जानें आखिर कौन है मसूद अजहर, क्या है इसके मंसूबे
मदरसे में तालीम लेने के समय से ही मसूद अजहर जिहादी प्रवृति का था। लेकिन शरीर में दुर्बल होने की वजह से वह अपनी ट्रेनिंग पूरी नहीं कर सका। लिहाजा उसको प्रचार विभाग का मुखिया बनाया गया। इसकी वजह उसका एक अच्छा वक्ता होना थी।
नई दिल्ली। पठानकोट हमले को अंजाम देने वाले संगठन जैश ए मोहम्मद का प्रमुख भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलने का काम करता रहा है। मौलाना मसूद अजहर (47) : 10 जुलाई, 1968 को बहावलपुर में जन्म। इसके पिता अल्लाबख्श शाबिर स्कूल में हेडमास्टर थे। अजहर 11 भाई-बहन हैं। परिवार डेयरी और पोल्ट्री फार्म बिजनेस से जुड़ा है। अपनी किताब ‘दि वरच्यूज ऑफ जेहाद’ में इसने कहा है कि उसके पिता देवबंदी संप्रदाय के थे और उसका दाखिला कराची के बिनोरी मदरसा में कराया था। वहीं से तालीम लेने के बाद वह शिक्षक बना।
हरकत-उल-अंसार (मुजाहिदीन):
इस आतंकी संगठन का इस मदरसे पर गहरा प्रभाव था। उसके प्रिंसिपल ने संगठन को सुझाया कि अजहर अफगानिस्तान में जेहाद की ट्रेनिंग लेने के लिए उपयुक्त है। लेकिन अजहर शारीरिक रूप से कमजोर था और वह अफगानिस्तान में अपनी 40 दिन की मिलिट्री टेनिंग को पूरा नहीं कर सका। लेकिन उसने सोवियत संघ के खिलाफ मोर्चे में हिस्सा लिया और घायल हुआ। वह बेहतरीन वक्ता है। इसलिए हरकत ने उसे जेहाद के प्रति लोगों को आकर्षित करने के प्रचार विभाग का मुखिया बना दिया और वह जेहाद के लिए विचारधारात्मक स्तर पर लोगों को प्रेरित करने लगा। जेहादियों की भर्ती, फंड एकत्र करने के काम के लिए उसने सऊदी अरब, ब्रिटेन, केन्या, जांबिया, अबू धाबी की यात्रएं कीं।
भारत की यात्रा :
अपने मिशन के तहत 1994 में वह ढाका के रास्ते नई दिल्ली पहुंचा। यहां गुजराती मूल के पुर्तगाली नागरिक वली अदम इस्सा के नाम से होटल अशोक और बाद में होटल जनपथ में रुका। वह कश्मीर के दो हरकत सहयोगियों के साथ देवबंद गया। उसके बाद श्रीनगर के लिए उड़ान भरी और वहां हरकत कमांडर सज्जाद अफगानी और अमजद बिलाल से लाल बाजार इलाके में मिला। उस वक्त दक्षिण कश्मीर हरकत की गतिविधियों का केंद्र था। उसी क्रम में अजहर, अफगानी के साथ अनंतनाग में अपने आदमियों से मिलने गया।
वहीं 10 फरवरी को वह खानबल में पकड़ा गया। उसे छुड़ाने की कई कोशिशें हरकत ने कीं और अंतिम रूप से 31 दिसंबर, 1999 को कांधार विमान कांड में उमर शेख और मुस्ताक अहमद जरगर के साथ रिहा किया गया। उसके बाद सभी संगठनों को मिलाकर उसने एक जेहादी ग्रुप बनाने का प्रयास किया लेकिन उसके विफल रहने पर जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन का गठन किया।
तालिबान से नाता :
अजहर के तालिबान से करीबी का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले के बाद जब पाकिस्तान ने अमेरिकी दबाव में अफगानिस्तान के प्रति नीति बदल दी तब भी अजहर ने तालिबान के साथ अपनी दोस्ती नहीं तोड़ी। उसने पाकिस्तानी सेना की भी मुखालफत की। 2001 में श्रीनगर विधानसभा में जैश के आत्मघाती हमले को परवेज मुशर्रफ की नीतियों की मुखालफत के रूप में देखा जाता है। संसद पर हुए हमले के बाद भारत ने जो 20 सर्वाधिक वांछित लोगों की सूची पाकिस्तान को सौंपी, उसमें अजहर का नाम शीर्ष पर था। उसे पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया और दिसंबर, 2002 में रिहा कर दिया। उसके बाद उसकी सक्रियता पर अंकुश लगा दिया गया।
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