"नियमों के तहत रखें बात तो सभी को मौका देने का प्रयास"
एकदलीय बहुमत वाली सोलहवीं लोकसभा का संचालन लगातार आठवीं बार चुनकर पहुंचीं सुमित्रा महाजन के लिए आसान नहीं है। सौम्य और मृदुभाषी 'ताई' (इसी नाम से वे ज्यादा लोकप्रिय हैं) को आसन से सख्त रुख भी अपनाना पड़ता है। हालांकि उनका इतना ही आग्रह है- सदस्य नियमों के तहत बात
नई दिल्ली। एकदलीय बहुमत वाली सोलहवीं लोकसभा का संचालन लगातार आठवीं बार चुनकर पहुंचीं सुमित्रा महाजन के लिए आसान नहीं है। सौम्य और मृदुभाषी 'ताई' (इसी नाम से वे ज्यादा लोकप्रिय हैं) को आसन से सख्त रुख भी अपनाना पड़ता है। हालांकि उनका इतना ही आग्रह है- सदस्य नियमों के तहत बात रखने का प्रयास करें। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता प्रणय उपाध्याय की लोकसभाध्यक्ष से हुई खास बातचीत के अंश-
-लंबे अर्से बाद एकदलीय बहुमत वाली लोकसभा है और आप इसकी अध्यक्ष हैं। बीते छह महीनों में आपका अनुभव कैसा रहा?
-यह काफी जिम्मेदारी वाला अनुभव है। एकदलीय बहुमत की सरकार में सबकी नजर होती है कि लोकसभाध्यक्ष ने छोटे दलों को कितना मौका दिया। प्रजातंत्र में जरूरी है कि छोटे दलों को भी बात कहने का मौका मिले। मेरा प्रयास रहता है कि अधिक से अधिक दलों के सांसदों को अवसर दे सकूं। मेरा आग्रह बस यही है कि नियमों के तहत बात रखी जाए। पहली बार चुनकर आए 300 से ज्यादा सांसदों को अधिक मौका देने का मेरा आग्रह है। मेरे लिए तो दो सदस्यों वाले दल भी अहम हैं।
मैंने अपने लिए कुछ नियम भी बनाए हैं। जैसे पहले नियम 377 के उल्लेख सदन में बिना पढ़े रख दिए जाते थे, लेकिन मैं प्रयास करती हूं सांसद उन्हें पढ़ें। इसके अलावा पूरक प्रश्नों में भी अधिक से अधिक सांसदों को समाहित करने की कोशिश रहती है।
पिछले सत्र में आप पर भेदभाव के आरोप लगे। आगे ऐसे हमले न हों इसके लिए क्या प्रयास करेंगी?
आपने देखा होगा कि जब आरोप लगे तो मैंने वहीं नियंत्रित भी किया। मुझ पर सीधे आक्षेप लगाने का जब एक बार प्रयास हुआ तो सदन स्थगित कर दिया। साथ ही स्पष्ट कर दिया कि माफी मांगनी होगी, क्योंकि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। दरअसल लोकसभाध्यक्ष कोई निरंकुश सत्ताधीश नहीं है। उसका विशेषाधिकार भी संविधान, नियम व संसदीय परंपराओं से बंधा है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से आरोप लगे कि उनके सांसदों को अवसर नहीं मिलता। इसे कैसे देखती हैं?
यह आरोप झूठे थे, यह भी तो सामने आ गया। सदन में बोलने का मौका उसे दिया जाए जो सदन में आए। माफ कीजिएगा, लेकिन यह बात मैंने नहीं कही। मीडिया ने ही यह तथ्य सामने रखा। वैसे मेरे विचार में लोकसभा अध्यक्ष को ऐसे आरोपों का जवाब देना भी नहीं चाहिए। लोग आचरण से स्वयं देख सकते हैं।
शीतकालीन सत्र से पहले सांसदों को मर्यादा की सीख देना चाहेंगी?
देखिए, प्रजातंत्र का अर्थ ही यही है कि तुम्हारा भी अधिकार और मेरा भी अधिकार। इन दोनों के जुड़ने से ही लोकतंत्र बनता है। हम भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्रजातंत्र बताते हैं, तो सभी को इस बात को समझना होगा।
-प्रश्नकाल को हंगामे से बचाने के लिए राज्यसभा की तर्ज पर क्या लोकसभा में इसका समय बदलने का विचार है?
-बजट सत्र में 126 प्रश्नों के मौखिक उत्तर हुए और 5339 अतारांकित सवालों के जवाब आए। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि समय बदलने की जरूरत पड़ेगी।
आपने साफ संसद-हरित संसद का प्रयास शुरू किया है। कुछ बताएंगी इस बारे में?
संसद भवन एक ऐतिहासिक इमारत है। इसका रखरखाव एक चुनौती है। हमने शहरी विकास मंत्रालय के साथ मिलकर इसके लिए प्रयास शुरू किए हैं। संसद में पुरानी हो चुकी वायरिंग को बदला जा रहा है। साथ ही मैंने संसद में साफ-सफाई और कागजों की बर्बादी रोकने के लिए भी प्रयास शुरू किया है। रिकार्ड व वितरण तालमेल की कमी के कारण हजारों दस्तावेज छपने के बाद धूल खाते हैं। हम यह सूरत बदलना चाहते हैं।