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बसपा को कमजोर करने में जुटे पुराने साथी, लड़ेंगे विस चुनाव

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को अब उसके ही पुराने साथी कमजोर करने की फिराक में लग गए हैं। बसपा के संस्थापक कांशी राम के परिवार वाले और मायावती के विरोधी 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के विरूद्ध एक विकल्प के रूप में उभरते

By anand rajEdited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 10:08 AM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 02:10 PM (IST)
बसपा को कमजोर करने में जुटे पुराने साथी, लड़ेंगे विस चुनाव

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को अब उसके ही पुराने साथी कमजोर करने की फिराक में लग गए हैं। बसपा के संस्थापक कांशी राम के परिवार वाले और मायावती के विरोधी 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के विरूद्ध एक विकल्प के रूप में उभरते नजर आ रहे हैं।

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बसपा के संस्थापक कांशी राम के छोटे भाई दलबारा सिंह पिछले काफी समय से बहुजन संघर्ष पार्टी (कांशीराम) का नेतृत्व करते आ रहे हैं। वे अपने मंच द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ आवाज भी उठाते रहे हैं। हाल ही में दलबारा सिंह ने मायावती के कई विरोधियों से हाथ मिला लिया। इन सभी नेताओं को पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी से बाहर निकाल दिया था।

दलबारा सिंह ने कहा कि समय बदल रहा है। कांशी राम के मिशन और उनके दिखाये रास्ते से मायावती किस तरह भटक गई हैं, ये बातें मैं लोगों को बता रहा हूं। अब तो मायावती द्वारा बसपा से निकाले गए नेता भी हमारे साथ आ गए हैं और जनता तक पार्टी (बसपा) की सच्चाई को उजागर कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि कांशीराम के बेहतरीन कोशिशों के बावजूद मायावती उनका स्थान नहीं ले सकी हैं। जनता अब उनका साथ नहीं दे रही है। अगर जनता को एक काबिल विकल्प मिले तो वह हमारे साथ वापस आ सकते हैं। कांशीराम के भाई के मुताबिक, उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव लड़ेगी। उनका मकसद 2017 के चुनाव में मायावती को करारी शिकस्त देना है।

हाल ही में बसपा से निकाले गए पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद ने समाजिक परिवर्तन मंच की स्थापना की। दलबारा सिंह से हाथ मिलाने के बाद उन्होंने कहा कि कांशी राम ने अपने एक बयान में कहा था कि बसपा बनाना आसाना है। लेकिन बहुजन समाज बनाना कठिन है। हमारी कोशिश वंचितो और दलितों को एकजुट कर बहुजन समाज स्थापित करने की है।

उन्होंने कहा कि एक गरीब आदमी भी शासक बन सकता है। 1993 में बसपा ने जीत हासिल कर ये दिखा दिया था। उस समय उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी नहीं थे। प्रसाद ने कहा कि इस समय हमारा लक्ष्य वर्तमान राजनीति के विरूद्ध लोगों के सामने एक विकल्प के रूप में खुद को पेश करना है।

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