काशी में गंगा तीरे-तीरे दौड़ेगी मेट्रो रेल
प्राचीनतम शहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के विकास करने में सरकार सब कुछ ठोंक बजाकर आगे बढ़ना चाहती है ताकि शहर की पहचान पर कोई फर्क न पड़े। उसकी ऐतिहासिकता से सामंजस्य बनाते हुए विकास का ब्लूप्रिंट आकार लेने लगा है। दिल्ली की शान बनी मेट्रो अब काशी में भी
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। प्राचीनतम शहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के विकास करने में सरकार सब कुछ ठोंक बजाकर आगे बढ़ना चाहती है ताकि शहर की पहचान पर कोई फर्क न पड़े। उसकी ऐतिहासिकता से सामंजस्य बनाते हुए विकास का ब्लूप्रिंट आकार लेने लगा है। दिल्ली की शान बनी मेट्रो अब काशी में भी गंगा के तीरे-तीरे घाटों को छूते हुए सरपट दौड़ेगी।
बनारस में भीड़भाड़ की चुनौती से निपटने के लिए दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने पूर्व संभावित रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी में सारनाथ से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) तक कुल 17 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइन बिछाने की योजना है। साढ़े छह किलोमीटर लंबी लाइन भूमिगत होगी बाकी नदी के ऊपर अथवा जमीन पर। मेट्रो रेल लाइन की इस परियोजना पर कुल 3500 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।
बैठक में शहरी विकास सचिव शंकर अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि हेरिटेज सिटी के लिए समन्वय का दायित्व राज्य सरकार और स्थानीय निकाय को ही सौंपा जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर अमल के लिए राच्य सरकार और स्थानीय निकाय के कराए विकास कार्य की समीक्षा के बाद ही केंद्रीय योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने बनारस की सभी विकास एजेंसियों और वहां के जनप्रतिनिधियों की बैठक शुक्रवार को बुलाई थी। वाराणसी को हेरिटेज सिटी के रूप में विकसित करने की योजना बनाने से पहले शहर में कराए जा रहे विकास कार्यो और वहां की चुनौतियों पर बैठक में चर्चा की गई। बैठक में वाराणसी नगर निगम के मेयर राम गोपाल मोहले, विधायक रवींद्र जायसवाल व च्योत्सना श्रीवास्तव, नगर आयुक्त उमाकांत त्रिपाठी, जल निगम अन्य विभागों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया। बनारस के विकास की योजना के अमल के लिए नगर आयुक्त के बजाए मंडलायुक्त को नोडल अधिकारी बनाया जाएगा।
काशी से आए प्रतिनिधियों से परिवहन, जल आपूर्ति, सीवर लाइन व ड्रेनेज प्रणाली की समीक्षा की गई। बैठक में शहर की साफ-सफाई और गंगा की स्वच्छता पर चर्चा के दौरान कहा गया कि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की हालत खराब है। 70 से 80 फीसद तक काम हुआ है, जिससे उनका संचालन नहीं हो पा रहा है। केंद्र सरकार की पिछली परियोजना के धन से शहर में 70 किमी लंबी सीवर लाइन बिछाई तो गई है, लेकिन अभी भी 40 किमी की और जरूरत है। जिससे काम अधूरा पड़ा है। शहर की ड्रेनेज प्रणाली में 76 किमी लंबाई की लाइन बिछाई गई है, लेकिन वह भी आधी अधूरी है। 30 फीसद काम नहीं हो सका है। बैठक में मुगलसराय और बनारस के बीच संपर्क बढ़ाने पर जोर दिया गया। जबकि जनप्रतिनिधियों ने कैंट रेलवे स्टेशन के आसपास यातायात नियंत्रण के लिए और फ्लाईओवर बनाने की मांग की। भारी वाहनों को शहर के बाहर से निकालने पर भी चर्चा हुई ताकि यातायात ठीक हो सके।