शहीद कैप्टन की मां बोली, 'मुझे बम ला दो, मैं दुश्मनों पर गिरा दूं'
मां के दिल में गम, गुस्सा, गुबार था। बोलीं 'सरकार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है अगर सरकार कुछ नहीं कर पा रही है तो वह मुझे बम लाकर दे दे, जिसे मैं दुश्मनों पर गिरा दूं।
कानपुर (जेएनएन)। बेटे को सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करने का जुनून था। फौज की वर्दी पहनकर उसने अपने पिता का ख्वाब भी पूरा किया लेकिन, इस मां की व्यथा कौन समझे। आयुष यादव की शहादत पर गर्व तो सब करेंगे लेकिन, उनकी मां का सवाल है कि अब वह जिंदा कैसे रहेगी? शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरा हो, जब बेटे ने उनसे बात न की हो। जार-जार रो रही शहीद की मां के आंसू आतंकी हमलों पर सरकार से भी सवाल पूछ रहे हैं।
कुपवाड़ा में आयुष की शहादत की खबर मिलने के बाद उनके घर पर गम, गर्व और गुस्से की भावनाओं का माहौल था। पिता अरुण कांत यादव तो शहीद बेटे को सैल्यूट कर पत्थर की मूरत से एक ओर जा खड़े हुए पर मां सरला तो संभाले नहीं संभल रही थीं। बड़ी बहन रूपल यही समझाकर ढांढस बंधा रही थी कि 'मम्मी आप रोएंगी तो आयुष को दुख होगा। आपका रोना ठीक नहीं, आप शहीद की मां हैं। लेकिन, मां के दिल में गम, गुस्सा, गुबार था। बोलीं 'सरकार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है अगर सरकार कुछ नहीं कर पा रही है तो वह मुझे बम लाकर दे दे, जिसे मैं दुश्मनों पर गिरा दूं।
मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकती पिता अरुणकांत खुद पुलिस में हैं, इसलिए अपनी भावनाओं को उसी अंदाज में बयां करते रहे। बोले, बेटा तो शहीद हो गया। बहुत इच्छा थी मेरी आर्मी में जाने की। मैं नहीं जा पाया, इसलिए बेटे को आर्मी में भेज दिया। सरकार को इस मामले में कोई सख्त निर्णय लेना चाहिए। आखिर कब तक हमारे फौजियों और इस देश के बेटों को यूं ही मरवाते रहेंगे। हम लोगों ने अपना बेटा दिया सरकार को, जो शहीद हो गया।
छुपाए कुपवाड़ा के हालात
आयुष अपने घर से स्कूल भी जाते थे तो मां या बहन को बताते थे। यही नहीं, अगर वह घर से बाहर होते और लौटने में देर हो रही होती तो फोन पर इसकी जानकारी घर दे देते थे। शहीद आयुष की बहन रूपल ने बताया जिस दिन से आयुष की आर्मी में ज्वाइनिंग हुई और वह शहर से बाहर ट्रेनिंग करने गए, तब से वह वहां की सभी जानकारी देते थे। जब उनकी ज्वाइनिंग जम्मू में हुई तो वहां के हालात के चलते परिवार को चिंता हुई। उनसे पूछा तो हमेशा यही कहा कि जिस जगह पर वह तैनात हैं, वहां के हालात सामान्य हैं। आयुष ने कभी इस बात का अहसास ही नहीं होने दिया कि वह जहां पर तैनात हैं, वह इतनी खतरनाक जगह है। अक्सर टीवी पर जब जम्मू में हमले या बवाल की खबरें आती थीं तो चिंता हो जाती थी लेकिन हर बार आयुष उनको समझा देते थे कि वह सुरक्षित हैं।
वर्दी में मेडल न हों तो क्या फायदा
आयुष अपनी बहन रूपल से हमेशा एक ही बात बोलते थे कि अगर वर्दी में ढेर सारे मेडल न हों तो आर्मी में आने का क्या फायदा।