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कभी गिरमिटया मजदूर बनाकर लेकर गए थे अंग्रेज, इन देशों में हैं भारतीय मूल के पीएम

विदेशों में बस चुके भारतीय मूल के लोगों ने अपनी भाषा, अपना खानपान तथा अपनी सभ्यता को नहीं छोड़ा है और आज भी भारत से उनका लगाव पहले की तरह ही मजबूती बना हुआ है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 11:08 AM (IST)Updated: Sat, 13 Jan 2018 11:08 AM (IST)
कभी गिरमिटया मजदूर बनाकर लेकर गए थे अंग्रेज, इन देशों में हैं भारतीय मूल के पीएम
कभी गिरमिटया मजदूर बनाकर लेकर गए थे अंग्रेज, इन देशों में हैं भारतीय मूल के पीएम

नई दिल्ली, [डॉ. गौरीशंकर राजहंस]। गत 9 जनवरी को दिल्ली में जो ‘प्रवासी सांसद सम्मेलन’ हुआ उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण अत्यंत ही प्रभावशाली रहा। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने 9 जनवरी को प्रवासी दिवस मनाने का फैसला किया था। इसके तहत भारत में और विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग इकट्ठे होकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं और जिन देशों में वे बस गए हैं उन देशों की संस्कृति और सभ्यता के बारे में अपने अन्य प्रवासी भारतीयों को बताते हैं। 9 जनवरी का दिन इसलिए चुना गया था कि इसी दिन 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। आज की पीढ़ी को प्रवासी भारतीयों के बारे में ठीक ठीक पता नहीं है और यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि बच्चों की पाठ्य पुस्तकों में इन प्रवासी भारतीयों की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।

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'गिरमिटया मजदूर' बनाकर ले जाया गया

अधिकतर प्रवासी भारतीय प्रथम विश्वयुद्व के बहुत पहले ‘गिरमिटया मजदूर’ बनकर संसार के विभिन्न देशों में अंग्रेजों द्वारा पानी के जहाजों में लादकर ले जाए गए थे। अंग्रेज बड़े धूर्त थे। उन दिनों सारे संसार में चीनी की पैदावार बहुत कम होती थी। इसलिए उन्होंने ऐसे देशों को चिह्न्ति किया जहां मजदूर मेहनत कर गन्ना उपजा सकते थे। इस काम के लिए उन्होंने अपने अनुभव से पाया कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूर यह काम बखूबी कर सकते हैं। वे दलालों के द्वारा बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों को यह लोभ देकर विभिन्न देशों में गन्ने की खेती करने के लिए ले गए। इन मजदूरों को बताया गया था कि कलकत्ता बंदरगाह के बिल्कुल नजदीक एक द्वीप है, जहां सोने की खान है। यदि ये मजदूर वहां काम करेंगे तो कुछ वर्षो में वे ढेर सारा धन कमा कर भारत अपने गांव लौटेंगे।

एग्रीमेंट के तहत करते थे काम

इनसे एक ‘एग्रीमेंट’ लिखवाया जाता था कि वे किसी भी हालत में 5 से 10 वर्ष पहले भारत नहीं लौटेंगे। ये गरीब और अनपढ़ मजदूर ‘एग्रीमेंट’ का उच्चारण नहीं कर सकते थे। इसलिए वे इसे बोलचाल की भाषा में ‘गिरमिट’ कहने लगे और धीरे धीरे यह शब्द ‘गिरमिटिया’ के रूप में बोला जाने लगा। उसके बाद संसार के जिन देशों में इन मजदूरों को अंग्रेज ले गए उन्हें ‘गिरमिटिया’ मजदूर कहा जाने लगा। ये मजदूर मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और अनेक दूसरे देशों में गए। अधिकतर लोग तो वहीं बस गए और जो लोग भारत आए वे भी कुछ वर्ष तक अपने गांव में रहकर इन देशों में वापस लौट गए। इन देशों की संस्कृति में उन्होंने अपना समावेश कर लिया। आज 100 वर्षो से अधिक का समय हो गया है और ‘गिरमिटया’ मजदूरों की संतानें इन देशों में बहुत ऊंचे पदों पर पहुंच गई हैं। कई लोग प्रधानमंत्री हुए। सांसद तो अनेकों हुए। प्रधानमंत्री मोदी का विचार था कि इन देशों के सांसदों को भारत बुलाया जाए और उन्हें सम्मानित किया जाए।

भारतीय मूल हैं यहां के प्रधानमंत्री

मॉरीशस, आयरलैंड और पुर्तगाल के मौजूदा प्रधानमंत्री भारतीय मूल के हैं। फिजी, ब्रिटिश, गायना और जमैका की सरकारों के प्रधान भी मूल रूप से भारतवंशी हैं। आज की तारीख में कनाडा के रक्षा मंत्री हरजित सज्जन और तीन अन्य कैबिनेट मंत्री भी भारतीय मूल के हैं। 2017 के ब्रिटेन के आम चुनाव में पहली बार भारतीय मूल के 12 सांसद चुन कर आए हैं। जो भारतीय मूल के लोग इन देशों में जाकर बस गए उनकी संतानें आज बहुत ही सुखी और संपन्न हैं। उन्होंने अपनी भाषा, अपना खानपान और अपनी सभ्यता को नहीं छोड़ा और आज भी भारत से उनका लगाव पहले की तरह ही अटूट है।

पीएम मोदी ने प्रवासी भारतीयों की सराहना

प्रवासी सांसद सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे जब भी विदेश जाते हैं तो वहां बसे भारतीय मूल के लोगों से अवश्य मिलते हैं। इन लोगों में अब भी भारत के प्रति अटूट लगाव है। उनके उत्साह को देखकर प्रधानमंत्री ने कहा कि वे चाहते हैं कि ये प्रवासी जो अब संपन्न हो गए हैं, भारत के साथ अपना अटूट रिश्ता बनाए रखें। 30 देशों के सांसद और विधानमंडलों के सदस्यों को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था जिसमें 24 देशों के भारतीय मूल के सांसद और विधायक शामिल हुए।

प्रवासी भारतीयों ने बढ़ाया देश का मान सम्मान

जिस तरह से चीन एशियाई देशों में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए बिना चीन का नाम लिए हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हम किसी की जमीन और संसाधन पर नजर नहीं रखते हैं। न ही हमारे विकास का मॉडल यह है कि एक हाथ लो और दूसरे हाथ दो। बल्कि हमारी मदद मानवीय मूल्यों पर आधारित होती है। हम किसी भी देश के साथ अपनी नीति का मूल्यांकन लाभ-हानि के आधार पर नहीं करते हैं बल्कि इसका मूल्यांकन मानवीय मूल्यों के आईने में करते हैं। हम न तो किसी देश के संसाधनों के दोहन करने पर ध्यान देते हैं और न ही हम किसी के इलाके पर ध्यान रखते हैं। हम महात्मा गांधी के अहिंसा के दर्शन से चरमपंथ और कट्टरपंथ का मुकाबला करने में विश्वास रखते हैं।’

मोदी ने कहा कि दुनियाभर में मौजूद भारतीय मूल के लोग वास्तव में देश के स्थायी राजदूत हैं। भारत बदल रहा है और इस नए भारत में प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है। वे भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सही मामले में ये भारतीय मूल के लोग ‘भारत के स्थायी राजदूत’ हैं। भारत के विकास के बारे में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में आने वाले निवेश में से आधा पिछले तीन वषों में आया है। पिछले वर्ष में रिकार्ड 16 अरब डालर का निवेश आया। यह सरकार की दूरगामी नीतिगत प्रभाव वाले निर्णयों के कारण आया है।

भारत बदल रहा है और अधिक से अधिक भारतीय मूल के लोगों को भारत में निवेश करना चाहिये और दूसरे बंधू-बांधवों को इसके लिये प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे कम से कम साल में एक बार भारत आकर इस बदलते हुए भारत को देखें। उन्होंने भारतीय मूल के सांसदों को आमंत्रित किया कि वे अगले वर्ष कुंभ के मेले में अवश्य आएं और देश की वास्तविक तस्वीर को अपनी आंखों से देखें।

(लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं)

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