दंगा रोधी बिल पर दंगल, मोदी ने पीएम को लिखा पत्र
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। मौजूदा संसद सत्र के लिए विवाद का बड़ा मुद्दा बनने जा रहे सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक [दंगा रोधी बिल] पर दंगल शुरू हो गया है। भाजपा के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के विरोध के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां विधेयक के स्वरूप और मंशा पर सवाल उठाते हुए 'बर्बादी का तयशुदा फार्मूला' करार दे दिया। वहीं, पलटवार करते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने इसे विशुद्ध राजनीति करार दिया।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। मौजूदा संसद सत्र के लिए विवाद का बड़ा मुद्दा बनने जा रहे सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक [दंगा रोधी बिल] पर दंगल शुरू हो गया है। भाजपा के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के विरोध के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां विधेयक के स्वरूप और मंशा पर सवाल उठाते हुए 'बर्बादी का तयशुदा फार्मूला' करार दे दिया। वहीं, पलटवार करते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने इसे विशुद्ध राजनीति करार दिया। विरोध कर रहे दलों पर अंगुली उठाते हुए उन्होंने कहा कि विधेयक में संशोधन किया जा चुका है। लिहाजा इसका विरोध उनकी नीयत पर सवाल खड़ा करेगा।
सरकार इसी सत्र में विधेयक को अमली जामा पहनाना चाहती है। भाजपा कांग्रेस की इस हड़बड़ी को चुनावी बता रही है। प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मोदी ने आरोप लगाया कि सरकार दंगों को लेकर नहीं लोकसभा चुनाव को लेकर चिंतित है। मोदी ने मौजूदा विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई और इसे संघीय ढांचे तथा सामाजिक समरसता के खिलाफ बताया। उन्होंने विधेयक के खंड 3(एफ) और खंड 10 (बी) जैसे प्रावधानों खतरनाक करार दिया। मोदी ने लिखा कि मातहत की गलती के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को दंडित करने जैसे प्रावधानों का घातक असर होगा। उसी तरह 'विपरीत और शत्रुतापूर्ण माहौल' को परिभाषित करने की जरूरत है वरना इसका दुरुपयोग हो सकता है। फिलहाल जिस तरह इसे पेश किया गया है कि उसके पीछे नीयत भी खराब है और बर्बादी का कारण बन सकता है। लिहाजा सरकार को माडल विधेयक बनाना चाहिए ताकि राज्य सरकारें उस पर विचार कर सकें।
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मोदी के पत्र के जवाब में रहमान खान भी जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि 2002 में गुजरात में दंगा हुआ था। मोदी को तभी दंगों को रोकने के लिए इस इस तरह के कदम उठाने चाहिए थे। मगर वह चाहते हैं कि यही स्थिति बनी रहे और वह राजनीति करते रहें। उन्होंने कहा कि संशोधित मसौदे पर इसे और दुरुस्त किया गया है। अब विरोध करने वालों को बताना चाहिए कि संसद में बलात्कार के लिए कानून बनने का वह समर्थन करते हैं, लेकिन दंगों पर रोक के लिए कानून का विरोध क्यों। ध्यान रहे कि तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक ने भी विधेयक का विरोध किया है।
दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती ने इस शर्त के साथ समर्थन की बात कही कि विधेयक संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं होना चाहिए और संसद में लाने से पहले राज्यों से विचार विमर्श होना चाहिए। रहमान ने आश्वासन दिया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय सभी राज्यों के साथ संपर्क में है।
संशोधित मसौदे के प्रमुख अंश
-अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय शब्द हटाया गया
-पहले सांप्रदायिक हिंसा के लिए बहुसंख्यक समुदाय को जिम्मेदार ठहराया गया था
-सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए केंद्र के सीधे हस्तक्षेप का अधिकार हटाया, केवल राज्य सरकार के अनुरोध पर भेजा जा सकता है केंद्रीय अर्धसैनिक बल
-सांप्रदायिक हिंसा रोकने में विफल रहे जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी, दो से पांच साल तक हो सकती है सजा
-किसी क्षेत्र को 60 दिनों से अधिक समय तक अशांत घोषित नहीं किया जा सकता
-घृणा फैलाने वालों को तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान
-सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वालों को सश्रम आजीवन कारावास की सजा
-सांप्रदायिक हिंसा के लिए वित्तीय मदद करने वालों को तीन साल की सजा के साथ-साथ जुर्माना
-सांप्रदायिक हिंसा में मरने वालों के परिवार को पांच लाख, बलात्कार की शिकार महिला को पांच लाख, यौन शोषण की शिकार महिला को चार लाख और शारीरिक रूप से विकलांग हुए लोगों को तीन से पांच लाख रुपये के मुआवजे का प्रावधान
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