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अलीगढ़ की मर्दानी को 'नशा' उतारने का नशा

ये नशे की बात है। किसी को शराब बेचने का नशा चढ़ा है तो किसी को पीने का। लेकिन, मर्दानी को तो नशा उतराने का नशा चढ़ चुका है। यह बात न हुक्मरानों को रास आ रही थी, न ही घर के मर्दो को। नशे की लत से उजड़ते घरों और बिखरते सपनों को सहेजने के लिए मंजू देवी कुछ भी करने पर आमादा थीं। महिलाअ

By Edited By: Published: Sat, 27 Sep 2014 09:19 AM (IST)Updated: Sat, 27 Sep 2014 09:30 AM (IST)
अलीगढ़ की मर्दानी को 'नशा' उतारने का नशा

अलीगढ़ [राज नारायण सिंह]। ये नशे की बात है। किसी को शराब बेचने का नशा चढ़ा है तो किसी को पीने का। लेकिन, मर्दानी को तो नशा उतराने का नशा चढ़ चुका है। यह बात न हुक्मरानों को रास आ रही थी, न ही घर के मर्दो को। नशे की लत से उजड़ते घरों और बिखरते सपनों को सहेजने के लिए मंजू देवी कुछ भी करने पर आमादा थीं। महिलाओं को साथ लिया। अफसरों को व्यथा सुनाई। नेताओं के हाथ जोड़े। सबने मुंह फेरा तो मर्दानी खुद ही लाठी-डंडे लेकर दावा बोलने लगी। कानूनी बेड़ियां भी आईं, लेकिन महिलाओं के हौसले के आगे सब नतमस्तक हो गए। वे अभी तक तीन ठेकों पर ताला डलवा चुकी हैं। अब तो नाम से ही धंधेबाजों का नशा हिरन हो जाता है।

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बिक गए बर्तन तक

मर्दानी टीम की लीडर हैं, पला साहिबाबाद की मंजू देवी। वे बताती हैं, आगरा रोड से पला साहिबाबाद के रास्ते पर दो मोहल्ले हैं। एक, शिव चौक, दूसरा होली चौक। तीन साल पहले दोनों मोहल्लों के अधिकांश पुरुष शराब की गिरफ्त में थे। कुछ घरों के बर्तन तक नहीं बचे थे। आए दिन महिलाओं-बच्चों से मार-पीट होती थी। मुखिया गलत रास्ते पर थे, पूरा परिवार खामियाजा भुगत रहा था। बच्चों की पढ़ाई छूट रही थी। खाने तक को लाले पड़ने लगे। पुरुष जो कमाते, शाम को नशे में उड़ा देते। ऐसी कोई शाम नहीं थी, जब महिलाएं-बच्चियां सहमी न हों।

ठेके-दर-ठेके

शिव चौक की घनी आबादी में देशी शराब का तंग गली में ठेका खुल गया। पहले ही यहां की महिलाएं परेशान थीं। शाम को कोई नाली में पड़ा मिलता था तो कोई गाली-गलौच करते गुजरता। आफत की बात यह हुई कि 2011 में यहीं दूसरे ठेके का लाइसेंस भी दे दिया गया।

हल्ला बोल

आशंकाओं के बीच मंजू देवी ने चुनौती से निबटने की तैयारी शुरू कर दी। मोहल्ले की भगवती देवी, शीला राजपूत, रामदेवी आदि भी साथ हो गईं। ठेका बंद करने को कहा। हुआ कुछ नहीं। महिलाओं को घर से यह नसीहत जरूर मिली कि 'झांसी की रानी' न बनो। डीएम से मिली। विधायक से गुजारिश की। ठेका हटवाने को कोई तैयार न था। इस बीच, एक शाम शराबी ने महिला को छेड़ दिया। हमने लाठी-डंडे लेकर ठेके पर धावा बोल दिया। बोतलें-क्रेट फेंक दीं। बोर्ड उखाड़ फेंका। हौसले देखकर ठेके से दुखी पुरुष भी साथ आ गए। ठेकेदारों ने पहली दुकान खोली ही नहीं, दूसरी भी बंद कर दी।

रिपोर्ट भी

ठेका कर्मियों ने परिजनों पर रिपोर्ट करा दी। दबाव देखकर पला रोड की दुकान खोल ली। यह मुख्य रास्ता था। मंजू ने फिर महिलाओं के साथ ठेके पर हल्ला बोल दिया। सामान फेंक दिया। कुछ महिलाओं को पुलिस गिरफ्तार करने लगी तो बाकी गाड़ी के आगे लेट गईं। एलान किया कि जेल जाएंगी तो सभी महिलाएं।' पुलिस भी मानवीय हो गई और तीनों ठेके बंद हो गए।

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