Move to Jagran APP

मुंबई: नोटबंदी के बाद नहीं मिल पा रही मजदूरों को दो जून की रोटी

नोटबंदी की सबसे ज्‍यादा मार दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रही है। इसके बाद न तो उन्‍हें काम ही मिल रहा है और न ही वह अपना पेट भर पा रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 11 Dec 2016 10:52 AM (IST)Updated: Sun, 11 Dec 2016 02:54 PM (IST)
मुंबई: नोटबंदी के बाद नहीं मिल पा रही मजदूरों को दो जून की रोटी

मुंबई (जेएनएन)। देेश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भांडुप के मधुबन गार्डन के पास मजदूर नाके पर मजदूरों की भीड़ तो आज भी लगती है लेकिन अब बामुश्किल ही किसी को काम मिल पाता है। आलम यह है कि यह मजदूर पूरे दिन यहां पर काम आने के इंतजार में बैठे रहते हैं और आखिर में शाम को अपने घर खाली हाथ चले जाते हैं। नोटबंदी के बाद से ही यहां का नजारा बिल्कुल बदला हुआ है। कभी यह मजदूर एक माह में दस से पंद्रह हजार रुपये तक कमा लेते थे, लेकिन अब इनकी कमाई घट कर 1000 से 2000 रुपये तक हो गई है। हर रोह लगभग पांच सौ रुपये कमाने वाला एक मजदूर नोटबंदी के बाद महज 20 से 50 रुपये ही कमा पा रहा है। वह भी रोज नहीं। इसकी वजह से इन मजदूरों में ज्यादातर को खाली पेट ही सोना पड़ रहा है। इनकी कमाई में करीब 80 से 90 फीसद तक की गिरावट आई है।

loksabha election banner

यहां पर आने वाले मजदूरोंं में कार पेंटर, हेल्पर, सामान ढुलाई वाले मजदूर, मिस्त्री आदि होते हैं। नोटबंदी से पहले यह लोग सुबह सात बजे ही यहां पर आ जाते थे और करीब दस बजे तक यह जगह खाली हो जाती थी। सभी को काम मिल जाता था और सभी की जेब में कुछ न कुछ रुपये आ जाते थे। लेकिन अब यह नजारा पूरी तरह से बदला हुआ है। अब जिसे काम मिल जाता है तो इसे उसकी खुशनसीबी ही माना जाता है। यहां पर आने वाले मजदूरों में यूपी, बिहार समेत आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों से आने वाले मजदूर होते हैं।

हवाला कारोबारी के बाथरूम में मिले 5.7 करोड़ के नए नोट और 32 किलो सोना

एक अंग्रेजी अखबार की वेबसाइट के मुताबिक इस नाके के मजदूर अब खुद को नाके के भिखारी कहने लगे हैं। खबर में मजदूर संजय के हवाले से लिखा है कि उसने नोटबंदी के बाद से अब तक तीन सप्ताह में महज पांच ही दिन काम किया है। वहीं एक अन्य मजदूर लाहू सुरादकर के घर में उसकी पत्नी तीन माह की गर्भवती है, जिसे दो दिनों से कुछ खाने को नहीं मिल सका है। वह बताता है कि नोटबंदी के बाद सिर्फ वह बीस रुपये ही बामुश्किल हर रोज कमा पा रहा है। ऐसे में वह क्या खुद खाएगा और क्या अपनी बीवी को खिलाएगा। कुछ मजदूरों ने इससे बचने के लिए गुरुद्वारों का भी रुख कर लिया है। आैरंगाबाद से आए सुनील इश्वर के मुताबिक वह अपने गांव में खेतोंं में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करता था। बाद में वह यहां आ गया। पहले तो सब ठीक था लेकिन नोटबंदी के बाद से तीन सप्ताह में उसने महज सौ रुपयेे ही कमाए हैं।

इन मजदूरों की एक समस्या यह भी है कि जिन्हें काम मिल भी रहा है उन्हें काम के बदले में 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट दिहाड़ी के तौर पर दिए जा रहे हैं। ऐसे में इनके सामने इन नोटों को बदलने की समस्या आ रही है। इनका कहना है कि वह काम करें या नोट बदलने के लिए पूरे दिन बैंकों की लाइन में लगें। यदि बाहर से इन नोटों को बदलवाया जाता है तो बदले में 500 रुपये के महज 350 रुपये ही मिलते हैं।

नोटबंदी से जुड़ी सभी खबरों को पढ़ने के लिए क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.