घर से भागे बच्चों के लिए ट्रेनों पर होगी नजर : मेनका
नई दिल्ली। महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने रविवार को घर से भागे बच्चों की समस्या दूर करने के लिए नया रास्ता सुझाते हुए रेल विभाग से मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चे अक्सर ट्रेनों में सवार होकर बड़े शहरों का रुख करते हैं। लिहाजा ऐसी
नई दिल्ली। महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने रविवार को घर से भागे बच्चों की समस्या दूर करने के लिए नया रास्ता सुझाते हुए रेल विभाग से मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चे अक्सर ट्रेनों में सवार होकर बड़े शहरों का रुख करते हैं। लिहाजा ऐसी सभी ट्रेनों पर नजर रखने की जरूरत है।
टीटीई बरतें सतर्कता :
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि मुंबई, कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों के लिए घरों से अकेले निकले बच्चों के संबंध में ट्रेन में टिकट चेक करने वाले टीटीई को अधिक सतर्कता बरतनी होगी। उन्होंने कहा कि ये कैसे हो सकता है कि टीटीई बेटिकट बच्चे को बोगी में घूमता नहीं देख पाता हो। आखिर भागे हुए ये बच्चे सीट के नीचे या सामान में छिपकर तो नहीं जाते। घर से भागे बच्चे अमूमन आठ साल से अधिक उम्र के होते हैं। और ये ट्रेन से ही दूसरे शहरों तक पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के रेलवे स्टेशनों पर हर महीने घर से भागे सात सौ बच्चे उतरते हैं। ये समस्या एक महामारी की तरह बढ़ती जा रही है।
हाल की बैठकों में महिला कल्याण और बाल विकास मंत्री ने रेलवे प्रशासन को कहा है कि रेलवे स्टेशनों पर पीसीओ स्थापित किए जाएं ताकि तनावपूर्ण क्षणों में ऐसे बच्चे चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 पर कॉल कर सकें। उन्होंने कहा कि अब रेलवे स्टेशनों पर पीसीओ नाममात्र के रह गए हैं। बच्चों को पता हो कि उन्हें मदद कहां से मिलेगी, इसके लिए रेलवे स्टेशनों पर हेल्प लाइन नंबर की जानकारी देने वाले पोस्टर भी लगाए जाने चाहिए।
मेनका गांधी ने कहा कि उनका मंत्रालय रेलवे स्टेशनों पर अपनी विशेष टीमें भी तैनात करेगा जो ऐसे गुमशुदा या घर से भागे हुए बच्चों की पहचान करेगी। हालांकि इस दिशा में कई गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं लेकिन बड़े पैमाने पर बच्चे अब भी लापता हैं।
बड़े शहरों के रैकटों में फंसते बच्चे :
बच्चे अक्सर मामूली बातों पर नाराज होकर या थोड़े से तनाव में भी घर से भाग जाते हैं। वह प्राय: दिल्ली, कोलकाता, मुंबई की ट्रेनें पकड़ते हैं। इन बड़े शहरों में आकर ये बच्चे नशे के रैकेट, यौन उत्पीड़न, चोरी और अन्य दोयम दर्जे के धंधों के चंगुल में आ जाते हैं। ऐसे बच्चों की तस्करी भी होती है।
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