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युद्ध पर बदलेगा जापान का रुख!

उत्तर कोरिया के ताबड़तोड़ मिसाइल परीक्षण से एशियाई देशों में युद्ध की आशंका से डर का माहौल बन गया है। इन हालात को देखते हुए जापान अपने संविधान में तब्दीली करने पर विचार कर रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 17 May 2017 10:08 AM (IST)Updated: Wed, 17 May 2017 10:08 AM (IST)
युद्ध पर बदलेगा जापान का रुख!
युद्ध पर बदलेगा जापान का रुख!

डॉ. गौरीशंकर राजहंस

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उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन जिस तरह ताबड़तोड़ मिसाइलों का परीक्षण कर रहे हैं, जिससे सभी एशियाई देशों में भारी भय व्याप्त है। किम ने कहा है कि उनके पास परमाणु क्षमता वाली लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें हैं जिसके जरिये अमेरिका तक के किसी भी शहर को मिनटों में ध्वस्त किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह के पास सचमुच में परमाणु शक्ति से लैस मजबूत मिसाइल हैं जिससे वह कहीं भी किसी भी देश पर किसी भी समय हमला कर सकते हैं। अभी तक चीन उत्तर कोरिया का सबसे निकटतम मित्र था। अमेरिका ने चीन को सलाह दी है कि वह उत्तर कोरिया के तानाशाह को समझाए कि वह इस तरह के पागलपन से दूर हो जाए लेकिन उत्तर कोरिया के तानाशाह अब चीन की भी बात मानने को तैयार नहीं हैं। उसने यह भी चेतावनी दी है कि यदि चीन ने ज्यादा टांग अड़ाई तो वह चीन पर भी मिसाइलों से हमला कर सकता है। यह जानकर सभी एशियाई देश डरे सहमे हुए हैं।

जब दूसरी बार जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे आम चुनाव लड़ रहे थे तब उन्होंने जनता से वायदा किया था कि एशिया की बदलती हुई राजनीति में जापान के ‘युद्ध विरोधी संविधान’ को बदलना ही होगा और जापान को एक बार फिर से ‘सैनिक शक्ति’ के रूप में तैयार करना होगा। द्वितीय विश्व युद्ध में जब अमेरिकियों ने जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी शहरों पर एटम बम गिराए थे उस समय जापान संसार का एक अत्यंत शक्तिशाली देश था। मगर परमाणु बम की तबाही के बाद उसने आत्मसमर्पण कर दिया था। उसके बाद अमेरिकियों ने जापान की लाचारी के कारण उसे सबक सिखाना चाहा और एक ‘युद्ध विरोधी संविधान’ लिख डाला जिसमें यह प्रावधान था कि भविष्य में जापान कभी भी किसी देश के साथ अपने झगड़े को सुलझाने के लिये सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा। जापान न तो कोई सेना रखेगा और न सैनिक साजो-सामान बनाएगा। सच कहा जाए कि इस तरह का प्रावधान संविधान में करके अमेरिका ने जापान को सदा के लिए पंगु बना दिया था।

अपने चुनाव अभियान के दौरान ही शिंजो अबे ने कहा था कि अब संसार की राजनीतिक परिस्थिति भी बदल गई हैं और द्वितीय विश्व युद्धकी समाप्ति को 70 वर्ष हो गए हैं। जिस तरह जापान के पड़ोसी देश चीन और उत्तर कोरिया शत्रुता का रवैया अपनाए हुए हैं वैसी हालत में जापान को फिर से अपना संविधान लिखना होगा जिसमें यह प्रावधान होगा कि बदली हुई परिस्थितियों में जापान आत्मरक्षा के लिए एक सैनिक शक्ति बन सकता है।

इस बीच, उत्तर कोरिया ने दावा किया है कि रविवार को उसने जिस मिसाइल का परीक्षण किया, वह एक नए किस्म का रॉकेट है जो किसी बड़े परमाणु हथियार साथ ले जा सकता है। इस पर गंभीर रुख अपनाते हुए अमेरिका और जापान ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक आपात बैठक की। खड़े कोण पर छोड़ी गई यह मिसाइल 2000 किलोमीटर की ऊंचाई तक गई। करीब 700 किलोमीटर के सफर के बाद यह जापान के पश्चिमी समुद्र में गिरी। उत्तर कोरिया ने सोमवार को कहा कि यह ‘नए बैलिस्टिक रॉकेट’ की क्षमताओं का परीक्षण था। दक्षिण कोरिया की सेना ने कहा है कि वह अपने पड़ोसी देश के दावों को जांच नहीं सका है। उत्तर कोरिया की मिसाइलें आसमान छोड़ती और उसमें दोबारा प्रवेश लेती हुई दिखीं, जो ‘इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें’ (आईसीबीएम) बनाने के लिहाज से बेहद अहम है।

बहरहाल, अब जब किम जोंग उन ने पड़ोसी देशों को धमकाना शुरू कर दिया और उसके मिसाइल जापान के समीप ही समुद्र में गिरने लगे तो जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने कहा कि अब बदली हुई परिस्थितियों में वह अपने संविधान को पूरी तरह से बदलेंगे। उनका कहना था कि अमेरिकियों ने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जापान के संविधान के अनुच्छेद-9 में यह जानबूझकर प्रावधान कर दिया था कि जापान हमेशा से युद्ध विरोधी रहेगा और वह किसी भी हालत में किसी भी देश के साथ अपना मतभेद खत्म करने के लिए सैनिक बल का प्रयोग नहीं करेगा। शिंजो अबे ने कहा है कि वह प्रयास कर रहे हैं कि जल्द से जल्द जापान के संविधान के इस प्रावधान को बदला जाए। जापान अपनी मजबूत सैनिक क्षमता बनाए जिससे कोई पड़ोसी देश उसे आंख नहीं दिखा सके।

जापान की मजबूरी को देखते हुए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने भी जापान को अपने संविधान में परिवर्तन करने की मंजूरी दे दी थी और यह भी कहा था कि जापान सेना के तीनों अंग थल सेना, नौसेना और वायु सेना को मजबूती से स्थापित करे अन्यथा चीन और कोरिया उसे तबाह कर देंगे। 1हाल में शिंजो अबे ने यह ऐलान किया है कि वह जल्द से जल्द जापान के संविधान में आमूल परिवर्तन कर उसे एक सशक्त सैनिक शक्ति बनाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा है कि पहले तो उनकी पार्टी ‘एलडीपी’ को संसद में जिसे वहां ‘डाइट’ कहते हैं, उसके दोनों सदनों में बहुमत नहीं था परन्तु अब उसे दोनों सदनों में बहुमत प्राप्त हो गया है और मित्र दलों की मदद से उसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त है जिससे वह संविधान में आसानी से परिवर्तन कर सकते हैं। शिंजो अबे ने यह भी कहा है कि जब संसद की मंजूरी हो जाएगी तब वे जनता में मत संग्रह कराएंगे।

जापान की जनता उत्तर कोरिया के तानाशाह से इतनी डरी हुई है कि इस जनमत संग्रह में उन्हें निश्चित रूप से विजय प्राप्त हो जाएगी और वे संविधान में आमूल परिवर्तन करने में सफल हो जाएंगे। 1शिंजो अबे के दादा ‘नोबुशके किसी’ 50 के दशक में जापान के प्रधानमंत्री थे। उनका कहना था कि अमेरिकियों ने जापान की लाचारी के कारण उस पर युद्व विरोधी संविधान थोप दिया था। अत: इस संविधान को शीघ्रातिशीघ्र बदला जाना चाहिए। क्योंकि अब परिस्थितियां बहुत बदल गई हैं। मगर वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके। तब से आज तक जापान के अधिकांश राजनेता यही कहते आ रहे हैं कि अमेरिकियों ने जापान पर जो युद्व विरोधी संविधान थोपा है वह आज की परिस्थिति में बहुत अपमान जनक है।

अत: सरकार को शीघ्रातिशीघ्र संविधान के इस प्रावधान में आमूल परिवर्तन कर देना चाहिए। शिंजो अबे कहते हैं कि 2020 में जापान में ओलंपिक खेल होने वाले हैं। उसके पहले ही वे संविधान में इस तरह का परिवर्तन करा देंगे जिससे संसार का हर देश यह समझ लेगा कि जापान अब पहले की तरह कमजोर नहीं है। आज सारे संसार की आंखंे जापान की तरफ लगी हुई हैं। लाख टके का प्रश्न यह है कि क्या शिंजो एबे जापान के संविधान में इच्छानुसार परिवर्तन कराने में सफल हो सकेंगे?

(लेखक पूर्व सांसद हैं)


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