जानें, शरद यादव की बार बार क्यों अनदेखी करते हैं नीतीश कुमार
शरद यादव और बिहार के सीएम नीतीश कुमार की जोड़ी की मिसाल दी जाती है। लेकिन शरद यादव के कई फैसलों को नीतीश कुमार मे पलट दिया था।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । राजनीति की राह और नेताओं की भाषा कभी सीधी नहीं होती है। सपाट से नजर आने वाले बयानों के सियासी मायने हो सकते हैं। ये भी संभव है कि जिन बयानों में हम कुछ अर्थ ढूंढने की कोशिश करते हों, उनका कोई मतलब ही नहीं हो। यहां पर जिन दो कद्वावर नेताओं शरद यादव और नीतीश कुमार का जिक्र कर रहे हैं, उनकी जोड़ी बेमिसाल रही है। उनके संबंधों को आम जन से लेकर खास जन तक सराहते रहे हैं। लेकिन ऐसे कई मौके आए जब लगा कि संबंध इतने सहज भी नहीं रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच आपसी रिश्तों का मर्म क्या है।
राष्ट्रपति उम्मीदवार पर अलग अलग राय
ताजा उदाहरण राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित है। जिस दिन जेडीयू ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन करने का फैसला किया, ठीक उससे एक दिन पहले जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव विपक्ष की तरफ से मजबूत उम्मीदवार उतारने की वकालत कर रहे थे। हालांकि पार्टी के फैसले के बाद उन्होंने स्थानीय परिस्थितियों का हवाला दिया।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर नीतीश कुमार ने खुद विपक्षी उम्मीदवार उतारे जाने की पहल की थी। इस संबंध में उन्होंने फरवरी और अप्रैल में विपक्षी नेताओं से कई दौर की बातचीत के बाद 20 अप्रैल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। उस मुलाकात के बाद विपक्षी उम्मीदवार उतारे जाने की योजना को बल मिला। इस संबंध में दिल्ली में शरद यादव अगुवाई कर रहे थे। 14 जून 2017 को दिल्ली में विपक्षी नेताओं की बैठक हुई। लेकिन 19 जून को बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने पर नीतीश कुमार ने उन्हें बधाई दी और मिलने के लिए राजभवन पहुंचे। 21 जून को पटना में जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं में आपस में बातचीत हुई, जिसमें शरद यादव भी शामिल थे। नेताओं ने गहन विमर्श के साथ-साथ रामनाथ कोविंद को समर्थन देने पर औपचारिक मुहर लगा दी।
महिला आरक्षण बिल पर एक-दूसरे से जुदा विचार
लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब सीएम नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच मतभेद दिखाई दिया हो। शरद यादव के कई फैसलों पर नीतीश कुमार ने वीटो लगा दिया था। जब शरद यादव जेडीयू के अध्यक्ष थे उस वक्त भी उनके कई फैसलों को नीतीश कुमार ने बदल दिया था। मार्च 2010 में जब नीतीश कुमार जेडीयू-भाजपा गठबंधन सरकार की अगुवाई कर रहे थे, उस वक्त राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया जा रहा था।
नीतीश कुमार ने बिल का समर्थन किया था, लेकिन मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद के साथ-साथ शरद यादव विरोध कर रहे थे। शरद यादव के विरोध पर नीतीश कुमार ने कहा कि उनका व्यक्तिगत विचार है कि बिल का विरोध नहीं होना चाहिए। पिछले 14 साल से लंबित इस विधेयक को पारित कराने की जरूरत है। जब महिला बिल पर शरद यादव के विरोध के बारे में पूछा गया तो नीतीश कुमार ने कहा कि वो उनसे पुनर्विचार की अपील करेंगे। राज्यसभा से महिला बिल पारित हो गया। लेकिन शरद यादव उस समय लोकसभा के सदस्य थे और बिल उस सदन में नहीं पेश हो पाया।
जानकार की राय
Jagran.com से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने बताया कि संसदीय लोकतंत्र में मतों का सबसे ज्यादा महत्व होता है। किसी भी पार्टी में नेताओं की भूमिका को उस संदर्भ में देखने की जरूरत है। शरद यादव कभी भी ऐसे नेता नहीं रहे, जिनके दम पर चुनाव जीता जा सके। लालू यादव की काट के लिए नीतीश कुमार ने अपनी सुविधा के हिसाब से शरद यादव के चेहरे का इस्तेमाल किया। आज की मौजूदा राजनीति में नीतीश के लिए शरद यादव की प्रासंगिकता नहीं है। एक तरह से वो जेडीयू के शोपीस बनकर रह गए हैं।
जेडीयू-भाजपा गठबंधन पर दोनों के अलग-अलग सुर
इसके बाद जेडीयू के कद्दावर नेताओं में उस वक्त एक बड़ी असहमति दिखी जब जेडीयू ने भाजपा के साथ अपने 17 वर्ष पुराने गठबंधन को तोड़ दिया। बताया जाता है कि 2014 में आम चुनावों के परिणाम से पहले शरद यादव जेडीयू-भाजपा गठबंधन तोड़े जाने के पक्ष में नहीं थे। दरअसल 2014 के चुनाव से पहले नीतीश कुमार को इस बात की नाराजगी थी कि गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को पीएम पद के लिए क्यों प्रस्तावित किया जा रहा है।
जिसने विरोध किया उस आवाज को किया कुंद
शरद यादव द्वारा 10 साल तक पार्टी की कमान संभालने के बाद अप्रैल 2016 में नीतीश कुमार जेडीयू के अध्यक्ष बने। नीतीश कुमार के अध्यक्ष चुने जाने के कुछ महीनों बाद चार राज्यों के अध्यक्षों को पार्टी से निकाल दिया गया। चारों राज्यों के अध्यक्षों ने नीतीश कुमार का विरोध किया था।
नोटबंदी के फैसले पर नहीं थी आम राय
पिछले साल नोटबंदी के मामले में शरद यादव मोदी सरकार की जमकर मुखालफत कर रहे थे। लेकिन जेडीयू ने इस मुद्दे पर एनडीए सरकार का समर्थन करने का फैसला किया था। पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले की नीतीश कुमार ने जमकर तारीफ की थी। विपक्ष की तरफ से नोटबंदी के खिलाफ दिल्ली में जनआक्रोश रैली का आयोजन किया गया था। लेकिन जेडीयू के फैसले के बाद शरद यादव ने पुणे की राह पकड़ ली और विपक्षी एकता में हिस्सेदार नहीं बने। नोटबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ मतभेद पर शरद यादव ने सफाई दी कि मतभेद का सवाल ही नहीं है।
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