त्वरित टिप्पणी: पीएम मोदी के मास्टर स्ट्रोक से चित विपक्षी राजनीति
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर पीएम मोदी ने विपक्षी कुनबे में दरार डाल दी है।
प्रशांत मिश्र, ऩई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से वही किया जिसके लिए वह जाने जाते हैं। भौंचक करने वाले मास्टर स्ट्रोक। रामनाथ कोविंद को भाजपा और राजग का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर जहां विपक्षी कुनबे में दरार डाल दी है। वहीं भाजपा और संघ की विचारधारा और रणनीति को धार भी दे दिया। चुनाव राष्ट्रपति का भले ही हो, निशाना लोकसभा चुनाव पर भी है। एक ही झटके में यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश हुई कि पूरे देश में दलित वर्ग का रुझान भाजपा के पक्ष में रहे और सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का नेतृत्व केवल भाजपा करे।
देश के इतिहास में यह पहली बार होगा कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे दो सर्वोच्च पद पर दक्षिणपंथी विचारधारा के व्यक्ति आसीन होंगे। मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी दबाव में आए बिना वह करेंगे जो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी भाजपा के कार्यकर्ताओं के दिल में है- यानी राष्ट्रपति भी भाजपा का हो। वहीं देश को सात प्रधानमंत्री दे चुके उत्तर प्रदेश से पहली बार कोई फुलटाइम राष्ट्रपति होगा। इससे पहले मोहम्मद हिदायतुल्ला कुछ दिनों के लिए कार्यकारी राष्ट्रपति बने थे। देश में दलित राजनीति भी खूब होती रही है लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह भी दूसरी बार ही हो रहा है कि किसी दलित को सत्तारूढ़ दल ने राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है।
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने सधे कदमों से राजनीति भी साधी है और संघ की विचारधारा भी। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी ओबीसी के साथ साथ दलितों ने खुलकर भाजपा के लिए वोट किया था। दलित नेत्री मायावती इस बाढ़ में बह गई थीं। कोविंद की उम्मीदवारी ने बची खुची विरासत पर भी प्रश्न चिह्न लगा दिया है। दक्षिण भारत भाजपा के राजनीतिक एजेंडे में उपर है। ऐसे में कोविंद कार्ड का प्रभाव वहां भी दिखे तो आश्चर्य नहीं।
कुछ अरसे पहले तक भाजपा को ब्राह्मण और बनिया की पार्टी ही माना जाता रहा था। मोदी के आगमन के साथ वह धारणा बदलनी शुरू थी। संघ की विचारधारा की बात करें तो वहां लंबे समय से एक ऐसे हिंदुत्व की परिकल्पना थी जिसमें सर्वसमाज दिखे। पिछले दिनों में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह लगातार दलितों के घर पर जाकर भोजन करते रहे हैं। मोदी सरकार की तीन साल की उपलब्धियों के प्रचार प्रसार में जुटे मंत्रियों व नेताओं को इसके प्रति सतर्क किया गया था। संघ की यह सोच कितनी पुरानी है इसका अंदाजा इससे लगाया किजा सकता है कि विहिप नेता अशोक सिंघल ने डोमराजा के घर पर भी जाकर भोजन की परंपरा डाली थी। मोदी ने देश के सर्वोच्च पद पर एक दलित को बिठाने की कवायद कर उस लंबी कोशिश को अंजाम तक पहुंचा दिया है।
पिछले कुछ दिनों से विपक्षी दलों की ओर से यह सवाल लगातार उठ रहा था कि जब तक सरकार कोई नाम लेकर नहीं आती है तब तक इस विषय पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है। घोषणा हुई तो विपक्षी दलों के पास तत्काल कोई शब्द नहीं था। अब सिर्फ यह कहकर बचने की कोशिश हो रही है कि हमे पूर्व सूचना नहीं दी गई केवल जानकारी दी गई। वैसे राष्ट्रपति उम्मीदवार किसी दलित समाज से होगा इस बात का सूत्रपात उसी दिन हो गया था जब हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि नाम न सही लेकिन संकेत उसी दिन दिया जा चुका था। अब मंशा पर सवाल खड़ा विपक्षी दल भले ही कोई उम्मीदवार उतार ले, लेकिन मास्टर स्ट्रोक ने कमाल दिखा दिया है। विपक्ष का अधूरा साथ न मिला तो भी बाजी भाजपा के हाथ होगी।
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