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भूमि कानून पर कांग्रेस में खींचतान, कांग्रेस नेतृत्व को तगड़ा झटका

राहुल गांधी के ड्रीम कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन के मुद्दे पर राजग सरकार को कांग्रेस शासित राज्यों की सुझावों के जरिए मिली सहमति के कारण इन राज्य सरकारों और पार्टी नेतृत्व में खींचतान की स्थिति पैदा हो गई है।

By Edited By: Published: Thu, 17 Jul 2014 03:24 AM (IST)Updated: Thu, 17 Jul 2014 07:07 AM (IST)
भूमि कानून पर कांग्रेस में खींचतान, कांग्रेस नेतृत्व को तगड़ा झटका

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राहुल गांधी के ड्रीम कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन के मुद्दे पर राजग सरकार को कांग्रेस शासित राज्यों की सुझावों के जरिए मिली सहमति के कारण इन राज्य सरकारों और पार्टी नेतृत्व में खींचतान की स्थिति पैदा हो गई है। अपने राज्यों के रुख से इस मुद्दे पर सरकार से तकरार की तैयारी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व को तगड़ा झटका लगा है और पार्टी बैकफुट पर नजर आ रही है। राजग सरकार ने विकास को गति देने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की तैयारी तेज कर दी है। इस उठापटक के बीच कांग्रेस ने सरकार पर कॉरपोरेट घरानों के दबाव में होने का आरोप लगाया है। साथ ही पार्टी आलाकमान ने कांग्रेस शासित राज्यों को मनाने का जिम्मा जयराम रमेश के कंधों पर डाल दिया है।

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निजाम बदलने के साथ देश के विकास को गति देने के प्रयास में केंद्र ने संप्रग सरकार द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की कवायद शुरू कर दी है। देश में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता देने और बजट में देश भर में 100 स्मार्ट सिटी बनाने का वादा कर चुकी भाजपा नीत राजग सरकार को लगता है कि भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधान इसमें अड़चन पैदा कर सकते हैं। लिहाजा, सरकार ने पहल करते हुए राज्यों से इस कानून में बदलाव के लिए सुझाव मांगे थे। राहुल गांधी के ड्रीम कानून में बदलाव लाने के सरकार के कदम से तिलमिलाई कांग्रेस ने भाजपा पर किसानों के हितों की उपेक्षा का आरोप लगाया। हालांकि अब स्वशासित राज्यों के बदलाव के समर्थन में आने से कांग्रेस पसोपेश में है।

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस शासित राज्यों ने पार्टी आलाकमान को कहा है कि कानून के प्रावधानों के कारण उनके राज्यों में ढांचागत निवेश में कमी आ रही है। ऐसे में पार्टी को संशोधनों को लेकर कड़ा रुख नही अपनाना चाहिए। इस मामले को लेकर बेहद गंभीर आलाकमान ने संकेत दिए हैं कि पार्टी इस पर संसद से सड़क तक अभियान चलाएगी। हालांकि, राज्यों के इस रुख को देखते हुए आलाकमान ने एक बार फिर इस मामले की जिम्मेदारी कानून को पारित कराने में अहम भूमिका निभा चुके जयराम रमेश पर डाल दी है।

जयराम के कंधों पर पार्टी शासित राज्यों को इस मुद्दे पर रणनीतिक चुप्पी साधने के लिए मनाने और विपक्ष को एक करने की जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि जयराम कानून में संशोधन की सरकार की कवायद का जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं। इसके उलट राजग सरकार कांग्रेस शासित राज्यों से सकारात्मक समर्थन आने के बाद उत्साहित है। केंद्रीय भूतल परिवहन राजमार्ग व ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने कांग्रेस की मुश्किलों को बढ़ाते हुए कहा है कि संशोधन में कांग्रेस शासित राज्यों के सुझावों को प्राथमिकता दी जाएगी। गौरतलब है कि हरियाणा, असम, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने कानून में संशोधन पर अपने सुझाव देकर सरकार की इस मुहिम को मौन समर्थन दे दिया है।

राज्यों ने दिए हैं 19 सुझाव

बजट सत्र में पेश होने वाले भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का आधार वे 19 सुझाव हैं जो राजस्व मंत्रियों के सम्मेलन में मिले थे। इन सुझावों को प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा जा चुका है। इनमें एक सुझाव पीपीपी परियोजनाओं में 80 फीसद भू स्वामियों की सहमति को घटाकर 50 फीसद करने का है। एक अन्य सुझाव सामाजिक प्रभाव के आकलन संबंधी प्रावधान को केवल बड़ी परियोजनाओं पर ही लागू करने का है। दिल्ली, गोवा, हिमाचल और उत्तराखंड को बहुफसली भूमि के अधिग्रहण पर इतनी ही जमीन को खेती लायक बनाने वाले प्रावधान पर आपत्ति है। इन राज्यों का कहना है कि उनके यहां इस प्रावधान पर अमल संभव नहीं। कुछ राज्यों ने कानून के पिछली अवधि से लागू करने पर भी आपत्ति जाहिर की है। कई राज्यों ने कुछ प्रावधानों को और सख्त बनाने की भी बात कही है।

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