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प्रमोशन को भटक रहा केबीसी का करोड़पति

अमिताभ बच्चन के लोकप्रिय टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में एक करोड़ जीतने वाले रेलकर्मी मनोज रैना को प्रमोशन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। रेलमंत्री पवन बंसल ने उन्हें प्रमोशन देने का वादा किया था, परंतु उनके जाते ही रैना का केस अटक गया। अब रैना ने रेलमंत्री सदानंद गौड़ा से गुहार लगाई है

By Edited By: Published: Fri, 05 Sep 2014 10:20 PM (IST)Updated: Fri, 05 Sep 2014 10:21 PM (IST)
प्रमोशन को भटक रहा केबीसी का करोड़पति

नई दिल्ली [संजय सिंह]। अमिताभ बच्चन के लोकप्रिय टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में एक करोड़ जीतने वाले रेलकर्मी मनोज रैना को प्रमोशन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। रेलमंत्री पवन बंसल ने उन्हें प्रमोशन देने का वादा किया था, परंतु उनके जाते ही रैना का केस अटक गया। अब रैना ने रेलमंत्री सदानंद गौड़ा से गुहार लगाई है।

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मनोज रैना उत्तर रेलवे में ग्रुप-सी के तहत आने वाले कान्फिडेंशियल असिस्टेंट के पद पर तैनात हैं। उन्होंने 2012-13 के दौरान प्रसारित केबीसी-6 प्रोग्राम में एक करोड़ रुपये की राशि जीती थी। इसके बाद 20 मार्च 2013 को तत्कालीन रेलमंत्री के साथ उनकी मुलाकात हुई, जिसमें पवन बंसल ने उन्हें प्रमोशन देने और ग्रुप-बी में लाने का वादा किया था। इस संबंध में उन्होंने रेलवे बोर्ड के तत्कालीन सदस्य, कार्मिक, एके वोहरा को फाइल तैयार करने का निर्देश भी दिया था। परंतु, आगे कुछ होता उससे पहले ही घूसकांड सामने आने के बाद बंसल को इस्तीफा देना पड़ा। इसी के साथ रैना का सपना चूर हो गया।

इस बीच रैना को बाकायदा रेलवे स्टाफ कॉलेज, वडोदरा के अलावा झारीपानी (मसूरी) स्थित उत्तर रेलवे के ओक ग्रूव स्कूल में केबीसी से जुड़े अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। यही नहीं, सोनी टीवी ने रैना को विशेष सम्मान देते हुए उन्हें इन दिनों प्रसारित हो रहे केबीसी-आठ के तहत 18-21 अगस्त के कार्यक्रमों में तीसरी लाइफलाइन के तहत तीन महागुनियों में से एक महागुनी के रूप में शामिल किया। परंतु, कायदे-कानून में फंसे रेलवे को अब भी उन्हें प्रमोशन देने की सुध नहीं आई है। रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि रेलवे में इस तरह प्रमोशन नहीं होता।

पचास वर्षीय रैना मूल रूप से कश्मीर वादी में स्थित चौगाम के निवासी हैं। इन दिनों वे जम्मू में अपने माता-पिता, पत्नी और 12 वर्षीय पुत्र के साथ रहते हैं। वर्ष 1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, तब उनके परिवार को घाटी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था।

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