भूमि मालिकों को सूचित नहीं किया तो अधिग्रहण अवैध
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में एक अहम फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सरकार प्रभावित पक्षों को भूमि अधिग्रहण के लिए अनिवार्य सार्वजनिक सूचना जारी करने में नाकाम रहती है तो भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया अवैध हो जाएगी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में एक अहम फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सरकार प्रभावित पक्षों को भूमि अधिग्रहण के लिए अनिवार्य सार्वजनिक सूचना जारी करने में नाकाम रहती है तो भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया अवैध हो जाएगी। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा वर्ष 1975 में रक्षा इकाई के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण को रद करते हुए यह फैसला दिया।
न्यायमूर्ति एचएल दत्तू व एआर दवे की पीठ ने कहा कि अधिग्रहण को सरकारी गजट में अधिसूचित करने के अलावा प्राधिकरण प्रभावित लोगों को मीडिया में अधिसूचना के जरिए सूचना देने के लिए बाध्य है। यह अधिसूचना स्थानीय क्षेत्र के कम से कम दो समाचार पत्रों में निकलनी चाहिए।
महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अपील पर फैसले में कोर्ट ने कहा कि चूंकि भूमि अधिग्रहण के दौरान कानून की धारा 4 [1] के तहत अनिवार्य जरूरत का पालन प्रतिवादी ने नहीं किया इसलिए हमारी राय में अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया को अमान्य घोषित करने की जरूरत है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हम अपीलकर्ता के दावे को 50 फीसद भूमि तक सीमित करते हैं। यह भूमि बांबे के उपनगरीय जिले मलाड गांव में सर्वे संख्या 119/3 की है। याचिकाकर्ता कुलसुम नाडियाडवाला व इस्माइल नाडियाडवाला नाम के व्यक्ति के अन्य उत्तराधिकारियों ने बांबे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण रद करने की अपील खारिज कर दी थी। 24 अक्टूबर 1975 को राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 की धारा चार के तहत अलग-अलग गांवों से भूखंडों के अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की थी। कोर्ट इन वारिसों की इस बात से सहमत था कि अधिग्रहण के समय प्राधिकरण को सार्वजनिक सूचना जारी करनी चाहिए थी।
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