Move to Jagran APP

अपराधी जितना बड़ा होता है, उसकी पहुंच उतनी ज्यादा होती है: जस्टिस खेहर

प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरणों की 15वीं अखिल भारतीय बैठक में उद्घाटन भाषण देते हुए जस्टिस खेहर ने 1993 के मुंबई विस्फोट मामले का भी जिक्र किया।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 18 Mar 2017 07:06 PM (IST)Updated: Sat, 18 Mar 2017 07:49 PM (IST)
अपराधी जितना बड़ा होता है, उसकी पहुंच उतनी ज्यादा होती है: जस्टिस खेहर
अपराधी जितना बड़ा होता है, उसकी पहुंच उतनी ज्यादा होती है: जस्टिस खेहर

नई दिल्ली, प्रेट्र : प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर ने कानूनी स्वयंसेवकों (लीगल वॉलिंटियर्स) से इस साल अपराध पीडि़तों को राहत पहुंचाने के लिए काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, यह देखकर उन्हें आश्चर्य होता है कि बलात्कार या तेजाब हमले की पीडि़तों के साथ क्या-क्या होता है या जो लोग रोजी रोटी कमाने वाले एक मात्र व्यक्ति को खो देते हैं, उनके साथ क्या-क्या बीतती है, लेकिन अपराधी अंतिम समय तक न्याय व्यवस्था से लाभ उठा लेते हैं।

loksabha election banner

प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरणों की 15वीं अखिल भारतीय बैठक में उद्घाटन भाषण देते हुए जस्टिस खेहर ने 1993 के मुंबई विस्फोट मामले का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इस मामले में सिर्फ याकूब मेमन को ही मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई, 2015 को दिन के समय इस सजा को चुनौती देने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। लेकिन, कुछ कार्यकर्ता वकीलों ने उसी रात फैसले की पुन:परीक्षा के लिए एक और याचिका दाखिल कर दी क्योंकि मेमन को 30 जुलाई की सुबह ही फांसी दी जानी थी। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर तुरंत सुनवाई के लिए तैयार भी हो गया था। विशेष पीठ ने रात 2 बजे से दो घंटे से भी ज्यादा समय तक उस याचिका पर सुनवाई की थी। जस्टिस खेहर ने कहा, 'हमारा देश बड़ा विचित्र है।

अपराधी जितना बड़ा होता है, बवाल उतना ही ज्यादा होता है।' उन्होंने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा), प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों से अनुरोध किया कि वे हर ट्रायल कोर्ट में अपने पैरा लीगल वॉलिंटियर्स भेजें जो पीडि़तों को बताएं कि मुआवजा पाने का उनका अधिकार खत्म नहीं हुआ है। जस्टिस खेहर ने बताया कि संसद ने पीडि़तों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कोष बनाने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में धारा 357ए जोड़ी थी। जब सजा के तौर पर कारावास या जुर्माना लगाया जाता है तो सीआरपीसी की धारा 357 के मुताबिक जुर्माने की राशि पीडि़त को प्रदान की जानी चाहिए। अगर फिर भी ऐसा नहीं होता है तो धारा 357ए के तहत कोष (राज्य स्तरीय) उपलब्ध है जिससे पीडि़त को मुआवजा प्रदान किया जा सकता है।

कार्यक्रम में मौजूद कानून और न्याय राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने संकेत दिए कि जल्द ही अधिवक्ता अधिनियम को संशोधित किया जा सकता है ताकि वे 10 प्रतिशत मामले गरीब और उपेक्षित वर्ग के लोगों के लड़ सकें। उन्होंने बताया कि निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने के लिए न्यायिक अधिकारियों के कुछ प्रशासनिक कार्यो को अन्य लोगों हस्तांतरित किया जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.