पूर्व पीएम मनमोहन फिर बनेंगे प्रोफेसर खतरे में नहीं होगी संसद की सदस्यता
नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद सबसे अधिक समय तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने इसी पंजाब विश्र्वविद्यालय से 1954 में एमए की पढ़ाई की
नई दिल्ली, संजय मिश्र। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह दुबारा प्रोफेसर की भूमिका में उतरेंगे तो उनकी राज्यसभा सदस्यता पर कोई खतरा नहीं होगा। संसदीय समिति ने पूर्व प्रधानमंत्री को इस आश्र्वासन के साथ पंजाब विश्र्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नई पारी शुरू करने की हरी झंडी दे दी है। माना जा रहा कि चेयर प्रोफेसर के लाभ के पद के दायरे में नहीं आने पर साफ हुई तस्वीर के बाद मनमोहन सिंह पंजाब विश्र्वविद्यालय में जल्द ही प्रोफेसर के नए अवतार में दिखाई देंगे।
लाभ के पद से जुड़ी संसद की संयुक्त समिति ने मनमोहन सिंह के मांगे गए स्पष्टीकरण का अध्ययन करने के बाद यह हरी झंडी दी है।
गौरतलब है कि विश्र्व ख्याति के अर्थशास्त्री रहे मनमोहन सिंह को चंडीगढ स्थित पंजाब विश्र्वविद्यालय ने अपने अर्थशास्त्रविभाग के जवाहर लाल नेहरू चेयर प्रोफेसर के रुप में पढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। दस साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह भी सत्ता की राजनीतिक पारी के खत्म होने के बाद फिर से छात्रों को पढ़ाने के अपने पुराने शौक को पूरा करना चाहते हैं। इसलिए प्रस्ताव मिलने के साथ ही मनमोहन ने राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को पत्र लिखकर यह बताने का अनुरोध किया यदि वे चेयर प्रोफेसर का पद लेते हैं तो क्या यह लाभ के पद के दायरे में आएगा? पूर्व पीएम के इस पत्र को संसद के दोनों सदनों की लाभ के पद से जुड़ी संयुक्त समिति को अध्ययन के लिए भेजा गया।
लोकसभा में भाजपा के सांसद सत्यपाल सिंह इस संयुक्त समिति के अध्यक्ष हैं। समिति ने मनमोहन के लाभ के पद को लेकर मांगे गए स्पष्टीकरण का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट 14 अक्टूबर को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को सौंप दी।
इसमें समिति ने साफ कहा है कि पंजाब विश्र्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू चेयर प्रोफेसर का पद न सरकारी है और न ही पूर्णकालिक। ऐसे में कहीं से भी यह लाभ के पद के दायरे में नहीं आता। इसीलिए डा. मनमोहन सिंह इस पद को संभालते हैं तो उन पर जनप्रतिनिधित्व कानून में लाभ के दोहरे पद जैसा कोई मामला नहीं बनेगा और उनकी संसद की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं होगा। वैसे भी मनमोहन सिंह को वहां बतौर चेयर प्रोफेसर पढ़ाने के लिए कोई वेतन नहीं मिलेगा। बताया जाता है कि पंजाब विश्र्वविद्यालय उन्हें दैनिक भत्ते के तौर पर संभवत: पांच हजार रुपए की राशि का भुगतान करेगा।
दिलचस्प बात यह है कि नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद सबसे अधिक समय तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने इसी पंजाब विश्र्वविद्यालय से 1954 में एमए की पढ़ाई की। बतौर सीनियर लेक्चरर इसी विश्र्वविद्यालय में 1957 में उन्होंने अपने अध्यापक कैरियर की शुरूआत की और 1963 में प्रोफेसर बन गए। यहां से शुरू हुए सफर के साथ वे आगे रिजर्व बैंक के गर्वनर, देश के वित्तमंत्री, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और फिर दस साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद एक बार फिर इस विश्र्वविद्यालय में लौटेंगे।
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