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गठबंधन की गांठ बचाने के लिए लालू के सिपहसालारों की दिल्ली दौड़

अभी हाल की बात है लालू के प्रमुख सिपहसालार केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों के पास मदद की गुहार लेकर पहुंचे थे।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Mon, 26 Jun 2017 07:52 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 07:52 AM (IST)
गठबंधन की गांठ बचाने के लिए लालू के सिपहसालारों की दिल्ली दौड़
गठबंधन की गांठ बचाने के लिए लालू के सिपहसालारों की दिल्ली दौड़

नई दिल्ली, आशुतोष झा। अभी दो साल भी नहीं हुए हैं और बिहार में महागठबंधन की सरकार ऐसे मोड़ पर पहुच गयी है जहां व्यक्तिगत हित के आगे सरकार पीछे हो गयी है। राजद की बेचैनी इस कदर है कि अपनी गर्दन बचाने के लिए जद यू से रिश्ते भी तल्ख हो जायें तो कोई गम नहीं। बस बेनामी संपत्ति मामले में लालू परिवार बच निकले। इसीलिए लालू यादव के पुराने सिपहसालार दिल्ली में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अलग-अलग दरवाजे खटखटाए जा रहे हैं पर हाथ कुछ नहीं लग रहा है। रस्सी तन चुकी है। अब संतुलन थोड़ा भी बिगड़ा तो गठबंधन में गांठे ही नजर आएंगी।

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अभी हाल की बात है लालू के प्रमुख सिपहसालार केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों के पास मदद की गुहार लेकर पहुंचे थे। सूत्रों की मानी जाए तो यह दौड़ तीन से ज्यादा बार लगाई गई है। चौतरफा घिरे लालू परिवार को बचाने की अपील की। बताते हैं कि सुर कुछ ऐसे थे कि जदयू को रगडऩे की भी बात कही गयी। जाहिर है कि बेचैनी चरम पर है। हालांकि उन्हें साफ लफ्जों में कह दिया गया कि कानून अपना काम करता रहेगा। पर इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विचारधारा और बिहार की बेटी का हवाला देकर लालू सिर्फ अपनी खीझ निकाल रहे थे। राजद परेशान है कि नीतीश बचाव के लिए नही आ रहे हैं। राजद शायद यह भूल गया है कि खुद बिहार में नीतीश बेनामी संपत्ति के खिलाफ अभियान चला चुके है। नीतीश अपना रवैया नहीं बदलेंगे भले ही अब उनके उपमुख्यमंत्री ही घेरे में है।

राजद के रवैये के कारण बिहार सरकार का प्रशासन प्रभावित हो रहा है। राजद को पता है कि महागठबंधन की सरकार के जाने का अर्थ क्या है। नीतीश के नेतृत्व में अपने पुत्र तेजस्वी को पहले प्रशिक्षित करने और स्थापित करने की जो मंशा लालू ने पाल रखी है उसका ध्वस्त होना स्पष्ट है। यह जानते हुए भी लालू ने सीधे नीतीश कुमार पर निशाना साधा है तो उसका अर्थ भी साफ है- जान बचे तो लाखों पाये। वह जानते हैं कि बेनामी संपत्ति मामले में उनका पूरा परिवार उलझ चुका है। आरोप सही साबित हुआ तो अंजाम बहुत खतरनाक हो सकता है।

लालू पहले ही चुनाव लडऩे से प्रतिबंधित हो चुके हैं। अगर बच्चे भी घिर गए तो उनकी पूरी राजनीति भंवर में फंस जायेगी, जिसे वह समझ भी रहे हैं। शायद यही कारण है कि लालू की ओर से राजनीतिक पासा फेंका जा रहा है। न जाने वह यह उम्मीद क्यों पाले बैठे हैं कि ऐसा होने पर भाजपा उन्हें मदद कर देगी। वरना, वह अपने खास नेता को केंद्रीय मंत्रियों का दरवाजा खटखटाने को भेजते ही क्यों? उन्हें किसी ने गलत सलाह दे दी। और ऐसा न हो जाये कि परिवार को बचाने की कवायद में राजद पूरी तरह डूब जाए। पिछले दिनों नीतीश ने लालू को दो टूक जवाब दिया है। इसका एहसास भी कराया है कि वह दवाब में आने वालों में नही हैं। जरूरत लालू को है उन्हें नहीं।

नीतीश अपने अंदाज में राजनीति करेंगे। मुख्यमंत्री की ओर से रुख साफ कर देने के बाद ही झल्लाए तेजस्वी यादव ने नाम लिये बगैर हमलावर तेवर अपनाते हुए नीतीश को भला बुरा कह डाला। लेकिन वक्त की नजाकत ज्यों ही समझ में आई, वह आज उससे पीछे हट गये।जद यू में यादव के बयान पर कड़ी प्रतिक्ति्रया हुई। लेकिन नीतीश ने इस पर अपनी चुप्पी साध रखी है। जो भी हो फिलहाल यह कोई भी देख सकता है कि रस्सी तन गयी है। यह चटक सकती है और टूट भी सकती है। राजनीति की पुरानी धारा फिर से पनप भी सकती है।

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