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रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन शुरू, कई अफसरों को सता रहा डर

इस साल के रेल बजट में किए गए एलान के मुताबिक सरकार ने रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इस संबंध में विभिन्न निदेशालयों के अधिकारियों से सुझाव मांगे गए हैं, लेकिन पुनर्गठन किस तरह होगा, इसे लेकर अधिकारिय

By Edited By: Published: Thu, 28 Aug 2014 08:19 AM (IST)Updated: Thu, 28 Aug 2014 11:20 AM (IST)
रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन शुरू, कई अफसरों को सता रहा डर

नई दिल्ली [संजय सिंह]। इस साल के रेल बजट में किए गए एलान के मुताबिक सरकार ने रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इस संबंध में विभिन्न निदेशालयों के अधिकारियों से सुझाव मांगे गए हैं, लेकिन पुनर्गठन किस तरह होगा, इसे लेकर अधिकारियों में गफलत व डर व्याप्त है। ऐसा इसलिए यदि नीति निर्माण और क्रियान्वयन को वास्तव में अलग किया गया तो रेलवे बोर्ड के अनेक विभाग जोनों और डिवीजनों में शिफ्ट हो जाएंगे।

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दरअसल, चालीस से ज्यादा विभाग या निदेशालय सीधे बोर्ड के अधीन कार्य करते हैं, जबकि सत्रह जोन और 67 डिवीजनों पर उसका परोक्ष नियंत्रण रहता है। यदि नीति निर्माण और क्रियान्वयन को अलग किया जाता है तो सिगनल, भंडार, ट्रैक, व‌र्क्स, परियोजनाएं और कोचिंग जैसे निदेशालयों की बोर्ड में जरूरत खत्म हो सकती है और इन्हें जोनों व डिवीजनों में शिफ्ट होना पड़ सकता है।

ऐसे में नीति निर्माण और प्रबंधन से संबंधित योजना, वित्त, लेखा, स्थापना, वेतन आयोग, विधिक, प्रबंधन और सचिव शाखाएं तथा सतर्कता व जनसंपर्क जैसे रणनीतिक रूप से आवश्यक निदेशालय ही रेल भवन में रह जाएंगे। दूसरी ओर स्वास्थ्य, भूमि सुविधाएं, सुरक्षा, संरक्षा जैसे निदेशालयों को बंद करना होगा। रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने 2014-15 के रेल बजट में रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन कर नीति निर्माण और क्रियान्वयन को अलग करने का एलान किया है।

यह विचार मूलत: राकेश मोहन समिति की 2001 में आई रिपोर्ट पर आधारित है। जिस पर 2012 में गठित सैम पित्रोदा समिति ने भी मुहर लगाई थी। इन समितियों के मुताबिक रेलवे के भले के लिए इसे अनावश्यक राजनीतिक दखल से मुक्त कर व्यापारिक सिद्धांतों पर चलाना होगा। साथ ही गैरजरूरी गतिविधियों से पैर खींचकर परिवहन के मुख्य कार्य पर ध्यान केंद्रित करना होगा। समिति ने 21 ऐसे कार्य गिनाए हैं, जिनसे फायदा होने के बजाय रेलवे को नुकसान हो रहा है।

इनमें उत्पादन इकाइयां, आवासीय कालोनियों का निर्माण, खानपान सेवाएं, चादर-कंबल देने जैसी ऑनबोर्ड सेवाएं, सुरक्षा, होटल और यात्री निवास, साफ-सफाई, प्रिंटिंग प्रेस इकाइयां, अस्पताल व चिकित्सा सुविधाएं, स्कूल-कॉलेज तथा अनुसंधान सुविधाएं शामिल हैं। समिति के अनुसार ये गतिविधियां रेलवे पर बोझ बन गई हैं लिहाजा इन्हें बाहरी एजेंसियों को सौंप देना चाहिए। तेरह सालों में समिति के केवल तीन सुझावों को लागू करने की कोशिश हुई है।

खानपान के लिए आइआरसीटीसी नाम से अलग एजेंसी बनाई गई, परंतु यह प्रयोग कामयाब होता उससे पहले ही कैटरिंग को वापस रेलवे को सौंप दिया गया। इसी तरह बड़ी मुश्किल से पिछले साल रेलवे टैरिफ रेगुलेटरी अथॉरिटी बनाने का निर्णय हुआ है लेकिन इसका गठन कब होगा कोई नहीं जानता। तीसरा सुझाव रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन का है जिसे लागू करने का जोखिम मोदी सरकार उठा रही है।

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