कामयाबी की उड़ान भरने में माहिर हैं साइना नेहवाल
साइना हमेशा से कामयाबी की उड़ान भरने में माहिर रही हैं। वह शनिवार को नंबर वन रैंक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला शटलर बनीं और ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर हैं।
नई दिल्ली। साइना हमेशा से कामयाबी की उड़ान भरने में माहिर रही हैं। वह शनिवार को नंबर वन रैंक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला शटलर बनीं और ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर हैं।
वर्ष 2012 में लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली साइना पिछले साल तक कई प्रतियोगिताओं में हारीं, लेकिन वर्ष 2014 के बाद उन्होंने फिर रफ्तार पकड़ी। साइना ने अकेले दम भारतीय बैडमिंटन का इतिहास ही बदल दिया।
17 मार्च, 1990 को हरियाणा के हिसार में पैदा हुई साइना अपने पिता की दूसरी बेटी थीं। जाट परिवार में पैदा होने के बावजूद पिता हरवीर सिंह को अपनी बेटी पर फख्र था। उन्होंने साइना को बेटे की तरह पाला। पिता को यकीन था कि एक दिन उनकी बेटी पूरी दुनिया में उनका नाम रोशन करेगी।
पढ़ें - जीत के साथ साइना ने मनाया नंबर वन होने का जश्न
स्कूल के समय से ही साइना ने अपनी बैडमिंटन प्रतिभा से सबको कायल कर दिया। 14 साल की उम्र में साइना ने मिक्स्ड टीम में कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स का सिल्वर जीता। 18 साल की उम्र में वह विश्व जूनियर चैंपियन का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
इसके बाद साइना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक बार सफलता का सिलसिला शुरू हुआ तो वह लगातार आगे बढ़ती रहा। 2008 में ओलंपिक क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। 2009 में इंडोनेशिया ओपन जीतकर सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बनीं। 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीता। इसी साल उन्होंने करियर की सर्वश्रेष्ठ नंबर-2 रैकिंग हासिल की।
साइना ने ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के सेमीफाइनल तक का सफर भी तय किया। वर्ष 2012 में उन्होंने लंदन में कांस्य जीतकर ओलंपिक पदक के सूखे को खत्म किया। 2014 में ऑस्ट्रेलियन ओपन और चाइना सुपर सीरीज खिताब पर कब्जा किया।
इस साल की शुरुआत में कैरोलिना मारिन को हराकर उन्होंने सैयद मोदी ग्रांप्रि टूर्नामेंट अपने नाम किया और ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है। हालांकि, यहां वह मारिन से हार गईं थीं।