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ट्रंक्युलाइजर गन के इस्तेमाल से बच सकती थी मकसूद की जान

सात साल का सफेद बाघ अपने बाड़े में गिरे 20 साल के मकसूद को 15 मिनट से भी ज्यादा समय तक तड़पा-तड़पा कर मारता रहा लेकिन उसको बचाने के लिए पांच मिनट के अंदर इस्तेमाल में आने वाली ट्रंक्युलाइजर गन मौके से करीब 250 मीटर दूर चिड़ियाघर के अस्पताल में पड़ी रही।

By Edited By: Published: Wed, 24 Sep 2014 09:10 AM (IST)Updated: Wed, 24 Sep 2014 09:39 AM (IST)
ट्रंक्युलाइजर गन के इस्तेमाल से बच सकती थी मकसूद की जान

नई दिल्ली [राकेश कुमार सिंह]। सात साल का सफेद बाघ अपने बाड़े में गिरे 20 साल के मकसूद को 15 मिनट से भी ज्यादा समय तक तड़पा-तड़पा कर मारता रहा लेकिन उसको बचाने के लिए पांच मिनट के अंदर इस्तेमाल में आने वाली ट्रंक्युलाइजर गन मौके से करीब 250 मीटर दूर चिड़ियाघर के अस्पताल में पड़ी रही।

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सरकारी मानक के अनुसार खतरनाक जानवरों के पास ट्रंक्युलाइजर गन के साथ तीन कर्मचारियों की तैनाती होनी चाहिए लेकिन राजधानी के चिड़ियाघर में सिर्फ दो ही ट्रंक्युलाइजर गन होने से उसका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा था। वह अस्पताल में पड़ी रहती थी और कर्मचारी निहत्थे खतरनाक जानवरों के बाड़े के पास खड़े रहते थे। इस मामले में निजामुद्दीन थाना पुलिस अज्ञात के खिलाफ लापरवाही से मौत की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस ने उसके पिता महफूज के बयान भी दर्ज कर लिये हैं। बयान में उन्होंने कहा है कि उनका बेटा मकसूद मजदूरी करता था। वह दिमाग से कमजोर था। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। मंगलवार को वह काम पर जाने की बात कहकर घर से निकला था। लेकिन वह चिड़िया घर पहुंच गया। यहां कैसे पहुंचा इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है। इधर, इतनी बड़ी लापरवाही पर चिड़ियाघर के निदेशक अमिताभ अग्निहोत्री के बयान तो और भी हैरान करने वाला है। उनका कहना है कि ट्रंक्युलाइजर गन अस्पताल में रखी थी। कर्मचारियों को उतना वक्त नहीं मिल पाया कि अस्पताल से टंक्युलाइजर गन लाकर मृतक की जान बचाई जा सके।

खतरनाक जानवरों को बिना चोट पहुंचाए काबू में करने व पकड़ने के लिए देश के सभी चिड़ियाघरों व जंगलों में लंबे समय से ट्रंक्युलाइजर गन (इसे कैप्चर गन या डर्ट गन भी कहते हैं) इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस गन में सुई की तरह गोली होती है जो जानवरों को चुभते ही मिनटों में शरीर में नशीला केमिकल फैलने पर अचेत होकर गिर जाता है। राजधानी के चिड़िया घर में केवल दो ट्रंक्युलाइजर गन हैं। मानक यह है कि यहां जितने भी खतरनाक जानवर हैं उसके बाड़े के पास तीन-तीन कर्मचारियों (एक कीपर, एक असिस्टेंट कीपर व एक अटेनडेंट) की तैनाती होनी चाहिए। वे तबतक तैनात रहेंगे जब तक चिड़िया घर आम लोगों के लिए खुला रहता है।

पुलिस के मुताबिक इस चिड़िया घर में भी सभी खतरनाक जानवरों के बाड़े के पास तीन-तीन कर्मचारियों की ड्यूटी रहती है। लेकिन चिड़िया घर प्रशासन बेहद लापरवाह था। कर्मचारी ट्रंक्युलाइजर गन के साथ ड्यूटी नहीं करते थे। नियम यह है कि जब भी खतरनाक जानवरों के बाड़े के पास कोई आपात स्थिति आए तब पांच मिनट में कर्मचारी ट्रंक्युलाइजर गन से फायरिंग कर जानवर को काबू में कर सके।

पत्थर न फेंकते तो हमला न करता बाघ

बाघ ने उस युवक को छोड़ ही दिया था, अगर लोग पत्थर न फेंकते तो वह युवक की जान नहीं लेता। यह बात जाने माने बाघ विशेषज्ञ व रणथम्भौर फाउंडेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीके सेन ने दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान कही। पीके सेन ने कहा कि जंगल में रहने वाले बाघों में जरूर लोगों को मारने व शिकार करने की प्रवृति होती है। वैसे तो मांसाहारी जानवर किस घटना पर किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे यह कहना बहुत मुश्किल है। ऐसे जानवर अपने आसपास खतरा देखते ही आक्रमण कर देते हैं।

हालांकि चिड़ियाघर का सफेद बाघ विजय क्योंकि यहीं इसी चिड़ियाघर में पैदा हुआ और इसी माहौल में पला बढ़ा था तो उसमें लोगों को मारने की प्रवृति नहीं हो सकती। चिड़ियाघर में युवक की मौत की दुर्भाग्य पूर्ण घटना को देखते हुए यह स्पष्ट है कि जब युवक मांद में गिरा तो बाघ उसके पास आया और उसे चाट कर छोड़ दिया और मुड़कर जाने लगा। इसी दौरान जब लोगों ने पत्थर मारने शुरू किए तो बाघ आक्रमक हो गया। उस वक्त उसे ऐसा लगा होगा कि मकसूद ने ही उसे पत्थर मारा। ऐसे में खतरा भांप कर उसने युवक पर हमला कर दिया। कहीं न कहीं इसमें गलती उन लोगों की है जिन्होंने बाघ को पत्थर मारा। वरना शायद युवक की जान बच जाती। अमूमन चिड़ियाघर के बाघ आक्रामक नहीं होते हैं।

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