ने देश को न केवल स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ाया, बल्कि दुनिया में देश का मस्तक ऊंचा कराया।

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इसरो ने किया गौरवान्वित

भारत जब आजाद हुआ था, तो कोई भी इस उभरते हुए देश से उम्मीद नहीं कर रहा था कि यह इतनी जल्दी अंतरिक्ष में एक बड़ा मुकाम हासिल कर लेगा। महान विज्ञानी डा. विक्रम अंबालाल साराभाई के प्रयासों से 1962 में इंडियन नेशनल कमिटी फार स्पेस रिसर्च का गठन किया, जिसे बाद में इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के नाम से जाना गया।

वर्ष 1975 में देश के पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को प्रक्षेपित करने के बाद इसरो को एक बड़ी कामयाबी वर्ष 1979 में मिली। वर्ष 1975 में ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह को प्रक्षेपित करने के बाद इसरो को एक और बड़ी कामयाबी वर्ष 1979 में मिली। इसरो द्वारा निर्मित पहले प्रायोगिक सुदूर संवेदन उपग्रह (एक्सपेरिमेंटल रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट) भास्कर-1 को 7 जून, 1979 को तत्कालीन सोवियत संघ के वोल्गोग्राड लांच स्टेशन (वर्तमान में रूस में) से सी-1 इंटरकासमास व्हीकल के जरिए प्रक्षेपित किया गया था। अंतरिक्ष में प्रायोगिक सुदूर संवेदन उपग्रह भेजने का यह भारत का पहला प्रयास था। अपने इस पहले ही प्रयास में इसरो को बड़ी कामयाबी मिली।

चांद और मंगल तक का सफर

भारत में जब सीमित संसाधनों के साथ अतंरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि देश चांद और मंगल तक अपना यान भेज सकता है। मगर इसरो ने चंद्रयान मिशन-एक के जरिए दुनिया को दिखा दिया कि भारत अंतरिक्ष में केवल चांद तक ही नहीं, बल्कि उससे भी कहीं आगे जा सकता है। 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-एक का सफल प्रक्षेपण कर इसरो ने दुनिया को चकित कर दिया।

चंद्रयान-1 के बाद वर्ष 2014 में मंगल मिशन की कामयाबी ने देश को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों की कतार में ला खड़ा किया। अपने पहले ही प्रयास में इसरो के विज्ञानियों द्वारा बनाए गए मंगलयान का मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचना देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। यह भारत का पहला मंगल अभियान था। खास बात यह थी कि भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। अमेरिका, रूस और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसियां भी अपने पहले प्रयास में मंगल ग्रह तक नहीं पहुंच पाई थी। मंगलयान को पांच नवंबर, 2013 को सतीश धवन स्‍पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) से लांच किया गया था। 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचने के साथ ही भारत का यह अभियान सफल हो गया।

104 सैटेलाइट भेजने का कीर्तिमान

इसरो ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज कर दुनिया को दिखा दिया था, तो वह इस मामले में अन्य देशों से कितना आगे है। इस सफल प्रक्षेपण में भारत के तीन सैटेलाइट शामिल थे, जबकि इनमें अमेरिका के अलावा इजरायल, हालैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के भी सैटेलाइट शामिल थे। आपको बता दें कि 104 उपग्रहों में अमेरिका के 96 उपग्रह शामिल थे।

डीआरडीओ

देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की अहम भूमिका रही है। चाहे रक्षा तकनीक के मामले में देश को आगे ले जाना हो या फिर कोविड के दौरान पीपीई किट, सैनिटाइजर, वेंटिलेटर, उन्नत अस्पतालों आदि का निर्माण हो, डीआरडीओ हमेशा अग्रणी रहा है। डीआरडीओ के प्रयासों से भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में अभूतपूर्व सफलता मिली है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में केवल 10 प्रयोगशालाओं की साथ शुरू हुई थी, आज यह 50 से अधिक प्रयोगशालाओं वाला बड़ा संगठन है।

कोविड काल में सराहनीय योगदान

कोविड महामारी से लड़ने में डीआरडीओ का योगदान सराहनीय रहा है। संगठन की 50 प्रयोगशालाओं ने भारत में कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए युद्ध स्तर पर 50 प्रकार की प्रौद्योगिकियों और 100 उत्पादों का विकास किया। उसने पीपीई किट, सैनिटाइजर्स, मास्क, यूवी आधारित स्टरलाइजेशन सिस्टम, वेंटिलेटर के महत्वपूर्ण भाग आदि उपलब्ध कराए, जिससे देश बहुत कम समय में वेंटिलेटर निर्माण में सक्षम हो गया।

अंटार्कटिका में भारत के कदम

भारत के अंटार्कटिका अभियान की शुरुआत वर्ष 1981 में हुई थी। पहली यात्रा के दौरान डा. एसजेड कासिम के नेतृत्व में 21 विज्ञानियों की टीम थी। बर्फीले अंटार्कटिका महाद्वीप पर पहला भारतीय अभियान दल नौ जनवरी, 1982 को पहुंचा था। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। भारत ने 1983-84 में अंटार्कटिका में दक्षिण गंगोत्री नाम से अपना पहला स्टेशन स्थापित किया था। अंटार्कटिका में स्थिति स्टेशन से वैज्ञानिक शोध कार्यों में मदद मिलती है। आज अंटार्कटिका में मैत्री और भारती नामक दो अनुसंधान केंद्र आपरेशनल हैं। नेशनल सेंटर फार पोलर ऐंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर), गोवा, पूरे भारतीय अंटार्कटिका कार्यक्रम का प्रबंधन करता है।

स्वदेशी सुपर कंप्यूटर परम

देश में सबसे पहले सुपर कंप्यूटर अमेरिका से लाने की कोशिश हुई थी, लेकिन उस समय अमेरिका ने सुपर कंप्यूटर देने से इनकार कर दिया था। 1980 के दशक के अंत में स्वदेशी तरीके से सुपर कंप्यूटर बनाने की शुरुआत हुई। इसके लिए सेंटर फार डेवलपमेंट आफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग यानी सी-डैक की स्थापना मार्च 1988 की गई। इसके सिर्फ तीन साल के भीतर ही भारतीय विज्ञानियों ने सुपर कंप्यूटर परम तैयार कर दुनिया को चकित कर दिया। जुलाई 1991 में भारत का पहला सुपर कंप्यूटर परम 8000 सामने आया। यह भारत का अपना खुद का बनाया सुपर कंप्यूटर था। इसका नाम 'परम' संस्कृत से लिया गया है। मल्टीप्रोसेसर मशीन परम 8000 को 5 जीफ्लोप्स पर बेंचमार्क किया गया था। यह उस समय दुनिया का दूसरा सबसे तेज सुपर कंप्यूटर बन गया।

आधार का सफर

भारत में आधार कार्ड एक महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज है, जिसका उपयोग इन दिनों बैंक में खाता खुलवाने से लेकर स्कूलों में बच्चों के एडमिशन तक में होता है। भारत में अब तक 133 करोड़ से अधिक आधार नंबर जारी किए जा चुके हैं। आज देश में तकरीबन 99 प्रतिशत से अधिक वयस्कों के पास आधार कार्ड मौजूद हैं। 12 अंकों वाले आधार कार्ड की शुरुआत महाराष्‍ट्र से सितंबर 2009 में हुई थी। पैन कार्ड बनवाने, आयकर रिटर्न भरने से लेकर सरकार की तमाम कल्‍याणाकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है।


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