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जुनैद के माथे पर धमाकों के दाग, कैफी की धरती को आजमगढ़ माड्यूल का मिला नाम

साहित्याकारों की धरती आजमगढ़ को एक शख्स ने दागदार कर दिया है। अब इसे आजमगढ़ माड्यूल के तौर पर देखा जाता है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 15 Feb 2018 02:22 PM (IST)Updated: Thu, 15 Feb 2018 04:36 PM (IST)
जुनैद के माथे पर धमाकों के दाग, कैफी की धरती को आजमगढ़ माड्यूल का मिला नाम
जुनैद के माथे पर धमाकों के दाग, कैफी की धरती को आजमगढ़ माड्यूल का मिला नाम

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क ] । कहते हैं कि किसी भी इलाके की मिट्टी और पानी इंसानों को ही पैदा करती है। लेकिन शोहबत और संग की वजह से कोई शख्स समाज को रास्ता दिखाने वाला बनता है तो कोई समाज और देश के लिए खतरा बन जाता है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की गिरफ्त में जुनैद की कहानी कुछ वैसा ही है। जुनैद का अर्थ सेनानी होता है जिसकी ताकत एक छोटी सेना के बराबर होती है, लेकिन वो देश का सेनानी न होकर आतंक का सेनानी बन गया। जुनैद की गिरफ्तारी के बाद आजमगढ़ जिले का बिलरियागंज कस्बा एक बार फिर चर्चा में है। तमसा नदी के पावन तट पर स्थित यह जनपद अनेक ऋषियों की पावन पुण्य भूमि रही है। आजमगढ़ जनपद आदि काल से ही मनीषियों, ऋषियों, चिन्तकों, विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म स्थली रही है। यहां कि पावन भूमि से अल्लामा शिब्ली नोमानी, जामी चिरैयाकोटी, राहुल सांकृत्यायन और मशहूर शायर कैफी आजमी ने साहित्य को एक पहचान दी। लेकिन अबू सलेम, संजरपुर और जुनैद के नाम से सुरक्षा एजेंसियों ने इसे आजमगढ़ माड्यूल का नाम दिया है।

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आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बिलरियागंज कस्बा अरबी विश्वविद्यालय के लिए मशहूर हैं। यहां देश और दुनिया के छात्र अरबी पढ़ने के लिए आते हैं और पूरी दुनिया को अपने ज्ञान से सिंचित करते हैं। लेकिन अब इस कस्बे की पहचान जुनैद और आजमगढ़ माड्यूल से हो रही है। यहां के स्थानीय लोगों को इस बात से कोफ्त होती है कि आखिर एक शख्स की काली करतूत की वजह से देश और दुनिया उन लोगों को ऐसे क्यों देख रही है। बिलरियागंज से सटे जीयनपुर कस्बे में रहने वाले दीपक शर्मा का कहना है कि दिल्ली में बटला हाउस एनकाउंटर में जब जुनैद का नाम आया तो किसी को एकपल यकीन नहीं हुआ। दरअसल यकीन न करने के पीछे ठोस वजह थी। जुनैद के अब्बा और उसके चाचा इलाके के सम्मानित लोग थे। दूर दूर तक किसी आपराधिक कृत्य से उस परिवार का नाता नहीं था। लेकिन अब जबकि वो दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है इस सच्चाई को स्वीकार करने के पीछे कोई वजह भी नहीं है कि उसने देश को तोड़ने की कोशिश की।

इन सबके बीच सवाल ये है कि आखिर जुनैद ने कैसे आतंक की राह पकड़ी।

आतिफ ने दिया आतंक का पहला मंत्र

इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए अलीगढ़ जाना जुनैद की जिंदगी में नया मोड़ ले आया। वहां, जुनैद की मुलाकात आतिफ अमीन से हुई। आतिफ उन्हें मौलाना मसूद अजहर के भाषण सुनवाने के साथ फिलिस्तीन की लड़ाई के विडियो क्लिप दिखाता था। इसके अलावा जेहादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले पत्रिकाओं को भी मुहैया कराता था।

दिल्ली को बनाया ठिकाना

वर्ष 2004 से 2005 तक करीब एक वर्ष तक वह दिल्ली में रहा। दिल्ली के लाजपत नगर इलाके में अपने चाचा के पास रहता था। इसके बाद फिर वह जाकिर नगर चला गया। उसने मुजफ्फरनगर के एसडी कॉलेज से बीटेक करने के लिए दाखिला ले लिया, लेकिन यहां वह दूसरे वर्ष फेल हो गया। इसी कॉलेज से जुनैद के बड़े भाई ने भी पढ़ाई की थी।

दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आया इंडियन मुजाहिदीन का मोस्ट वांटेड आतंकी आरिज खान उर्फ जुनैद 10 वर्ष पूर्व घर आया था। आरिज का बटला हाउस कांड में नाम आने के बाद से ही परिवारीजन ने उससे रिश्ता तोड़ लिया था। सदमे के चलते उसके पिता की मौत भी हो गई थी।अच्छे-खासे घर से ताल्लुक रखने व इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले आरिज की करतूत से परिवारीजन इस कदर खफा हुए कि पैतृक आवास छोड़ एक मोहल्ले में निवास करने लगे। उसके पैतृक गांव में जहां सन्नाटा पसरा है, वहीं परिवार के लोग कुछ बोलने को तैयार नहीं।

चाचा के यहां रहकर की पढ़ाई

बिलरियागंज थाना क्षेत्र के नसीरपुर गांव के निवासी आरिज के चाचा डा. फकरे आलम पेशे से चिकित्सक हैं। नसीरपुर बाजार में ही उनकी डिस्पेंसरी है। फकरे आलम बाज बहादुर में अपना मकान बनवाकर परिवार समेत रहते हैं। आरिज ने अपने चाचा के यहां रहकर प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह मुजफ्फरनगर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए चला गया।

बटला हाउस कांड का आरोपी

13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल बम धमाकों के बाद उसका नाम प्रमुखता के साथ सामने आया था। इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी यासीन भटकल का सहयोगी आरिज तभी से दिल्ली पुलिस की पकड़ से फरार चल रहा था। आरिज का नाम आतंकी के रूप में सामने आया तो इस सदमे को उसके पिता जफरे आलम खान बर्दाश्त नहीं कर सके और उनका इंतकाल हो गया।

 

तीन भाइयों में मझला है आरिज

आरिज तीन भाइयों में मझला है। बड़ा भाई शारिक दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता है। छोटा भाई चाचा डॉ. फकरे आलम के साथ डिस्पेंसरी पर रहता है। आरिज की मां तबस्सुम बड़े बेटे शारिक की पत्नी और छोटे बेटे ताबिस के साथ टेड़िया में किराये का मकान लेकर रहती हैं।

जुनैद के माथे पर धमाकों के दाग

लखनऊ कोर्ट ब्लास्ट

2007 में लखनऊ कोर्ट में जैश के तीन आतंकियों की कुछ अधिवक्ताओं ने पिटाई कर दी थी। इसका बदला लेने के लिए आरिज ने वाराणसी, फैजाबाद व लखनऊ के जिला अदालतों में सीरियल ब्लास्ट किया था।

जयपुर ब्लास्ट

2008 के मई महीने में आरिज बटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतिफ अमीन के साथ विस्फोटक खरीदने कर्नाटक के उडुपी गया था। वहां एक होटल में दोनों से आइएम के आका रियाज और यासीन भटकल ने मुलाकात की। उन्होंने आरिज को नाव के आकार का स्ट्रक्चर व बड़ी संख्या में डेटोनेटर सौंपे। आइएम के मिर्जा सादाब बेग ने आरिज व आतिफ को बम बनाने के तरीके बताए। आरिज साथियों के साथ जयपुर पहुंचा और 10 बम प्लांट किए। विस्फोट में 63 लोगों की मौत हो गई थी और 216 लोग घायल हो गए थे।

सूरत ब्लास्ट

2008 के जुलाई महीने में आरिज समेत आइएम के अन्य आतंकियों ने सूरत में सीरियल बम धमाका कराया था। घटना में 57 लोगों की मौत हो गई थी और 150 लोग घायल हो गए थे।


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