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आणंद में अब तक नहीं चला मोदी का जादू

जिस मोदी लहर की चर्चा पूरे देश में हो रही है वह नरेंद्र मोदी के गृह राज्य के अहम संसदीय क्षेत्र में नहीं दिखती। आणंद संसदीय सीट गुजरात के उन क्षेत्रों में है जहां के जातीय समीकरण मोदी लहर पर हावी हैं। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पुरजोर कोशिश के बावजूद कांग्रेसी सांसद भरत सिंह सोलंकी की काट नहीं खोज पाए। इस

By Edited By: Published: Thu, 24 Apr 2014 03:09 AM (IST)Updated: Thu, 24 Apr 2014 05:07 AM (IST)
आणंद में अब तक नहीं चला मोदी का जादू

आणंद [जयप्रकाश रंजन]। जिस मोदी लहर की चर्चा पूरे देश में हो रही है वह नरेंद्र मोदी के गृह राज्य के अहम संसदीय क्षेत्र में नहीं दिखती। आणंद संसदीय सीट गुजरात के उन क्षेत्रों में है जहां के जातीय समीकरण मोदी लहर पर हावी हैं। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पुरजोर कोशिश के बावजूद कांग्रेसी सांसद भरत सिंह सोलंकी की काट नहीं खोज पाए। इस बार भाजपा पहले से तो अच्छी स्थिति में है, लेकिन हालात ऐसे नहीं कि कांग्रेस का यह सबसे पुराना किला ढहा पाए।

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देश में दूध की राजधानी के नाम से चर्चित आणंद की सीट कांग्रेस के लिए भी नाक की लड़ाई है क्योंकि भरत सोलंकी न सिर्फ देश के सबसे पुराने कांग्रेसी परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि संप्रग सरकार में गुजरात के जाने-माने चेहरे भी हैं। भरत के पिता माधव सिंह सोलंकी गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री होने के साथ ही केंद्र में विदेश और वित्त मंत्री रह चुके हैं। भरत सोलंकी के दादा इस सीट का पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। भरत खुद लगातार दो बार से सांसद हैं। ओबीसी और क्षत्रिय अगर सोलंकी परिवार के परंपरागत वोटर रहे हैं तो वर्ष 2002 के बाद यहां का मुस्लिम मतदाता भी आंख मूंदकर उन्हें वोट देता रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस जिला अध्यक्ष कांति भाई सोडा इसे पूरे गुजरात में अपनी सबसे सुरक्षित सीट करार देते हैं। वह बताते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चार सीटें यहां से जीतीं जिनका मार्जिन 13 हजार से 37 हजार के बीच था जबकि भाजपा ने दो सीटें जीतीं। आणंद विधानसभा सीट भाजपा ने महज 800 मतों से जीती थी।

राम मंदिर आंदोलन के दौर यानी 1998 और 1999 में यहां से जीत हासिल कर चुकी भाजपा ने इस बार दिलीपभाई मनिभाई पटेल को उतारा है। भाजपा यहां के जातीय समीकरण को अभी तक नहीं साध पाई है। शायद यही वजह है कि आणंद में मोदी से ज्यादा स्थानीय मुद्दों को उभारने की कोशिश खुद भाजपा कर रही है। भाजपा के आणंद जिले के मीडिया सेल के प्रमुख चिराग दवे स्वीकार करते हैं कि उनका ज्यादा जोर स्थानीय मुद्दों, समस्याओं और सांसद की गैरहाजिरी पर है। वे बताते हैं कि विकास के मामले में यह संसदीय क्षेत्र गुजरात के दूसरे जिलों से काफी पीछे है। सांसद व मंत्री रहते भरत सोलंकी ने कुछ नहीं किया। मसलन जब वह रेल राज्यमंत्री थे तब आणंद रेलवे स्टेशन को आदर्श रेलवे स्टेशन बनाने का वादा किया था, लेकिन किया कुछ नहीं। अभी वह केंद्र में जल व स्वच्छता मंत्रालय संभाल रहे थे। आणंद के भूजल में क्षार का स्तर बढ़ने की रिपोर्टो के बावजूद सोलंकी ने कुछ नहीं किया। यही नहीं सोलंकी अपने क्षेत्र का दौरा तक नहीं करते।

आणंद लौह पुरुष वल्लभभाई पटेल की जन्म भूमि है। यह देश की शायद अपनी तरह की इकलौती सीट है जहां भाजपा और कांग्रेस एक ही शख्सियत की असली वारिस होने का दम ठोक रहे हैं। भाजपा पटेल के सपनों का गुजरात और भारत के निर्माण की बात कर रही है तो कांग्रेस कह रही है कि यहां से सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की विजय होनी चाहिए। बहरहाल, 30 अप्रैल को जनता अपना निर्णय सुनाएगी। माहौल अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा चुनाव से पहले यहां मोदी की रैली करने जा रही है।

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