केजरीवाल को अपने बूते दौड़ानी होगी विकास की गाड़ी
आम बजट से दिल्ली को कुछ भी खास हासिल नहीं हुआ। न केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी बढ़ी और न ही केंद्र से सहायता का कोई बड़ा पैकेज ही मिला। ऐसे में अब यह तय हो गया है कि पटरी से उतरी दिल्ली की विकास की गाड़ी को रफ्तार
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। आम बजट से दिल्ली को कुछ भी खास हासिल नहीं हुआ। न केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी बढ़ी और न ही केंद्र से सहायता का कोई बड़ा पैकेज ही मिला। ऐसे में अब यह तय हो गया है कि पटरी से उतरी दिल्ली की विकास की गाड़ी को रफ्तार देने के लिए सूबे की अरविंद केजरीवाल सरकार को अपने ही संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
अधिकारियों की मानें तो दिल्ली सरकार पहले ही करीब 4500 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे का सामना कर रही है। चालू वित्त वर्ष में राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार की कमाई में भारी कमी आई। अब सरकार द्वारा सस्ती बिजली और मुफ्त पानी की आपूर्ति करने के फैसले के बाद आगामी वित्त वर्ष में सरकारी खजाने पर 1700 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ पड़ना तय है।
अब सवाल यह है कि छह हजार करोड़ रुपये से अधिक के घाटे की भरपाई के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र से तो कुछ मिला नहीं, अपने ही संसाधनों से उसे घाटे को पूरा करना है और नई परियोजनाओं के लिए राशि भी जुटानी है। सनद रहे कि पिछले आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली में बिजली-पानी की व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के लिए सात सौ करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इस बार के बजट में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। दूसरी ओर आज भी हालत यही है कि सैकड़ों कॉलोनियों में पानी की पाइप लाइन नहीं डाली जा सकी हैं। इनमें पानी पहुंचाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
परिवहन की बात करें तो दिल्ली में फिलहाल 11 हजार बसों की जरूरत है लेकिन दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में अभी लगभग साढ़े पांच हजार बसें ही उपलब्ध हैं। जाहिर तौर पर सरकार को जल्द से जल्द नई बसों की खरीद की व्यवस्था करनी होगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वैट से होने वाली कमाई बढ़ाकर दिल्ली की जरूरतों को पूरा करने के पैरोकार हैं लेकिन संकेत यही मिल रहे हैं कि वैट की कमाई को बढ़ाना आसान नहीं होगा। ऐसे में अब देखना यह है कि नई सरकार दिल्ली के विकास की गाड़ी को किस प्रकार आगे बढ़ाती है।