मारे गए अंग्रेजों का सबूत देता है विद्रोह स्मारक
नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। राजधानी में रिज की पहाड़ियों पर स्थित तीन तरफ से कमला नेहरू रिज से घिरा अजीतगढ़ या विद्रोह स्मारक 1
नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। राजधानी में रिज की पहाड़ियों पर स्थित तीन तरफ से कमला नेहरू रिज से घिरा अजीतगढ़ या विद्रोह स्मारक 1857 की कहानी दूर से ही बयां कर देता है। यह स्मारक 1863 ई. में दिल्ली फील्ड मार्शल फोर्स के उन अधिकारियों और सैनिकों की याद में बनाया गया था, जो 30 मई से 20 सितंबर 1857 के बीच मारे गए। यह उस स्थान पर निर्मित है, जहां टेलर की सेना ने सन 1857 ई, में दिल्ली पर कब्जा किया था।
भारत की स्वतंत्रता की 25 वीं वर्षगांठ पर 1972 ई. में एक शिलालेख भारतीय स्वतंत्रता के अमर शहीदों की याद में भी लगाया गया है। वहां यह लिखा गया है कि, इस स्मारक में शत्रु शब्द का प्रयोग उन वीरों के लिए किया गया है, जिन्होंने विदेशी राज के विरुद्ध आंदोलन किया और देश की आजादी के लिए 1857 में लड़े। इस तरह यह स्थल अब उन शहीदों के स्मारक के रूप में बदल दिया गया है, जो सन 1857 में उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए थे।
यहां अंग्रेजों की विभिन्न यूनिटों, अफसरों के नाम तथा भारतीय अफसरों की संख्या तथा उनके रैंक जो इस स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए थे। पहले यह जगह फतहगढ़ या अजीतगढ़ कहलाती थी लेकिन बाद में इसे शहीदों के स्मारक के रूप में बदल दिया गया।
यहां एक जगह यह भी उत्कीर्ण है कि, देहली जंगी फौज के अंग्रेजी और हिन्दुस्तानी अफसर और सिपाही जो 30 मई और 20 सितंबर 1857 के दरम्यान हुई लड़ाई में मारे गए या जख्मी हुए या बीमार होकर मर गए उनकी यादगार के वास्ते, उनके साथियों ने जिनको उनकी मौत का रंज है और सरकार से जिसकी खिदमत में वह इस तरह काम आए यह यादगार बनवाई।
बहरहाल, अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया यह विद्रोह स्मारक हिन्दुस्तानियों की वीरता की गाथा गाता है। वहां यह भी उत्कीर्ण है कि उस दौरान कितने अंग्रेज मारे गए, कितने घायल हुए और कितने लापता हो गए। यह आंकड़ा देखकर उस दौर की घटना और आमजन में अंग्रेजों के लिए फैला आक्रोश समझा जा सकता है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर काम करने वाले मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने बताया कि यह विद्रोह स्मारक अंग्रेजों द्वारा बनाया गया है, इसमें मारे गए अंग्रेजों के नाम देखकर भारतीय वीरों के साहस का अंदाजा लगाया जा सकता है।
लेकिन यहां अंग्रेजों ने शहीद किसी भारतीय सैनिक का नाम नहीं लिखा है। अंग्रेजों ने कई जगहों पर विद्रोह स्मारक बनाए हैं लेकिन यह दुखद है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तब भारत की आबादी 15 करोड़ थी और लगभग पूरे भारत में 50 लाख लोग मारे गए आज तक के इतिहास में कहीं भी इतना बड़ा कत्लेआम नहीं हुआ लेकिन उनकी याद में कोई नेशनल मेमोरियल नहीं है।
सैन्यद्रोह स्मारक अथवा फतेहगढ़। दिल्ली फील्ड फोर्स के उन अधिकारियों और सैनिकों की याद में बनाया गया था जो 30 मई से 20 सितंबर 1857 के बीच मारे गए थे।
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