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भूमि अधिग्रहण कानून: विपक्ष के दबाव में झुकी सरकार

भूमि अधिग्रहण कानून पर विपक्ष के कड़े विरोध के बाद सरकार संप्रग सरकार के पुराने विधेयक की तरफ लौटती दिख रही है। खासतौर पर राजग सरकार के अध्यादेश में जगह नहीं पाने वाले संप्रग के दो प्रमुख प्रस्तावों भू-स्वामियों की सहमति और सामाजिक प्रभाव के आकलन के वापस विधेयक में

By Test1 Test1Edited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 09:06 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 09:19 PM (IST)
भूमि अधिग्रहण कानून: विपक्ष के दबाव में झुकी सरकार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण कानून पर विपक्ष के कड़े विरोध के बाद सरकार संप्रग सरकार के पुराने विधेयक की तरफ लौटती दिख रही है। खासतौर पर राजग सरकार के अध्यादेश में जगह नहीं पाने वाले संप्रग के दो प्रमुख प्रस्तावों भू-स्वामियों की सहमति और सामाजिक प्रभाव के आकलन के वापस विधेयक में शामिल होने संभावना बढ़ गई है। साथ ही कानून में जोड़े गये 10ए जैसे प्रावधान को हटाने का भी निर्णय लिया गया है।

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भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधनों पर सिफारिश देने के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति की सोमवार को हुई बैठक में प्रमुख छह संशोधनों को लंबी बहस के बाद वापस ले लिया गया। बताया जाता है कि बैठक में भाजपा के 11 सांसदों ने इन विषयों पर संशोधन प्रस्ताव पेश किए। इससे भूमि अधिग्रहण विधेयक पर उठे राजनीतिक तूफान के थमने का रास्ता खुल सकता है और 7 अगस्त को आने वाली रिपोर्ट में समिति के चेयरमैन और भाजपा सांसद एसएस अहलूवालिया इन बदलावों को शामिल करेंगे।

दरअसल, राजग सरकार ने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के पारित भूमि अधिग्रहण कानून को 15 संशोधनों के साथ संसद में विधेयक पेश किया था। इसके खिलाफ जहां समूचा विपक्ष उठ खड़ा हुआ, वहीं राजग के घटक दलों में भी इसे लेकर आमराय नहीं थी। अकाली दल और शिवसेना जैसे घटक दलों ने तो सार्वजनिक तौर पर भी इन संशोधनों के खिलाफ आवाज उठानी शुरु कर दी थी। बजट सत्र में यह मुद्दा जबर्दस्त तरीके से उठाया गया। इसके चलते सदन का कामकाज बुरी तरह प्रभावित रहा। समस्या के समाधान के लिए सरकार ने संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की एक संयुक्त समिति का गठन किया था। संयुक्त समिति को चालू मानसून सत्र में तीन अगस्त को अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी। लेकिन अब इसकी अवधि चार दिन और बढ़ा दी गई है।

कुल 15 संशोधनों में से चार संशोधन प्रक्रिया से जुड़े हैं, जिस पर समिति में कोई विवाद नहीं है। इसी तरह दो अन्य संशोधनों का ताल्लुक पुराने कानून के फालोअप से है, जिसे लागू करना वैधानिक है। बाकी नौ प्रमुख संशोधनों में से छह पर शुक्रवार को बहस हुई और मंगलवार को बचे तीन पर बहस होगी। इनमे दो प्रमुख संशोधन होंगे। अधिग्रहण के पुराने मामलों में (रेट्रोस्पेक्टिव) मुआवजा देने और अधिग्रहीत जमीन पर पांच साल तक प्रस्तावित परियोजना स्थापित नहीं होने पर भूस्वामी को जमीन वापसी जैसे प्रावधानों पर चर्चा होनी है। जिन छह संशोधनों पर चर्चा हुई, उनमें पहला प्राइवेट कंपनियों को बदलकर 'एंटिटी' कर दिया गया था, जिसे अब हटाकर फिर कंपनी कर दिया गया। 'एंटिटी' शब्द के होने से विभिन्न सामाजिक व गैर सरकारी संगठनों के लिए भी जमीन अधिग्रहण आसान हो जाता। दूसरा संशोधन, प्राइवेट के लिए 80 फीसद व पीपीपी परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण करने पर 70 फीसद लोगों की सहमति (कंसेंट) के प्रावधान को खत्म करने वाला था। पुराने कानून के प्रावधान को बहाल कर दिया गया है।

इसी तरह तीसरे प्रमुख संशोधन से सामाजिक प्रभाव आंकलन (सोशल इंपैक्ट एसेस्मेंट) के प्रावधान को खत्म कर दिया गया था। समिति में इसकी वापसी पर सहमति बन गई है। चौथे संशोधन में औद्योगिक गलियारे के दोनों ओर की एक-एक किमी जमीन का अधिग्रहण करने का प्रावधान था, जिसे बगैर किसी खास चर्चा के ही हटाने पर राय बन गई है। पांचवें संशोधन से सरकार ने पुराने कानून में सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारी से मुक्त करने का प्रावधान कर दिया था। इसे भी हटा लिया गया है। छठवां संशोधन कर सरकार ने एक नया सेक्शन 10ए जोड़ कर कई क्षेत्रों को भूमि अधिग्रहण के लिए खोल दिया था।

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