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बुंदेलखंड की सूखी धरती पर लहलहा रही हरियाली, किसान काट रहे हैं मुनाफे की फसल

पीड़ित किसानों के लिए कर रही संजीवनी का काम, बदहाली को खुशहाली में बदल रही औषधीय घास

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 23 Feb 2018 09:25 AM (IST)Updated: Fri, 23 Feb 2018 01:44 PM (IST)
बुंदेलखंड की सूखी धरती पर लहलहा रही हरियाली, किसान काट रहे हैं मुनाफे की फसल
बुंदेलखंड की सूखी धरती पर लहलहा रही हरियाली, किसान काट रहे हैं मुनाफे की फसल

बांदा [हरी मिश्र]। हरियाली अरसे तक बुंदेलखंड से रूठी रही। साल दर साल सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखंड की धरती ही मानो सूख गई। बदहाली के आगे थक हारकर न जाने कितने किसानों ने इहलीला समाप्त की। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, अब हालात सुधर रहे हैं। लेमन ग्रास के नन्हें-नन्हें पौधे सूखी धरती को हरियाली का तोहफा देते दिख रहे हैं। बुंदेलखंड के किसानों की आस लौट आई है। खुशहाली उनके जीवन में दस्तक देने लगी है। सरकार बुंदेलखंड में लेमन ग्रास की खेती को प्रोत्साहित कर रही है।

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2015 में हुई थी शुरुआत

उप्र राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड की पहल भी रंग ला रही है। 2015 में बोर्ड ने यहां लेमन ग्रास की खेती का प्रोजेक्ट शुरू किया था। प्रयोग सफल रहा। अब बुंदेलखंड के बड़े भूभाग में इसे विस्तार दिया जा रहा है। किसानों को पौध, प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है।

चौगुना हुआ हौसला

बांदा, उत्तरप्रदेश के किसान विपिन सिंह का उदाहरण सामने है। जो यहां के बदलते हालात की बानगी देता है। लेमन ग्रास की खेती ने विपिन की उम्मीदों और हौसले को चौगुना कर दिया है। परंपरागत फसलों की खराब स्थिति को देखते हुए उन्होंने लेमन ग्रास की खेती शुरू की। जो अब उन्हें अन्य फसलों की अपेक्षा तीन से चार गुना अधिक कमाई करा रही है।

न रोग, न जानवरों से नुकसान

विपिन बताते हैं कि इस खेती में कोई नुकसान नही होता है। पौधो में न तो किसी प्रकार का कोई रोग लगता है और न ही जानवरों से नुकसान पहुंचता है। जानवर इस घास को नहीं चरते हैं। जिससे एक बार लगाने के बाद पांच साल तक न रखवाली करनी पड़ती है और न ज्यादा कोई खर्च होता है। इसके लिए किसी विशेष मिट्टी की भी जरूरत नहीं है।

बाजार भी आसान

घास से निकलने वाले तेल के लिए बाजार भी उपलब्ध है। विपिन बताते हैं कि लखनऊ स्थित राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड के आलावा कई जगह यह तेल आसानी से बिक जाता है। अब तो वह खुद भी क्षेत्रीय किसानों को सुविधा देने के लिए तेल लेने को तैयार रहते हैं। जिसे बाजार तक पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि इससे निकलने वाले तेल का इस्तेमाल साबुन आदि बनाने में सुगंध के रूप में किया जाता है। विपिन ने लेमनग्रास का तेल निकालने के लिए प्लांट भी लगा रखा है। वह बताते हैं कि इस पर उन्हें करीब 70 हजार रुपये खर्च करने पड़े।

कमा रहे सालाना 40 हजार रुपये प्रति बीघा

बांदा के किसान विपिन सिंह बताते हैं कि नींबू घास (लेमन ग्रास) से निकलने वाले तेल को वह 11 सौ रुपये लीटर तक के दाम पर बाजार में बेचते हैं। एक बार की कटाई में प्रति बीघा नौ से 10 लीटर तेल निकलता है। पहली फसल तैयार करने के बाद हर दो से तीन महीने में कटाई करते हैं।

साल में चार बार कटाई करते हैं। प्रति बीघे करीब 40 हजार रुपये तक कमाई हो जाती है। वह बताते हैं कि एक बार फसल आ जाने पर अगले पांच साल तक बोआई नहीं करनी पड़ती। रखरखाव पर अधिक खर्च नहीं है। एक बार पौधे आ जाने पर हल्की सिंचाई ही बीच-बीच में करनी पड़ती है। शुरुआती लागत भी अधिक नहीं है। 


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