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जानिए, क्‍यों रेल मंत्रालय ने लिया 202 सेटेलाइट फोन खरीदने का निर्णय

रेलवे द्वारा खरीदे जा रहे प्रत्येक सेटेलाइट फोन सेट की कीमत 71,500 रुपये की एकमुश्त तथा 30,250 रुपये की सालाना ऑपरेशन लागत आने का अनुमान है।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 22 Sep 2017 08:26 AM (IST)Updated: Fri, 22 Sep 2017 08:26 AM (IST)
जानिए, क्‍यों रेल मंत्रालय ने लिया 202 सेटेलाइट फोन खरीदने का निर्णय
जानिए, क्‍यों रेल मंत्रालय ने लिया 202 सेटेलाइट फोन खरीदने का निर्णय

नई दिल्ली, संजय सिंह। रेलवे अधिकारियों को ट्रेन दुर्घटना की सूचना टीवी चैनलों और सोशल मीडिया से पहले मिलती है और आधिकारिक नेटवर्क से बाद में। हाल की दुर्घटनाओं में रेलवे संचार तंत्र की यह खामी उभर कर सामने आई है। इसे देखते हुए रेल मंत्रालय ने सभी जोन और डिवीजन मुख्यालयों तथा एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेनों को सेटेलाइट फोन से लैस करने का निर्णय लिया है।

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योजना के तहत कुल मिलाकर 202 सेटेलाइट फोन खरीदे जाएंगे। इनकी खरीद उत्तर रेलवे के मार्फत की जाएगी, और बाद में अन्य जोनों में इनका वितरण किया जाएगा। इस पर लगभग दो करोड़ रुपये का शुरुआती खर्च आने का अनुमान है।

प्रत्येक सेटेलाइट फोन सेट की कीमत 71,500 रुपये की एकमुश्त तथा 30,250 रुपये की सालाना ऑपरेशन लागत आने का अनुमान है। इस तरह पहले साल 202 सेटेलाइट फोन सेटों पर प्रति सेट 1,01,750 रुपये के हिसाब से कुल मिलाकर 2,05,53,500 रुपये की लागत आएगी। वहीं आगे के वर्षों में इनके संचालन और रखरखाव का सालाना खर्च 61,10,500 रुपये होगा। उत्तर रेलवे अपने खाते से सेटेलाइट फोन खरीदने के बाद दूसरे जोनों को इनका वितरण करेगा और फिर उनसे अलग-अलग लागत की वसूली करेगा।

स्कीम के तहत उत्तर रेलवे तथा उत्तर मध्य रेलवे को 15-15 सेटेलाइट फोन प्राप्त होंगे, जबकि पूर्वोत्तर रेलवे को 9 तथा उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिण रेलवे को 10-10 फोन मिलेंगे। सबसे ज्यादा 21 सेटेलाइट फोन दक्षिण-मध्य रेलवे तथा 20 फोन पश्चिम-मध्य रेलवे के हिस्से आएंगे।

चूंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बीएसएनएल ने सेटेलाइट फोन सेवा प्रारंभ कर दी है, लिहाजा सभी फोन बीएसएनएल से ही खरीदने का निर्णय लिया गया है।

सूत्रों के अनुसार बीते दिनों पुखरायां, खतौली और औरैया में हुई ट्रेन दुर्घटनाओं में रेलवे को न केवल आधिकारिक स्तर पर सूचना मिलने में देर हुई थी, बल्कि दुर्घटना स्थल पर समय से राहत एवं बचाव कार्य शुरू करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। सबसे ज्यादा परेशानी एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन के साथ संवाद स्थापित करने में महसूस की गई, क्योंकि बचाव ट्रेन के कर्मचारियों के पास उपयुक्त फोन नहीं थे। ग्रामीण इलाकों में निजी आपरेटरों का नेटवर्क कमजोर होने के कारण मोबाइल सेटों के जरिए संवाद करने में बाधाओं का सामना करना पड़ा था।

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