जानें- दुनिया के किन इलाकों में सबसे अधिक आता है भूकंप और क्या है इनके पीछे की अहम वजह
पूरी दुनिया में हर रोज ही भूकंप आते हैं। लेकिन कई बार ये इतनी कम तीव्रता के होते हैं जिसकी वजह से हमें इनका पता नहीं चल पाता है। लेकिन वैज्ञानिक इनपर बारीकी से नजर रखते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि आगे क्या होगा।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। धरती पर बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप भी शामिल है। ये धरती की स्वत: होने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे कई और भी चीजें जुड़ी होती हैं। सुनामी भी धरती के अंदर आने वाले भूकंप की वजह से ही बनती है। आपको जानकर भले ही हैरानी हो लेकिन ये बात सच है कि धरती के लगभग सभी हिस्सों में हर रोज सैकड़ों बार भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। अकसर से इतनी कम तीव्रता के होते हैं कि हमें इनका आभास ही नहीं हो पाता है। लेकिन वैज्ञानिक इन पर बेहद बारीकी से नजर रखते हैं। जैसे 1 दिसंबर को अमेरिका में करीब छह जगहों पर भूकंप के झटके महसूस किए गए जो रिक्टर स्केल पर 2-3.5 की तीव्रता वाले थे। इनकी गहराई एक किमी से लेकर 10 किमी तक थी। इस तरह के भूकंप के झटकों से जानमाल की हानि नहीं होती है। लेकिन इसके बाद भी वैज्ञानिकों को इससे ये समझने में जरूर मदद मिलती है कि धरती के अंदर क्या चल रहा है और कहीं ये छोटे-छोटे भूकंप किसी बड़ी घटना का संकेत तो नहीं हैं।
रूस और अर्जेंटीना में आया भूकंप
आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि आज ही रूस और अर्जेंटीना में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं। इनकी तीव्रता 6.3-6.5 तक रही है। इस तरह के भूकंप से जानमाल की हानि होने का खतरा बरकरार रहता है। हालांकि कई बार ये हानि भी इस बात पर निर्भर करती है कि जहां पर भूकंप आया है उसकी भौगोलिक परिस्थिति कैसी है और वहां पर कितने लोग रहते हैं और भूकंप की गहराई कितनी है। इसकी गहराई जितनी अधिक होगी इससे आने वाली तरंगें धरती के ऊपरी हिस्से को उतना ही कम कंपन देंगी और वो कम प्रभावित होगा।
क्या है वजह
भूकंप की वजह दरअसल, धरती के अंदर मौजूद वो प्लेटें होती हैं जो करीब 80-100 किमी की गहराई में होती हैं। हालांकि ये प्लेंटे हर समय खिसकती रहती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये प्लेटें हर वर्ष करीब 10-40 मिलीमीटर तक खिसकती हैं। इनके खिसकने की रफ्तार भूकंप की वजह बनती है। जब भी इन प्लेटों के खिसकने की रिफ्तार तेज हो जाती है तो ये घटना भूकंप को जन्म देती है, जिसे वैज्ञानिकों की भाषा में प्लेट टेक्टॉनिक कहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में जब भी धरती के लिथोस्फीयर से एनर्जी रिलीज होकर ऊपर की तरफ आती है तो वो भूकंप पैदा करती है।
रिक्टर स्केल पर मापन
धरती के नीचे और ऊपर होने वाली इस हलचल को रिक्टर स्केल पर नापा जाता है। इसके लिए 1 से 9 तक के क्रम निर्धारित हैं। रिक्टर स्केल पर 3-4 तक के भूकंप को कम हानिकारक माना जाता है जबकि 7 या इससे अधिक के भूकंप को बेहद खतरनाक माना जाता है। भारत के भुज में 26 जनवरी 2001 को रिक्टर स्केल पर 7.7 की तीव्रता का भूकंप आया था। इससे बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि हुई थी। इस घटना के बाद भुज का नक्शा ही बदल गया था। इसमें 30 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि लाखों के करीब लोग घायल हुए थे। इसमें कई एतिहासिक धरोहरें भी जमींदोज हो गई थीं।
सबसे अधिक भूकंप वाली जगह
पूरी दुनिया में कई ऐसी जगह हैं जो लगातार भूकंप के साए में जीते हैं। इनमें जापान, न्यूजीलैंड, अलास्का, उत्तर अमेरिका, ताइवान, इंडोनेशिया का नाम प्रमुख है। जापान की ही बात करें तो वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस टेक्टॉनिक प्लेट्स पर ये स्थित है वो बेहद अशांत है। यहां पर हर साल हजारों बार भूकंप आता है। वर्ष 2011 में यहां पर आए 9की तीव्रता वाले भूकंप ने सुनामी को जन्म दिया था। इस भूकंप की वजह से रेल की पटरियां मुड़ गई थीं। समुद्र में उफान जोरों पर था जिसने बड़े से बड़े जहाज को भी लील लिया था। इसकी वजह से जापान के परमाणु संयंत्र में भी धमाके हुए थे जिसके बाद इसको बंद करना पड़ा था। इस भूकंप के बाद भी यहां पर काफी समय तक आफ्टर शॉक आते रहे थे।
सामान्य से अधिक भूकंप
ताइवान की बात करें तो ये पेसिफिक प्लेट, फिलिपींस प्लेट और अमरीकी प्लेट के ऊपर स्थित है। इस पर भी रिंग ऑफ फायर का असर दिखाई देता है। इसके अलावा रूस, अमेरिका, कनाडा, पापुआ न्यू गिनी, पेरू जैसे कुछ दूसरे देश भी इसी की जद में आते हैं। इसी तरह से न्यूजीलैंड समेत कई दूसरी जगह भी हैं। ये सभी जगह अधिकतर रिंग ऑफ फायर की जद में आती हैं। इसी वजह से यहां पर सामान्य से अधिक भूकंप रिकॉर्ड किए जाते हैं।
रिंग ऑफ फायर
रिंग ऑफ फायर दरअसल प्रशांत महासागर के चारों तरफ फैली ज्वालामुखीय और भूकंपीय श्रृंखला है। ये कई टेक्टॉनिक प्लेट्स के किनारे दूर तक फैली हुई है। इस क्षेत्र में सैकड़ों सक्रिय ज्वालामुखी हैं, जो भूकंप की वजह बनते हैं। इसकी एक जीती जागती मिसाल इंडोनेशिया है, जहां पर 129 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। यहां पर हर वर्ष ही किसी न किसी ज्वालामुखी के फटने की घटना सामने आती है। दो दिन पहले ही पूर्वी इंडोनेशिया में स्थित माउंट इली लेवोटोलोक ज्वालामुखी फट गया था। इसकी वजह से 4 हजार मीटर तक ऊंची राख ने सूरज को भी ढक लिया था। सरकार और स्थानीय प्रशासन ने एहतियातन यहां के 28 गांवों से करीब 2,800 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था।
दुनिया का सबसे खतरनाक हिस्सा
इंडोनेशिया की ही यदि बात करें तो यहां का सुमात्रा और जावा ज्वालामुखी और भूकंपीय घटनाओं की वजह से दुनिया का सबसे खतरनाक भू-भाग माना जाता है। यहां पर भूकंप की वजह से कई बार सुनामी का खतरा भी बना रहता है। दुनिया के कुल सक्रिय ज्वालामुखी में से 75 फीसद यहीं पर हैं। यह इलाका करीब 40 हजार वर्ग किमी के इलाके दायरे में फैला हुआ है। अमेरिका की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 90 फीसद भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं। 2004 में इसी क्षेत्र से सुनामी की शुरुआत हुई थी। इसका असर भारत तक देखा गया था और काफी तबाही हुई थी। इस सुनामी की वजह धरती के अंदर आया रिक्टर स्केल पर 9.1 का भूकंप था।
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