...तो देश में जल संकट ना बढ़ता और गंगा, यमुना की ये दुर्दशा होती!
अगर रिवर बोर्ड्स गठित हो जाते तो आज न तो जल संकट विकराल होता और न ही नदियों की स्थिति खराब होती।
नई दिल्ली, हरिकिशन शर्मा। सरकार ने अगर रिवर बोर्ड्स एक्ट 1956 पर अमल किया होता तो देश में आज न तो जल संकट बढ़ता और न ही नदियों की दुर्दशा होती। साठ साल पहले संसद से पारित होने के बावजूद यह कानून सरकारी फाइलों में कैद होकर रह गया है। अगर यह प्रभावी ढंग से लागू होता तो आज गंगा और यमुना सहित देश की सभी बड़ी नदियों में प्रदूषण की समस्या इतनी विकराल नहीं होती।
रिवर बोर्ड्स एक्ट संसद से 1956 में पारित हुआ था। इसकी धारा चार के तहत गंगा व यमुना जैसी अंतर्राज्यीय नदियों के लिए नदी बोर्ड बनाने का प्रावधान था। केंद्र सरकार नदी के प्रवाह क्षेत्र वाले राज्यों के साथ परामर्श कर आम राय से यह बोर्ड बना सकती थी। इस कानून के तहत बनने वाले बोर्ड इतने शक्तिशाली होते कि उन्हें जलापूर्ति से लेकर नदियों के प्रदूषण के संबंध में नियम और दिशानिर्देश बनाने का अधिकार था। साथ ही इसे नदियों के किनारे वृक्षारोपण कराने और नदी बेसिन के विकास की योजनाएं बनाने व उनके क्रियान्वयन की निगरानी की शक्ति भी हासिल थी। हालांकि किसी भी सरकार ने इस कानून को लागू कर नदियों के बोर्ड गठित करने की जहमत नहीं उठायी।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व अध्यक्ष ए बी पांड्या कहते हैं कि आज भी यह कानून मौजूद है, लेकिन इसके तहत सरकार ने एक भी नदी के लिए रिवर बोर्ड का गठन नहीं किया है। अगर रिवर बोर्ड्स गठित हो जाते तो आज न तो जल संकट विकराल होता और न ही नदियों की स्थिति खराब होती।
संविधान की वर्किंग की समीक्षा के लिए गठित एम एन वेंकटचलैया आयोग ने अपनी रिपोर्ट में तो इस कानून को 'डैड लेटर' अर्थात अप्रचलित कानून करार देते हुए इसके प्रावधानों को समाहित करते हुए जल पर एक समग्र कानून बनाने की सिफारिश की। वहीं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में यही सिफारिश की। आयोग ने इस संबंध में दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस और चीन का उदाहरण भी दिया जहां जल के बेहतर प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कानून या नदी बेसिन के लिए तंत्र बनाए गए हैं। हालांकि सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव शशि शेखर कहते हैं कि 1956 के रिवर बोर्ड एक्ट के प्रावधान सुझाव के रूप में थे न कि अनिवार्य। बेहतर होगा अगर सरकार इसके अच्छे प्रावधानों को निकालकर अंतर्राज्यीय नदियों के संबंध में एक नया कानून बनाए। तभी जल संकट का स्थायी समाधान निकल सकेगा। अन्यथा जल प्रदूषण और जल को लेकर राज्यों के बीच आपस के झगड़े बढ़ते जाएंगे और जल के संबंध में जवाबदेही सुनिश्चित करना मुश्किल होगा।
वैसे यह बात अलग है कि सरकार ने कुछ नदियों के लिए रिवर बोर्ड बनाए, लेकिन वे इस कानून के तहत नहीं बने थे। मसलन, केंद्र ने 1995 में एक प्रस्ताव के जरिए अपर यमुना बोर्ड बनाया। लेकिन इसका काम महज नदी के जल में राज्यों की हिस्सेदारी तक ही सीमित था। इस बोर्ड ने यमुना नदी में प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
ये दस काम करता रिवर बोर्ड
1. अंतर्राज्यीय नदी जल का उपयुक्त उपयोग, नियंत्रण और संरक्षण
2. सिंचाई, जलापूर्ति या ड्रेनेज की योजनाओं का परिचालन और प्रोत्साहन
3. बाढ़ नियंत्रण योजनाओं का परिचालन और प्रोत्साहन
4. नौवहन पर नियंत्रण एवं प्रोत्साहन
5. मृदा क्षरण नियंत्रण और वृक्षारोपण प्रोत्साहन
6. अंतर्राज्यीय नदियों में जल प्रदूषण
7. नदी घाटी व बेसिन के विकास की योजनाएं बनाना
8. नदी बेसिन की योजनाओं के क्रियान्वयन की लागत राज्यों को बताना
9. योजनाओं पर प्रगति की निगरानी करना
10. राज्य सरकारों को परामर्श देना