राज्य सभा चुनाव के लिए गोलबंदी शुरू
राज्य सभा रिक्त दस सीटों के द्विवार्षिक चुनाव के लिए आयोग कभी भी चुनाव कार्यक्त्रम घोषित कर सकता है। राजनीतिक दलों में अपने-अपने दावे को मजबूत करने के लिए गोलबंदी शुरूहो चुकी है। इनमें से छह सीटें सपा के हिस्से में आनी लगभग तय है। जाहिर है कि राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवारी को लेकर सबसे ज्यादा घमासान भी सपा में ही है। वि
लखनऊ। राज्य सभा रिक्त दस सीटों के द्विवार्षिक चुनाव के लिए आयोग कभी भी चुनाव कार्यक्रम घोषित कर सकता है। राजनीतिक दलों में अपने-अपने दावे को मजबूत करने के लिए गोलबंदी शुरू हो चुकी है। इनमें से छह सीटें सपा के हिस्से में आनी लगभग तय है। जाहिर है कि राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवारी को लेकर सबसे ज्यादा घमासान भी सपा में ही है।
विधान सभा में मौजूदा संख्या बल के हिसाब से सपा के अलावा बसपा दो तथा भाजपा एक सीट जीत सकती है। कांग्रेस और रालोद मिलकर एक सीट पर दावा कर सकते हैं। चूकी कोई दल चुनाव नहीं चाहता, ऐसे में सभी दल अपनी हैसियत के अनुसार ही प्रत्याशी उतारते हैं। मसलन, सपा के पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव को दोबारा राज्य सभा जाना तय है। चुनाव हारने वाले नेताओं में फिलवक्त कुंवर रेवती रमण सिंह, शफीकुर्रहमान बर्क और नीरज शेखर के नाम संभावितों की सूची में टॉप पर हैं। सपा के हिस्से में आने वाली बची दो सीटों के लिए खासी मारा-मारी है। सपा के पूर्व नेता अमर सिंह को लेकर भी कयासों को दौर जारी है।
बसपा के हिस्से में आने वाली दो सीटों का जहां तक सवाल है। इनका फैसला पार्टी सुप्रीमो मायावती को करना है। पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि राजाराम को फिर से राज्य सभा भेजा सकता है। संसाधनों से संपन्न डा. अखिलेश दास राज्य सभा में एक और कार्यकाल पा जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह भी संभव है कि मायावती कोई हैरान करने वाला फैसला कर राज्य सभा की प्रत्याशिता तय करें।
भाजपा को संख्या बल के हिसाब से महज एक सीट मिलनी है। लेकिन, यहां स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली है। दावेदार असीमित हैं, लेकिन आलाकमान विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी किसे तरजीह देगी। सब कुछ इसी पर निर्भर हैं। जहां तक दावेदारों का सवाल है, केंद्रीय गृहमंत्री करीबी माने जाने वाले एक राष्ट्रीय प्रवक्ता के अलावा दिल्ली में राजनीति करने वाले कई दावेदार अपने-अपने पक्ष में गोलबंदी करने में लगे हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है वह अपने बूते कोई सीट जीतने की स्थित में तो नहीं, लेकिन रालोद के साथ मिलकर यह एक सीट जीत सकती है। इसके लिए रालोद अध्यक्ष चौ.अजित सिंह खुद प्रबल दावेदार हैं। वहीं, कांग्रेस में लोकसभा का चुनाव हारने वाले कई पूर्व केंद्रीय मंत्री व अन्य नेता भी राज्यसभा की जोड़-तोड़ में हैं। बहरहाल राज्य सभा को लेकर कांग्रेस की रणनीति उसके रालोद के साथ गठबंधन को जारी रखने की प्राथमिकता पर टिकी है।
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