अंतिम समय में प्लान फेल होने पर जीतन राम मांझी ने दिया इस्तीफा
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की सरकार बचाने का हिट फॉर्मूला आखिरी समय में पिट गया। सदस्यता खोने के डर से कई समर्थक विधायकों ने अपने कदम पीछे खींच लिए। वक्त की नब्ज को पहचान कर मांझी ने इस्तीफे की राह को चुना।
पटना (राज्य ब्यूरो)। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की सरकार बचाने का हिट फॉर्मूला आखिरी समय में पिट गया। सदस्यता खोने के डर से कई समर्थक विधायकों ने अपने कदम पीछे खींच लिए। वक्त की नब्ज को पहचान कर मांझी ने इस्तीफे की राह को चुना।
सात फरवरी से सूबे की राजनीति गरमाई हुई थी और देश की नजर बिहार पर टिकी हुई थी। सबके सामने एक ही सवाल कौंध रहा था कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री? मामला राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गया। नीतीश और मांझी, दोनों अपने पक्ष में बहुमत का दावा करते रहे। दोनों पक्ष सही होने का दंभ भरने में पीछे नहीं रहे और अपने सचेतक और संसदीय कार्य मंत्री को सही बताते रहे। इससे हास्यास्पद स्थिति बन गई। राजनीतिक जिच के बीच राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को 20 फरवरी को सदन में बहुमत हासिल करने को कहा। बहुमत हासिल करने की तिथि मुकर्रर होने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई और दोनों पक्ष विधायकों को अपने पक्ष में करने की मुहिम में जुट गए। जहां एक ओर बहुमत को लेकर आश्वस्त नीतीश कुमार खुद ही कमान संभाले हुए थे, वहीं दूसरी ओर मांझी की तरफ से विधायकों की जुगाड़ करने में नरेंद्र सिंह, वृशिण पटेल, शकुनी चौधरी और राजीव रंजन लगे थे। अथक प्रयास के बावजूद मांझी खेमा जदयू में सेंध लगाने में सफल नहीं रहा। मांझी खेमा एक दर्जन विधायक को भी अपने पाले में नहीं कर सका। इस बीच राजद के चार और एक निर्दलीय विधायक से समर्थन मिलने का दावा किया जाता रहा। काराकट के विधायक राजेश्वर राज, राजद विधायक भाई दिनेश और अजय बुलगानिन के अलावा कोई भी विधायक मांझी के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ।
मांझी ने महादलित विधायकों को रिझाने का प्रयास किया और मंच से मंत्री पद देने का खुला ऑफर दे दिया। गुरुवार की शाम को भाजपा ने मांझी को समर्थन करने की घोषणा करके नीतीश कैंप में खलबली मचा दी। भाजपा के आगे आने से मांझी का पलड़ा अचानक एकबार फिर भारी हो गया। राजीव रंजन गुरुवार की देर रात तक जदयू के 24, राजद के 6 सहित एक निर्दलीय विधायक से समर्थन मिलने का जोर-शोर से दावा करते रहे। इस फॉर्मूले से परिस्थिति मांझी के पक्ष में दिखने लगी। विधानसभा में गुप्त मतदान की व्यवस्था जायज नहीं होने के कारण स्पष्ट हो गया था कि मतदान करने वाले विधायकों की राय सबके सामने होगी। यहीं पर मांझी की रणनीति फेल हो गई। उल्लेखनीय है कि राजनीतिक दलों में दल-बदल रोकने के लिए 52वें संशोधन के माध्यम से संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इसके तहत विधानसभा के सदस्य अपने दल का त्याग, दलीय निर्देश की अवहेलना करके सदन में भाग नहीं ले सकते हैं।
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