और देखते रह गए मिस्त्री..
जानकारों की मानें तो मिस्त्री के खिलाफ इतना सख्त कदम उठाने की जमीन पिछले वर्ष तब बननी शुरू हो गई थी, जब उन्होंने कुछ बेहद कठोर निर्णय करने के संकेत दिए थे।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली । चार वर्ष में ही जिसे टाटा समूह का भविष्य बताया गया था, उसे अचानक ही इस तरह से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा, ऐसा तो न तो साइरस मिस्त्री ने सोचा होगा और न ही बतौर चेयरमैन उनके नाम की सिफारिश करने वालों ने। लेकिन साइरस का टाटा समूह के चेयरमैन पद से निष्कासन अब हकीकत है। जानकारों की मानें तो मिस्त्री के खिलाफ इतना सख्त कदम उठाने की जमीन पिछले वर्ष तब बननी शुरू हो गई थी, जब उन्होंने कुछ बेहद कठोर निर्णय करने के संकेत दिए थे।
टाटा समूह में चेयरमैन को निष्कासित करने की यह पहली घटना है। यह नौबत क्यों आई, इसे लेकर कॉरपोरेट जगत में कयासों का दौर जारी है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि निदेशक बोर्ड इस बात से निराश था कि जब टाटा समूह सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है, तब भी मिस्त्री पूरे समूह के भविष्य का कोई रोडमैप पेश नहीं कर पाए हैं। चार वर्ष किसी चेयरमैन के लिए काफी होते हैं कि वह भविष्य की दिशा दिखा सके। मसलन, कंपनी समय पर यह अंदाजा नहीं लगा सकी कि स्टील क्षेत्र में इतनी बड़ी मंदी आएगी। इससे निबटने के लिए कोई ठोस रणनीति होनी चाहिए। इसी तरह से बोर्ड को यह उम्मीद थी कि जब टाटा समूह ने यूरोपीय बाजार में भारी-भरकम निवेश कर रखा है, तो वहां की मंदी से निबटने के लिए भी कोई लंबी अवधि का कार्यक्रम बनेगा। टाटा समूह के यूरोपीय निवेशक सार्वजनिक तौर पर इस बात पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।
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माल बनाने वाले क्षेत्र पर फोकस
टाटा समूह को भारत के पारंपरिक उद्योग समूहों में से एक माना जाता है। इसके अभी तक जितने चेयरमैन हुए हैं, उन्होंने समूह की सौ से ज्यादा कंपनियों को साथ लेकर चलने की कोशिश की है। दर्जनों कंपनियां ऐसी हैं, जो दशकों से सिर्फ टाटा समूह की भावना जुड़ी होने की वजह से चलाई जा रही हैं। दूसरी तरफ मिस्त्री ने ज्यादा मुनाफा देने वाले क्षेत्र पर खास तौर पर ध्यान देना शुरू कर दिया था।
अहम मौकों पर फिसले
यह बात भी साइरस के खिलाफ गई है कि वह पिछले चार वर्षो के कार्यकाल में कुछ अहम मुद्दों पर ठोस फैसला नहीं कर सके। जापानी टेलीकॉम कंपनी एनटीटी डोकोमो के साथ गठबंधन टूटना ऐसा ही मुद्दा था। समूह के ऑटोमोबाइल सेक्टर को भी वह नई दिशा नहीं दे सके। उन्होंने कहा था कि हर वर्ष कंपनी दो नए मॉडल पेश करेगी। मगर अभी तक टाटा मोटर्स की तरफ से पेश कोई नई कार बाजार में खास हलचल नहीं मचा सकी है। इन सब बातों को लेकर बोर्ड के अधिकांश लोगों में यह भावना घर कर गई कि मिस्त्री आगे बढ़कर बैटिंग नहीं करते। उनके चार वर्षो के कार्यकाल में समूह ने एक भी नया अधिग्रहण नहीं किया। जबकि उसके पिछले दस वर्षो में टेटली, कोरस और जुगआर-लैंडरोवर जैसी बड़ी विदेशी कंपनियों को खरीदा गया था।