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350 फाइलें दबा कर बैठी थीं जयंती नटराजन

जयंती नटराजन वर्ष 2011 से 2013 के बीच पर्यावरण मंत्री रहीं और इस दौरान 350 परियोजनाओं को मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिली।

By vivek pandeyEdited By: Published: Sat, 31 Jan 2015 01:09 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jan 2015 02:01 PM (IST)
350 फाइलें दबा कर बैठी थीं जयंती नटराजन

नई दिल्ली। जयंती नटराजन वर्ष 2011 से 2013 के बीच पर्यावरण मंत्री रहीं और इस दौरान कई परियोजनाओं को मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिली। इसके चलते निजी परियोजनाओं के साथ ही और सार्वजनिक परियोजनाएं और डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर को भी हरी झंडी नहीं मिली।

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संभवत: किसी ने पर्यावरण के नियम की कसौटी पर खरे उतरने का दावा नहीं किया। मोटेतौर पर करीब 350 फाइलें नटराजन के ऑफिस में दिसंबर 2013 में इस्तीफा दिए जाने तक धूल खाती रहीं। इन फाइलों को मंजूरी मिल सकती थी क्योंकि ज्यादातर परियोजनाओं की मंजूरी एक्सपर्ट अप्रेजल कमिटी ने दी थी।

कांग्रेस ने माना लगता था 'जयंती टैक्स'

जब कांग्रेस को परियोजनाओं की मंजूरी न मिलने के कारण होने वाले दुष्प्रभावों का अहसास हुआ, तक तक काफी देर हो चुकी थी। नटराजन के बाद जब मंत्रालय की कमान वीरप्पा मोइली ने संभाली। उन्होंने 2014 के आम चुनाव की आचार संहिता लागू होने के पहले 1.5 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दे दी।

आठ साल बाद मिली मंजूरी

सबसे अहम परियोजनाओं को मोइली के कार्यकाल में मंजूरी मिली। इनमें ओडिशा में साउथ कोरिया की स्टील कंपनी पोस्को के 52,000 करोड़ रुपए के स्टील प्लांट भी शामिल है। ऐसा 8 साल के लंबे इंतजार के बाद हुआ। इन परियोजनाओं की मंजूरी में देश में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश निहित था।

पोस्को की मंजूरी के लिए सरकार ने सामाजिक प्रतिबद्धता पर खर्च की शर्त रखी थी। इसके साथ ही प्लांट को पोर्ट प्रॉजेक्ट से अलग करने की बात कही गई थी। इससे प्लांट की लागत बढ़ी, लेकिन कंपनी सहजता से राजी हो गई थी।

पहले भी मिल सकती थी मंजूरी

इस प्रक्रिया में शामिल एक अधिकारी ने कहा कि यदि सरकार इसे जनवरी 2014 में कुछ शर्तों के आधार पर मंजूरी दे सकती है तो इस काम को पहले भी आसानी से किया जा सकता था। इस अधिकारी ने कहा, 'इससे साबित होता है कि ये प्रॉजेक्टस फैसलों में देरी के कारण अटके थे।'

दिसंबर 2013 में मोइली ने पर्यावरण मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाला तो पहले 30 दिनों के भीतर कई परियोजनाओं को मंजूरी मिल गई। नटराजन के कार्यकाल में 10 लाख करोड़ रुपए की कई बड़ी परियोजनाएं मंजूरी नहीं मिलने और बहानों के कारण अटकी हुईं थीं।

विरासत में मिलीं थी फाइलें

नटराजन को कई लंबित फाइलें पूर्व मंत्री जयराम रमेश से भी विरासत में भी मिली थीं। नटराजन और रमेश के कार्यकाल में विचाराधीन फाइलों से साफ होता है कि किस कदर पर्यावरण की मंजूरी को यूपीए शासन में टालमटोल का टूल बनाया गया। इनके कार्यकाल की तुलना 90 के दशक के पहले के लाइसेंस परमिट राज से भी होने लगी थी।

रक्षा परियोजनाएं भी लंबित रहीं

सबसे चौंकाने वाली बात है कि पर्यावरण मंजूरी के नाम पर लंबित परियोजनाओं में देश की सामरिक स्थिति को मजबूत करने वाली बेहद महत्वपूर्ण रक्षा परियोजनाएं भी शामिल थीं। एनडीए सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने उन सभी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जिन्हें एक्सपर्ट कमेटी की सहमति हासिल थी। केंद्र की नई सरकार ने पर्यावरण से जुड़ीं कई प्रक्रियाओं को सरल और कारगर बनाया। एनडीए सरकार ने पर्यावरण की मंजूरी के लिए ऑनलाइन सिस्टम भी लॉन्च किया। इससे पारदर्शिता और रफ्तार दोनों बढ़ी हैं।


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