नरेद्र मोदी की आंधी को रोकपाने में नाकाम कांग्रेस को नहीं सूझ रहा कोई उपाय
नरेंद्र मोदी की आंधी से परेशान कांग्रेस को इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं सूझ नहीं रहा है। लिहाजा उसे विपक्षियों को एकजुट करने के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दिया।
नई दिल्ली (संजय मिश्र)। संसद से लेकर वार्ड तक नरेंद्र मोदी की चल रही चुनावी आंधी में लगातार उखड़ रहे सियासी तंबू से परेशान कांग्रेस इसको थामने का कोई ठोस रास्ता नहीं तलाश पा रही। विपक्षी दलों को एक मंच पर आने का आग्रह करने के सिवाय दूसरा रास्ता नहीं दिखा। तभी नतीजों के बाद कांग्रेस ने सभी भाजपा विरोधी दलों को अपना अहं छोड़ मोदी के खिलाफ विपक्ष की व्यापक गोलबंदी में शामिल होने के लिए कहा।
कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों की चिंता इस बात से भी ज्यादा बढ़ गई है कि देश की राजधानी दिल्ली जैसे शहर में भाजपा दस साल की अपनी सत्ता विरोधी लहर को पीएम मोदी के चेहरे के सहारे ध्वस्त करने में कामयाब रही है। दिल्ली के नतीजों के बाद कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला के बयान से भी विपक्षी की यह सियासी मन: स्थिति समझी जा सकती है।
सुरजेवाला ने कहा कि अब क्षेत्रीय दलों को समझना पड़ेगा कि अंध कांग्रेस विरोध की उनकी सोच से सियासी बात नहीं बनेगी। चुनाव दर चुनाव भाजपा की जीत की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में यह केवल चुनावी नहीं बल्कि वैचारिक संघर्ष का दौर है। इसलिए आपसी अहं के मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय हित को तवज्जो देते हुए सभी क्षेत्रीय पार्टियों को विचारधारा के इस संघर्ष में एकजुट होकर काम करना चाहिए। सुरजेवाला ने उम्मीद जताई कि वक्त की नजाकत और राजनीतिक चुनौतियों को भांपते हुए क्षेत्रीय पार्टियां इसके लिए आगे आएंगी।
आपसी अहं को छोड़ भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के कांग्रेस का यह संदेश खासतौर पर ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती और नवीन पटनायक के लिए है। पश्चिम बंगाल में वामपंथी दल और ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस धुर विरोधी हैं। तो सपा और बसपा उत्तरप्रदेश के हालिया चुनाव तक एक दूसरे के विरोधी। कांग्रेस साफ तौर पर इन पार्टियों से भाजपा की गंभीर चुनौतियों को देखते हुए एक छतरी के नीचे आने के लिए कह रही है। पश्चिम बंगाल को भी भाजपा ने अपना प्रसार करने वाले राज्यों के लक्ष्य में शामिल कर इस पर काम शुरू कर दिया है। ओडिशा में बीजद और कांग्रेस अब तक मुख्य विरोधी रहे हैं।
दिल्ली के निगम चुनाव में कांग्रेस का वोट फीसद पिछले विधानसभा के 9 फीसद के मुकाबले बढ़कर 20 फीसद पहुंच गया है। वोट प्रतिशत में इस सुधार के बावजूद कांग्रेस इसे दिल्ली ही नहीं देश की मौजूदा सियासत के लिहाज से भाजपा को रोकने के लिए संतोषजनक नहीं मान रही। इसलिए पूरा जोर अब विपक्षी की गोलबंदी करने के लिए लगाएगी। वैसे राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार उतारने की कसरत के तहत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी विपक्षी दलों को गोलबंद करने की कोशिश पहले ही शुरू कर चुकी हैं।
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